धारा 326ए आईपीसी| 'एसिड' में वे सभी पदा‌र्थ शामिल, जिसमें जलाने की प्रकृति, केवल वे ही नहीं, जिन्हें क्लासिक रूप से एसिड कहा जाता है: दिल्ली हाईकोर्ट

Avanish Pathak

14 Oct 2022 1:56 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 326 ए में शामिल 'एसिड' शब्द केवल उन पदार्थों तक सीमित नहीं है, जिन्हें क्लासिक या वैज्ञानिक रूप से एसिड कहा जाता है, बल्कि इसमें वे सभी पदार्थ भी शामिल हैं जिनमें अम्लीय, संक्षारक या जलाने की प्रकृति होती है और वे विरूपता, अस्थायी या स्थायी विकलांगता पैदा करने में सक्षम हैं।

    उल्लेखनीय है संहिता की धारा 326ए के तहत एसिड अटैक के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें कहा गया है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के शरीर के किसी हिस्से को एसिड फेंककर स्थायी याआंशिक रूप से नुकसान पहुंचाता है, विकृत या अक्षम करता है या गंभीर चोट पहुंचाता है तो उसे कम से कम दस साल के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे जुर्माना के साथ आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

    जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस अनीश दयाल की खंडपीठ ने 2014 में एक महिला पर तेजाब फेंकने के लिए संहिता की धारा 326ए और 34 के तहत दोषी ठहराए गए तीन लोगों द्वारा दायर अपील पर दिए अपने फैसले में प्रावधान की व्याख्या की।

    पीठ ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा, अभियोजन पक्ष एक उचित संदेह से परे अपराध साबित करने में सक्षम रहा है।

    दोषियों की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया था कि न तो कथित पदार्थ को जांच के लिए भेजा गया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह किस प्रकार का तेजाब था और न ही आगे की जांच के लिए पीड़ित के कपड़े जब्त किए गए थे।

    सीनियर एडवोकेट महाबीर सिंह ने तर्क दिया कि अभियोजन यह साबित करने में असमर्थ था कि कथित पदार्थ तेजाब था।

    हालांकि, अदालत ने तर्क को गलत करार दिया और कहा कि धारा 326 ए के तहत ऐसी स्थिति शामिल है, जहां किसी व्यक्ति के शरीर को आंशिक या स्थायी क्षति होती है, यह न केवल एसिड के कारण हो सकती है बल्कि 'किसी अन्य पदार्थ से' हो सकती है।"

    अदालत ने धारा 326बी का हवाला देते हुए कहा कि प्रावधान में स्पष्टीकरण 1 में धारा 326ए में प्रयुक्त 'एसिड' शब्द की व्याख्या की गई है।

    "उक्त स्पष्टीकरण के अनुसार 'एसिड' में ऐसा कोई भी पदार्थ शामिल है, जिसमें जलती हुई प्रकृति का अम्लीय या संक्षारक चरित्र होता है, जो शारीरिक चोट के कारण दाग या विकृत या अस्थायी या स्थायी अक्षमता पैदा करने में सक्षम होता है।

    इसलिए इस प्रावधान से, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि विधायिका ने "एसिड" के अर्थ में दो स्पष्ट पहलुओं को शामिल किया है: पहला, अम्लीय/संक्षारक/जलती हुई प्रकृति वाला कोई भी पदार्थ; और दूसरा, इसमें शारीरिक चोट पहुंचाने की क्षमता हो, जिससे दाग या विकृति या अस्थायी या स्थायी हो विकलांगता हो।"

    अदालत के समक्ष अपीलकर्ताओं ने निचली अदालत के दिसंबर 2019 के फैसले को चुनौती दी थी। इनमें से दो को आजीवन सश्रम कारावास और एक-एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई, जबकि तीसरे आरोपी को 10 साल के कठोर कारावास और 50,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।

    निचली अदालत ने आदेश दिया था कि पीड़िता को कुल जुर्माने में से 1.25 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर दिए जाएंगे।

    अपीलों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि चूंकि घटना रेलवे लाइन पर हुई और अपीलकर्ता बाद में भाग गए, पदार्थ के किसी भी हिस्से को बरामद करने और इसकी जांच करने का सवाल ही नहीं उठता।

    अदालत का यह भी विचार था कि यह तथ्य कि पीड़िता के जले हुए कपड़े बरामद नहीं किए गए और पुलिस द्वारा जब्त नहीं किया गया था, यह एक ऐसा कारक नहीं है, जो इस मूलभूत तथ्य को कमजोर कर सकता है कि इस तरह की चोट किसी व्यक्ति द्वारा खुद को देना संभव नहीं था।

    मुआवजे के पहलू पर पीठ ने निर्देश दिया कि पीड़ित को जुर्माने की पूरी राशि का भुगतान किया जाए। अदालत ने यह भी कहा कि वह कम से कम 5 लाख रुपये के कुल मुआवजे की हकदार हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2015 में शिकायतकर्ता द्वारा याचिका दायर किए जाने के बाद मामले को मथुरा से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया था।

    टाइटल: हकीम और अन्य बनाम राज्य (दिल्ली का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) और अन्य जुड़े मामले

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