कानूनी तौर पर विवाहित न होने के बावजूद दूसरी पत्नी मृत पति के सेवा संबंधित दावों को सुरक्षित करने की हकदारः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
Manisha Khatri
21 Aug 2023 3:30 PM IST
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि दूसरी पत्नी अपने मृत पति के सेवा और टर्मिनल लाभों को पाने की हकदार है, भले ही उसे ‘‘कानूनी रूप से विवाहित पत्नी’’ का दर्जा प्राप्त न हो।
जस्टिस रवि नाथ तिलहरी और जस्टिस के. मनमाधा राव की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि,
‘‘हमारा विचार है कि ऐसे मामलों में, भले ही यह पाया जाए कि पहली शादी के अस्तित्व के दौरान किए गए इस विवाह के लिए दूसरी पत्नी को पत्नी का दर्जा प्राप्त नहीं है, फिर भी मृत पति के सेवा लाभ और सेवा संबंधित दावों को सुरक्षित करने की हकदार है। न्यायालयों का प्रयास हमेशा दो पत्नियों के बीच इक्विटी को संतुलित करने का रहा है, हालांकि दूसरी को कानूनी रूप से विवाहित ‘‘पत्नी’’ के सख्त अर्थ में पत्नी नहीं समझा जा सकता है।’’
आंध्र प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए स्वर्गीय गद्दाम दानम की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी जी.रूथ विक्टोरिया (ईसाई पर्सनल लॉ के अनुसार) द्वारा रिट दायर की गई थी। ट्रिब्यूनल ने स्वर्गीय गद्दाम दानम की दोनों पत्नियों को उनके टर्मिनल और उसे मिलने वाले अन्य लाभ का हकदार माना था। ट्रिब्यूनल ने माना था कि चूंकि आंध्र प्रदेश संशोधित पेंशन नियमों, 1980 का नियम 50 ‘पत्नियों’ को पेंशन का दावा करने की अनुमति देता है, इसलिए दोनों पत्नियों को टर्मिनल लाभ का दावा करने की अनुमति दी जाएगी।
पहली पत्नी का तर्क यह था कि चूंकि स्वर्गीय गद्दाम दानम की दूसरी पत्नी जी.पद्मा, उनकी कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त पत्नी नहीं थी, इसलिए प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने मृतक को मिलने वाले लाभों में उनके दावे को मान्यता देने में गलती की है।
जी.रूथ ने अपने पति के निधन के बाद स्वर्गीय गद्दाम दानम के सभी लंबित लाभों को उनके पक्ष में जारी करने के लिए जिला कलेक्टर और जिला समाज कल्याण अधिकारी के समक्ष आवेदन दायर किया था। फिर उसे पता चला कि जी. पद्मा, जिसे स्वर्गीय दानम के लाभार्थी के रूप में नामित किया गया था, भी उक्त लाभों में हकदारी का दावा कर रही थी।
जी.रूथ द्वारा आंध्र प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के समक्ष एक मुकदमा दायर किया गया था, जिसमें प्रार्थना की गई थी कि उनके दिवंगत पति के लंबित लाभ पूरी तरह से उनके पक्ष में जारी किए जाएं।
अधिकारियों ने जी.रूथ के दावे का खंडन किया और कहा कि पेंशन प्रस्ताव मृतक के अनुरोध के अनुसार भेजा गया था और उन्होंने जी. पद्मा और उनकी तीन बेटियों को लाभार्थियों के रूप में नामित किया था।
दूसरी पत्नी जी. पद्मा ने भी केस लड़ा और प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के समक्ष कहा कि हालांकि उनके दिवंगत पति की शादी जी. रूथ विक्टोरिया से हुई थी, लेकिन 1979 में परिवार के बुजुर्गों के सामने समझौता करने के बाद दोनों अलग हो गए थे। इसके बाद उसने वर्ष 1986 में स्वर्गीय गद्दाम दानम से शादी की और उनके इस विवाह से 3 बच्चे पैदा हुए। उसने आगे कहा कि वह अपने दिवंगत पति के साथ रह रही थी और उसकी मृत्यु तक उसकी देखभाल कर रही थी और इसे साबित करने के लिए उसने मूल चिकित्सा रसीदें भी जमा करवाई।
इसके विपरीत, पहली और कानूनी रूप से विवाहित पत्नी ने ट्रिब्यूनल के समक्ष कहा कि, उसने 1975 में स्वर्गीय गद्दाम दानम से शादी की थी और उनके निधन तक उनके साथ रह रही थी और उनका एक बेटा भी है।
