एक ही घटना पर दूसरी एफआईआर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग, इसे सीआरपीसी की धारा 173 के तहत अंतिम रिपोर्ट की प्रतीक्षा किए बिना रद्द की जा सकती है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

22 Jan 2022 9:57 AM GMT

  • एक ही घटना पर दूसरी एफआईआर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग, इसे सीआरपीसी की धारा 173 के तहत अंतिम रिपोर्ट की प्रतीक्षा किए बिना रद्द की जा सकती है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने माना है कि यदि किसी घटना के संबंध में दूसरी एफआईआर दर्ज की जाती है, जिस पर पहले से एफआईआर मौजूद हो तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और हाईकोर्ट धारा 482 सीआरपीसी के तहत, धारा 173 सीआरपीसी के तहत अंतिम रिपोर्ट की प्रतीक्षा किए बिना, इसे रद्द करने की अपनी शक्तियों के दायरे में है।

    जस्टिस विकास बहल ने कहा,

    "जहां धारा 173 सीआरपीसी के तहत रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है, वहां एक एफआईआर को रद्द करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्ति का प्रयोग पूर्णतया दायरे से बाहर नहीं माना जा सकता है। उस शक्ति का प्रयोग संयम से किया जाए। इस संबंध में कोई स्ट्रेटजैकेट फॉर्मूला निर्धारित नहीं किया जा सकता है कि किन स्थितियों में उक्त शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है या किया जाना चाहिए।"

    अदालत ने कुछ स्थितियों का उदाहरण दिया, जिसमें मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर धारा 173 सीआरपीसी के तहत रिपोर्ट दर्ज नहीं होने के बावजूद उक्त शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है-

    -यदि किसी घटना के लिए दूसरी एफआईआर दर्ज की गई है जिसके संबंध में एक एफआईआर पहले से मौजूद है

    -यदि एफआईआर को केवल पढ़ने पर, अपराध होना बन नहीं पाता है

    -अगर गैर-संज्ञेय अपराध के लिए एफआईआर दर्ज की गई है

    -यदि सीमा अवधि के बाद, तीन साल से पुराने अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की गई है

    -यदि न्यायिक आदेश के उल्लंघन में एफआईआर दर्ज की गई है

    -यदि किसी कानून या न्यायिक उद्घोषणा द्वारा तय किए गए कानूनी सिद्धांत के उल्लंघन में एफआईआर दर्ज की गई है

    हालांकि यह स्पष्ट किया गया कि उपर्युक्त उदाहरण केवल गणनात्मक हैं और संपूर्ण नहीं।

    पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ धारा 384 धारा, 511 और धारा 506 के तहत आरोपों सबंध‌ित प्रतिवादी संख्या 2/शिकायतकर्ता की ओर से दर्ज कराई गई एक एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।

    यह एफआईआर अगस्त 2021 में प्रतिवादी संख्या 2 ने दायर कराई थी, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता की शिकायतकर्ता के पिता के साथ 2008 से दुश्मनी थी और उसने शिकायतकर्ता के खिलाफ वर्ष 2019 में झूठा बलात्कार का मामला दर्ज किया था और बदला लेने के लिए उसे ब्लैकमेल किया था, जिसमें 14 लाख रुपये मांगे गए थे। और इस रेप केस में एफआईआर में एसएचओ और पुलिस अधीक्षक ने प्रतिवादी नंबर 2 को निर्दोष घोषित किया था। फिर 2020 में एक गुरजीत सिंह एक लड़की 'आर' के संबंध में, जो स्पष्ट रूप से गुरजीत सिंह को पैसे के लिए ब्लैकमेल कर रही थी। प्रतिवादी संख्या 2 के पास गया और इस प्रकार प्रतिवादी संख्या 2 ने, एक वकील होने के नाते, गुरजीत सिंह को धारा 384 आईपीसी के तहत 'आर' के खिलाफ मामला दर्ज करने की सलाह दी।

    याचिकाकर्ता ने तब 'आर' को जमानत दी और उसे प्रतिवादी संख्या 2 के खिलाफ झूठे बलात्कार का मामला दर्ज करने के लिए उकसाया, लेकिन 'आर' ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और केवल गुरजीत सिंह के खिलाफ मामला दायर किया जिसे बाद में रद्द कर दिया गया क्योंकि गुरजीत सिंह निर्दोष पाया गया था।

    फिर याचिकाकर्ता ने दूसरों के साथ मिलकर प्रतिवादी संख्या 2 को धमकी दी कि अगर याचिकाकर्ता को 14 लाख रुपये का भुगतान नहीं किया गया बलात्कार झूठा मामला लगा दिया जाएगा। इस पृष्ठभूमि में, प्रतिवादी संख्या 2 को धारा 384, 511 और 506 के तहत एफआईआर दर्ज करवाना पड़ा, जिसे याचिकाकर्ता ने रद्द करने की मांग की।

    परिणाम

    अदालत को कानून के दो महत्वपूर्ण सवालों पर फैसला करना था: क्या सीआरपीसी के तहत धारा 173 के तहत रिपोर्ट फाइल न होने पर धारा 482 के तहत याचिका को खारिज किया जा सकता है? और दूसरी बात, क्या उसी घटना पर एक और एफआईआर दर्ज कराना, जबकि एक एफआईआर पहले से मौजूद है, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए?

    अदालत ने अजय मित्रा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लेख किया, जहां यह माना गया था कि "यदि एक एफआईआर दंड प्रावधान की आवश्यकताओं का खुलासा नहीं करती है या संज्ञेय अपराध के होने का खुलासा नहीं करती है, तो इसे शुरुआती चरण में रद्द किया जा सकता है।"

    कोर्ट ने हरियाणा राज्य और अन्य बनाम चौ भजन लाल व अन्य का भी जिक्र किया, जहां अदालत ने कहा, "हाईकोर्ट किसी भी अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने या न्याय के उद्देश्य को सुरक्षित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 या धारा 482 सीआरपीसी के तहत निहित शक्ति के तहत अपनी असाधारण शक्ति का प्रयोग कर सकता है।"

    इस प्रकार, कोर्ट ने मौजूदा एफआईआर को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह केवल याचिकाकर्ता से प्रतिशोध लेने के लिए दुर्भावनापूर्ण इरादे से दर्ज की गई थी।

    केस शीर्षक: गुरमेल सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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