वरिष्ठ नागरिक अधिनियम: बॉम्बे हाईकोर्ट ने किराएदार बनकर मां के घर में रह रहे बेटे को राहत देने से इनकार किया, जल्द से जल्द घर खाली करने को कहा

LiveLaw News Network

19 Jan 2022 11:31 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    एक बेटे, जिसने अपनी मां को सामान्य जीवन जीना भी दूभर कर दिया था, बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने उसे जल्द से जल्द घर खाली करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि मां ने पांच साल से ज्यादा समय अत्यधिक पीड़ा में गुजारा है।

    जस्टिस गिरीश कुलकर्णी ने कहा कि यह "आश्चर्यजनक" है कि कैसे 48 वर्षीय बेटे ने बूढ़ी मां के घर में घुसने का एक अनोखा तरीका ईजाद किया। उसने अपनी मां के साथ एक रेंट एग्रीमेंट किया, जबकि उसका इरदा एग्रीमेंट का सम्‍मान करने का बिल्कुल भी नहीं था। उसने उन्हें किराये कि रूप में एक रुपया भी नहीं है, जब तक कि उन्होंने किराये के लिए अथॉरटीज़ से संपर्क नहीं किया।

    तथ्य

    माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत ट्रिब्यूनल ने एक आदेश पारित किया था, जिसके खिलाऊ सूर्यकांत पवार ने रिट याचिका दाखिल की थी। ट्रिब्यूनल ने फरवरी 2018 में पारित एक आदेश में पवार को अपनी मां कुसुम देवी के मध्य मुंबई के प्रभादेवी इलाके में बने आवास को खाली करने का निर्देश दिया था। अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सूर्यकांत ने एक विशेष आधार पर कि "उनके बच्चे पास के एक स्कूल में शिक्षा ले रहे हैं" किरायेदारी का समझौता किया है।

    अदालत ने नोट किया कि याचिकाकर्ता ने अपनी मां की वृद्धावस्था, शिक्षा की कमी और अनाड़ीपन का फायदा उठाकर उन्हें घर से बाहर निकालने का नया तरीका सोचा।

    ट्रिब्यूनल ने अधिनियम की धारा 4,5 और 23 के तहत कुसुम के आवेदन पर सूर्यकांत के खिलाफ आदेश पारित किया था। कुसुम के अनुसार, पति किसन के निधन के बाद उन्हें मुंबई नगर निगम ने घर के मालिक के रूप में मान्यता दी थी। भूमि निगम की थी और क्षेत्र पुनर्विकास में चला गया। भूखंड के विकासकर्ता ने भी कुसुम को घर की एकमात्र मालिक के रूप में मान्यता दी।

    सूर्यकांत ने तर्क दिया कि पिता की मृत्यु के बाद, वह संपत्ति में सह-हिस्सेदार थे, इसलिए उन्हें घर में रहने का अधिकार है। उनकी ओर से पेश वकील ने यह भी तर्क दिया कि सूर्यकांत को परिसर पर कब्जा करने देने में समस्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वह मां की देखभाल के लिए तैयार थे और वह महाराष्ट्र में अपने पैतृक गांव में रह रही थीं।

    कोर्ट ने कहा कि जुलाई 2016 में कुसुम और सूर्यकांत के बीच हुआ रेंट एग्रीमेंट सिर्फ 11 महीने के लिए था और एग्रीमेंट में ही कहा गया था कि कुसुम परिसर की पूरी मालिक थी।

    अदालत ने इस मुद्दे पर कुसुम के वकीलों की दलीलों को भी स्वीकार किया कि क्या कोई ट्रिब्यूनल ऐसा आदेश पारित कर सकता है या नहीं। इस बिंदु पर विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया गया, जिनमें पिछले वर्ष स्वयं जस्टिस कुलकर्णी द्वारा पारित एक निर्णय शामिल है।

    अदालत ने जिन प्रमुख निर्णयों का उल्लेख किया, वे निम्न हैं-

    एस वनिता बनाम उप आयुक्त, बेंगलुरु शहरी जिला और अन्य (सुप्रीम कोर्ट); श्वेता शेट्टी बनाम. महाराष्ट्र राज्य और अन्य। (बॉम्बे हाईकोर्ट ); दत्तात्रेय शिवाजी माने बनाम लीलाबाई शिवाजी माने और अन्य (बॉम्बे हाईकोर्ट) और आशीष विनोद दलाल और अन्य बनाम विनोद रमनलाल दलाल व अन्य (बॉम्बे हाईकोर्ट)।

    केस शीर्षक: सूर्यकांत किसान पवार बनाम डिप्टी कलेक्टर, मुंबई और अन्य

    केस नंबर: डब्ल्यूपी 2141/2019

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (बीओएम) 9


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