घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत आवेदन 'शिकायत' नहीं, सीआरपीसी की धारा 200-204 के तहत प्रक्रिया को आकर्षित नहीं करती है: मेघालय हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

6 March 2023 3:56 AM GMT

  • घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत आवेदन शिकायत नहीं, सीआरपीसी की धारा 200-204 के तहत प्रक्रिया को आकर्षित नहीं करती है: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत एक अर्जी शिकायत नहीं है और सीआरपीसी की धारा 200 (शिकायतकर्ता की जांच), 202 (प्रक्रिया जारी करने को स्थगित करना) और 204 (प्रक्रिया जारी करना) के तहत प्रक्रिया और कार्यवाही को पक्षकार या मजिस्ट्रेट आगे नहीं बढ़ा सकते हैं।

    जस्टिस डब्ल्यू डेंगदोह की पीठ ने यह टिप्पणी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने डीवी अधिनियम की धारा 12 डीवी अधिनियम के तहत आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी, जो शिलांग में प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत के समक्ष लंबित थी।

    अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा था कि धारा 12 के तहत कार्यवाही प्रकृति में दीवानी है और पीड़ित पक्ष द्वारा दायर एक अर्जी प्राप्त होने पर कोर्ट द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया सबसे पहले प्रतिवादी को नोटिस जारी करने का कारण बनती है। याचिकाकर्ता ने कहा, हालांकि, मजिस्ट्रेट ने इसके बजाय याचिकाकर्ता को कोर्ट में पेश होने के लिए समन जारी किया है और कार्यवाही के दौरान गिरफ्तारी का जमानती वारंट भी जारी किया है।

    घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत प्रक्रियाओं के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए, याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि भले ही अर्जी को एक शिकायत माना जाता है, मजिस्ट्रेट याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रक्रिया के मुद्दे को स्थगित करने के लिए सीआरपीसी की धारा 202 के प्रावधानों का सहारा लेने में विफल रहे हैं, जो जाहिरा तौर पर कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर होता है।

    इसके विपरीत प्रतिवादियों ने सीआरपीसी की धारा 202 के प्रावधानों का पालन न करने का बचाव करते हुए कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय XV के तहत निर्धारित प्रक्रिया घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही पर लागू नहीं होती है।

    प्रतिवादियों ने आगे दलील दी कि डीवी अधिनियम की धारा 13 के तहत, निर्धारित प्रपत्र में प्रतिवादी को केवल सुनवाई की तारीख का नोटिस दिया जाना है और डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही के लिए दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत सम्मन जारी करने की आवश्यकता नहीं है। ।

    विरोधी दलीलों पर विचार करने के बाद, कोर्ट ने कहा कि धारा 28 विशेष रूप से निर्धारित करती है कि धारा 12, 18, 19, 20, 21, 22 और 23 के तहत कार्यवाही और डीवी अधिनियम की धारा 31 के तहत दंडनीय अपराध सीआरपीसी के प्रावधानों द्वारा शासित होंगे।

    प्रावधान पर विस्तार से कोर्ट ने आगे कहा कि सीआरपीसी के प्रावधान डीवी अधिनियम की उपरोक्त धाराओं के तहत सभी कार्यवाहियों पर लागू होते हैं, जब तक कि अधिनियम स्वयं एक प्रक्रिया प्रदान नहीं करता है, तब तक यह उक्त धाराओं के तहत कार्यवाही को नियंत्रित करेगा।

    बेंच ने स्पष्ट किया, "उक्त अधिनियम की धारा 31 में प्रावधान है कि संरक्षण आदेश या अंतरिम संरक्षण आदेश का उल्लंघन एक अपराध है, जो संज्ञेय और गैर-जमानती है और जो कारावास की सजा को आमंत्रित करेगा। यह सजा एक वर्ष तक की हो सकती है या 2000 रुपये का जुर्माना हो जाता है या दोनों हो सकता है। डीवी अधिनियम में यह एकमात्र दंडात्मक प्रावधान है।’’

    प्रतिवादियों के इस तर्क से सहमत होते हुए कि डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही उक्त अधिनियम की धारा 31 के दायरे में आने वाला अपराध नहीं है, बेंच ने ‘कामची बनाम लक्ष्मी नारायणन 2022 एससीसी’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. पी. पद्मनाथन के मामले में निर्धारित प्रासंगिक बिंदु का संज्ञान लिया था और रिकॉर्ड किया,

    "धारा 12 के तहत अर्जी कोई शिकायत नहीं है, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 2 (डी) के तहत परिभाषित किया गया है, संहिता की धारा 190 (1) (ए) के तहत निर्धारित संज्ञान की प्रक्रिया और उसके बाद संहिता के अध्याय XV में निर्धारित प्रक्रिया का घरेलू हिंसा कानून के तहत कार्यवाही के लिए इस्तेमाल नहीं होगा।’’

    उक्त अथॉरिटी पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत एक अर्जी एक शिकायत नहीं है और पार्टियों द्वारा या मजिस्ट्रेट द्वारा क्रमशः सीआरपीसी की धारा 200, 202 और 204 के तहत प्रक्रिया और कार्यवाही का पालन नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि धारा 12 के तहत अर्जी दायर किए जाने पर, मजिस्ट्रेट को धारा 13 के तहत नोटिस जारी करना होगा और प्रतिवादी से जवाब मांगना होगा।

    याचिका को आधारहीन पाते हुए कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: श्री अभिषेक अग्रवाल और अन्य बनाम श्रीमती कोमल पोद्दार

    साइटेशन : 2023 लाइवलॉ (मेघालय) 11

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