सेंथिल बालाजी का बिना पोर्टफोलियो के मंत्री पद पर बने रहना संवैधानिक सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है: मद्रास हाईकोर्ट

Shahadat

6 Sep 2023 5:06 AM GMT

  • सेंथिल बालाजी का बिना पोर्टफोलियो के मंत्री पद पर बने रहना संवैधानिक सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में हिरासत में चल रहे मंत्री सेंथिल बालाजी के कार्यकाल को जारी रखने का फैसला तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के ऊपर छोड़ दिया है। बताते चले कि वर्तमान में सेंथिल बालाजी का कैबिनेट में बिना किसी विभाग (पोर्टफोलियो) के कार्यकाल जारी है। अदालत ने कहा कि बिना पोर्टफोलियो के बालाजी का कैबिनेट में बने रहना किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है और यह प्रशासन की शुचिता के लिए भी अच्छा नहीं है।

    अदालत ने कहा,

    “तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री को वी. सेंथिल बालाजी (जो न्यायिक हिरासत में हैं) को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में जारी रखने के बारे में निर्णय लेने की सलाह दी जा सकती है, जिसका कोई उद्देश्य नहीं है और जो अच्छाई, सुशासन और प्रशासन में शुचिता पर संवैधानिक लोकाचार के सिद्धांत के लिए अच्छा संकेत नहीं है।”

    चीफ जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस पीडी औडिकेसवालु की खंडपीठ ने इसे संवैधानिक उपहास बताते हुए कहा कि संविधान के संस्थापकों को शासन की इस हद तक गिरावट का एहसास नहीं हुआ होगा कि हिरासत में निर्वाचित सदस्य को मंत्री के दर्जे से पुरस्कृत किया गया है।

    खंडपीठ ने कहा,

    “हमारे संविधान के संस्थापकों ने अच्छे और स्वच्छ शासन के इस हद तक क्षरण को नहीं समझा होगा कि एक व्यक्ति को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में बनाए रखा जाएगा, वह भी हिरासत में रहते हुए। इसके अलावा, उन्होंने न ही यह कल्पना की थी कि कार्यकारी प्रमुख एक निर्वाचित सदस्य को मंत्री पद से पुरस्कृत करेगा। हालांकि उन्हें एक मंत्री की जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया। बिना पोर्टफोलियो वाला मंत्री एक संवैधानिक मजाक है।”

    अदालत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि एक विधायक को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बनाए रखने का कोई नैतिक या संवैधानिक आधार नहीं हो सकता। यह लोकाचार, सुशासन और संवैधानिक नैतिकता और अखंडता के विपरीत है।

    अदालत ने कहा,

    “मुख्यमंत्री कार्यकारी प्रमुख हैं। निर्वाचित प्रतिनिधि को मंत्रिस्तरीय जिम्मेदारियां सौंपना कार्यकारी प्रमुख की जिम्मेदारी है। हालांकि, यदि उन्हें लगता है कि किसी विशेष निर्वाचित प्रतिनिधि को मंत्री की जिम्मेदारी नहीं सौंपी जा सकती है तो विधानसभा के ऐसे सदस्य को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में बनाए रखने का नैतिक या संवैधानिक आधार नहीं हो सकता, जो लोकाचार, अच्छे शासन और संवैधानिक नैतिकता या अखंडता के विपरीत होगा।”

    खंडपीठ ने देसिया मक्कल शक्ति काची के अध्यक्ष एमएल रवि, अन्नाद्रमुक के पूर्व सांसद जे. जयवर्धन और चेन्नई के कोलाथुर के एस रामचंद्रन की याचिका पर ये टिप्पणियां कीं। याचिकाकर्ता 16 जून को राज्य द्वारा जारी एक प्रेस नोट को चुनौती दे रहे थे, जिसके अनुसार सरकार ने बालाजी को आवंटित विभागों को स्थानांतरित कर दिया है। लेकिन इसके साथ ही कहा है कि वह बिना पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में बने रहेंगे। क्यू वारंटो की प्रकृति में एक और रिट भी उस प्राधिकार पर सवाल उठाते हुए दायर की गई है, जिसके द्वारा बालाजी मंत्री पद पर बने हुए हैं। तीसरी याचिका में राज्यपाल आरएन रवि के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके द्वारा उन्होंने बालाजी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने के पहले के आदेश को स्थगित रखा है।

