धारा 438(4) सीआरपीसी महाराष्ट्र- अग्रिम जमानत खारिज होने के बाद आरोपी को गिरफ्तारी से तीन दिन का अंतरिम संरक्षण दें: बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

23 Aug 2021 11:20 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अग्रिम जमानत आवेदन को खारिज करते हुए यदि सत्र न्यायालय ने आरोपी को सीआरपीसी (महाराष्ट्र संशोधन) की धारा 438(4) के तहत उपस्थित रहने का निर्देश दिया है तो उसे तत्काल गिरफ्तारी से बचने के लिए कम से कम तीन कार्य दिवसों के लिए अंतरिम संरक्षण देना चाहिए।

    अंतरिम संरक्षण का विस्तार नहीं करना, जो अग्रिम जमानत आवेदन के लंबित रहने तक आरोपी के पक्ष में संचालित होता है, उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के उसके अधिकार को विफल कर देगा, और सत्र न्यायालय अंतिम सुनवाई के समय उसे उपस्थित रहने का निर्देश देना, उसे गिरफ्तारी करवाने में मदद कर देगा।

    जस्टिस मनीष पितले ने कहा, "यह न केवल सीआरपीसी की धारा 438 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन करने के आरोपी के अधिकार के खिलाफ होगा, बल्कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकार की जड़ पर प्रहार करेगा।"

    पीठ ने मामले में निम्नलिखित निर्देश जारी किए-

    -सीआरपीसी की धारा 438(4) (महाराष्ट्र संशोधन) के तहत अभियोजक अग्रिम जमानत के लिए आवेदन की अंतिम सुनवाई के समय आरोपी की उपस्थिति की मांग करते हुए स्पष्ट कारण बताएगा।

    -सत्र न्यायालय इस तरह के आवेदन पर विचार करेगा और एक तर्कपूर्ण आदेश पारित करेगा कि अग्रिम जमानत के आवेदन की अंतिम सुनवाई के समय आरोपी की उपस्थिति क्यों जरूरी है।

    -यदि सत्र न्यायालय अग्रिम जमानत के आवेदन को खारिज कर देता है और आरोपी अदालत के निर्देशों के अनुसार उपस्थित होता है, तो न्यायालय अभियुक्त के पक्ष में चल रहे अंतरिम संरक्षण को कम से कम तीन कार्य दिवसों की अवधि के लिए बढ़ा देगा, उन्हीं शर्तों पर जिन पर अग्रिम जमानत के आवेदन के लंबित रहने के दौरान अंतरिम संरक्षण दिया गया था, या ऐसी और शर्तों पर, जो न्याय के हित में सत्र न्यायालय उचित समझे।

    -ऐसे मामलों में जहां सत्र न्यायालय तीन कार्य दिवसों से अधिक के लिए अंतरिम सुरक्षा का विस्तार देना उचित समझता है, वह इसके कारणों को दर्ज करेगा और किसी भी मामले में, मौजूदा शर्तों या आगे की कठोर शर्तों पर अंतरिम संरक्षण का सात कार्य दिवसों की अवधि से अधिक विस्तार नहीं होगा।

    मामले की पृष्ठभूमि

    अदालत ने नागपुर स्थित एक न्यूरोसर्जन की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें सत्र अदालत के आदेश का पालन करते हुए अग्र‌िम जमानत आवेदन की अंतिम सुनवाई के समय उपस्थित रहने पर आरोपी की गिरफ्तारी की संभावना को समाप्त करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।

    सर्जन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 406, 409, 420, 465, 467, 468 और 471 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66-सी के तहत मामला दर्ज किया गया था। उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया क्योंकि सत्र अदालत ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें अंतिम सुनवाई के समय उपस्थित रहने का आदेश दिया था।

    राज्य के एपीपी एसए आशीर्वाद ने प्रस्तुत किया कि इस बात की संभावना है कि अंतरिम संरक्षण के अभाव में आरोपी को गिरफ्तार किया जा सकता है।

    हालांकि, उन्होंने अब्दुल रज्जाक अब्दुल सत्तार और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में डिवीजन बेंच के फैसले का हवाला दिया। एक अन्य याचिका, जिसमें महाराष्ट्र पर लागू सीआरपीसी की धारा 438 (4) को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया, का हवाला दिया।

    केस का शीर्षक: डॉ समीर नारायणराव पल्टेवार बनाम महाराष्ट्र राज्य

    प्रतिनिधित्वः याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अविनाश गुप्ता एवं अधिवक्ता आकाश गुप्ता

    प्रतिवादी राज्य - एसए आशीर्वाद, एपीपी

    हस्तक्षेपकर्ता-एडवोकेट श्याम दीवानी, एडवोकेट साहिल दीवानी हस्तक्षेपकर्ता की ओर से

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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