उसने अदालत के ध्यान में यह भी लाया कि उसने अपने पति के जीवनकाल के दौरान भरण-पोषण के लिए मुकदमा दायर किया था और कुर्की के रूप में 3,60,000 रुपये का सशर्त आदेश भी उसके पक्ष में दिया गया था, लेकिन उसके पति ने इसके खिलाफ अपील कर दी थी। जिसके बाद नए सिरे से विचार करने के लिए इस मामले को वापस भेज दिया गया था और तब से कुर्की राशि पर रोक लगी हुई थी।
जी. रूथ ने अदालत को यह भी बताया कि उसके दिवंगत पति ने उसके खिलाफ तलाक की कार्यवाही शुरू की थी, जहां उन्होंने स्वीकार किया था कि वह उनकी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है। इसके अलावा, तलाक की याचिका में दूसरी पत्नी के अस्तित्व का जिक्र नहीं था।
एपीएटी ने दोनों महिलाओं की याचिका पर विचार किया और पाया कि हालांकि पहली पत्नी कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त पत्नी थी, दूसरी पत्नी मृतक के साथ सहवास में थी। हालांकि उसने दूसरी पत्नी को अपने लाभार्थी के रूप में नामित किया था और वह यह दिखाने के लिए मेडिकल बिल भी पेश करने में सक्षम थी कि वह अंत तक अपने मृत पति का ख्याल रख रही थी।
इस अवलोकन के साथ, ट्रिब्यूनल ने माना कि चूंकि एपी पेंशन नियमों का नियम 50 ‘पत्नियों’ को पेंशन का दावा करने की अनुमति देता है, इसलिए दोनों पत्नियों को टर्मिनल लाभों का दावा करने की अनुमति दी जाएगी। वहीं सिर्फ दूसरी पत्नी मूल चिकित्सा रसीदें जमा करने में सक्षम थी, इसलिए वह अकेले चिकित्सा प्रतिपूर्ति पाने का हकदार होगी।
ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश को पहली पत्नी ने इस आधार पर चुनौती दी थी कि चूंकि दूसरी पत्नी मृतक की कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त पत्नी नहीं थी, इसलिए एपी पेंशन नियमों के नियम 50 का लाभ उसे नहीं दिया जा सकता है। उसने कहा कि तलाक की याचिका के अनुसार, मृतक ने स्वयं अपनी पहली पत्नी को ही अपनी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्णयों का हवाला देते हुए खंडपीठ ने कहा कि पेंशन मृतक की संपत्ति नहीं है। खंडपीठ ने कहा,
‘‘हम मानते हैं कि यह प्रावधान नियम 50 उस महिला के पक्ष में एक लाभकारी प्रावधान है जिसके साथ सरकारी कर्मचारी पहली शादी के अस्तित्व के दौरान दूसरी शादी का अनुबंध करता है। इसलिए सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद फैमिली पेंशन के अनुदान के इसके उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए इस प्रावधान को उदारतापूर्वक समझने की आवश्यकता है।’’
न्यायालय ने कार्यकारी अनुदेश परिपत्र मेमो, 1996 का भी उल्लेख किया; जिस पर पहली पत्नी ने भरोसा जताया था और पाया कि जब दूसरी शादी करने से पहले संबंधित अधिकारियों से पूर्व अनुमति नहीं ली जाती है, तो शादी अमान्य है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
उक्त अनुदेश को ध्यान में रखते हुए और साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा बादशाह बनाम उर्मिला बादशाह गोडसे नामक मामले में दिए गए फैसले पर काफी ज्यादा निर्भरता रखते हुए, न्यायालय ने कहा कि कानून का उद्देश्य सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है।
‘‘भले ही दूसरी शादी की अनुमति नहीं थी, फिर भी 5वीं प्रतिवादी को सर्कुलर, प्रावधान नियम 50 (12) के कारण पारिवारिक पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता है, जबकि उसे मृतक गद्दाम दानम द्वारा नामित किया गया था।’’
इस निष्कर्ष के साथ, न्यायालय ने माना कि पहली पत्नी को 3,60,000 रुपये की भरण-पोषण राशि देय है, जो अभी बकाया है। वहीं दूसरी पत्नी पूरी तरह से सभी सेवाओं के लाभ और शेष इक्विटी की हकदार है और पेंशन दोनों पत्नियों द्वारा साझा की जाएगी।
केस टाइटल- गद्दाम रूथ विक्टोरिया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य
साइटेशन-2023 लाइव लॉ (एपी) 44
आदेश की तिथि-18.08.23
याचिकाकर्ता के वकील-एडवोकेट श्रीमन्नारायण वट्टिकुटी
दूसरी पत्नी के वकील-एडवोकेट सतीश कुमार
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