    इससे पहले खंडपीठ ने सवाल किया कि वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत बिना विभाग के मंत्री के रूप में बालाजी के बने रहने के खिलाफ कोई आदेश कैसे पारित कर सकती है, जबकि राज्यपाल द्वारा ऐसा कोई विशेष निर्देश नहीं दिया गया। हालांकि, इसके बाद राज्यपाल ने बालाजी को तत्काल प्रभाव से मंत्रिपरिषद से बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया और बाद में उसी दिन आदेश को स्थगित कर दिया गया था।

    इसे चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि चूंकि राज्यपाल ने पहले ही उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने का आदेश दे दिया था, इसलिए उन्हें मंत्रिमंडल में बने रहने के लिए फिर से शपथ दिलानी होगी और आदेश को स्थगित रखकर इसे प्रभावी नहीं बनाया जा सकता है। यह भी तर्क दिया गया कि बालाजी के परिषद में बने रहने से पूरी व्यवस्था खराब हो जाएगी और मुख्यमंत्री की सामूहिक जिम्मेदारी है।

    दूसरी ओर, राज्य ने प्रस्तुत किया गया कि राज्यपाल अपने विवेक का उपयोग करके किसी मंत्री को बर्खास्त नहीं कर सकते। राज्यपाल द्वारा "प्लेजर" केवल मुख्यमंत्री की सहायता और सलाह पर वापस ली जा सकती है, न कि व्यक्तिगत संतुष्टि पर। यह भी प्रस्तुत किया गया कि अदालत प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को यह निर्देश जारी नहीं कर सकती कि उन्हें अपनी शक्ति का प्रयोग किस तरीके से करना चाहिए। यह उन पदाधिकारियों का संवैधानिक विशेषाधिकार है, जिन्हें संविधान के संरक्षण, सुरक्षा और बचाव के लिए कहा जाता है।

    हालांकि याचिकाकर्ताओं द्वारा विशेष दलील दी गई कि बालाजी सरकारी खजाने की कीमत पर सरकारी भत्तों का आनंद लेते रहे। इस पर अदालत ने कहा कि चूंकि उनके पास कोई पोर्टफोलियो नहीं है, इसलिए उन्हें कोई काम आवंटित नहीं किया गया। इस प्रकार वह किसी भी पद के भत्ते के हकदार नहीं हैं। इस प्रकार, अदालत के अनुसार, उन्हें औपचारिक रूप से मंत्री के रूप में बनाए रखने से "कोई उद्देश्य पूरा नहीं हुआ"।

    अदालत ने कहा,

    “स्वाभाविक रूप से हिरासत में रखा व्यक्ति प्रभावी ढंग से मंत्री का काम नहीं कर सकता। वर्तमान मामले में वी. सेंथिल बालाजी बिना पोर्टफोलियो के मंत्री हैं। िसका अर्थ है कि उन्हें कोई काम आवंटित नहीं किया गया है। वह नाम के लिए मंत्री हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो बिना काम के मंत्री। ऐसा व्यक्ति निश्चित रूप से किसी भी भत्ते का हकदार नहीं होगा, क्योंकि वह किसी भी कार्य का प्रभारी नहीं होगा और न ही उसे कोई कार्य आवंटित किया गया है। निश्चित रूप से केवल औपचारिक रूप से उन्हें मंत्री के रूप में बनाए रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता है।”

    केस टाइटल: एस रामचन्द्रन बनाम राज्य

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