साक्षरता और जागरूकता के लिए एससी / एसटी के समक्ष पेश आने वाली दिक्कतों को नजरंदाज करके तकनीकी आधार पर आरक्षण का लाभ उनसे वापस नहीं लिया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
6 Jan 2021 11:10 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है, "यह वास्तविक तथ्य कि अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए न केवल कानूनी तौर पर, बल्कि संवैधानिक तौर पर एक निश्चित आरक्षण / छूट की व्यवस्था की गयी है, इस व्यवस्था की जरूरत को प्रदर्शित करता है। इस कथित आवश्यकता की पूर्ति न केवल आरक्षण / छूट प्रदान करके पूरी की जानी चाहिए, बल्कि एसटी के लिए निर्धारित आरक्षण और लाभ के अनुपालन में भी सहयोग किया जाना चाहिए। आरक्षण और छूट का अनुपालन करते वक्त इस तरह का आरक्षण / छूट प्रदान करने के कारण और उद्देश्य की भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।"
न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ और न्यायमूर्ति आशा मेनन की खंडपीठ ने जोर दिया कि अधिकारियों को इन समुदायों के लोगों की उम्मीदवारी पर विचार करते वक्त तकनीकी आपत्तियों पर विचार नहीं करना चाहिए।
खंडपीठ ने कहा,
"कथित आरक्षण / छूट उन गड़बड़ियों और खामियों की स्वीकारोक्ति है जो एसटी समुदाय के लोग पीढी दर पीढी भुगतते रहे हैं और जिन खामियों ने अन्य नागरिकों की तुलना में इस समुदाय के लोगों को पीछे छोड़ दिया है। ये त्रुटियां दैनिक जीवन के सभी मानदंडों तक प्रभावी हैं, जिनके कारण अन्य लोगों की तुलना में इस समुदाय के लोगों का जीवन कठिन रहा है। साक्षरता और जागरूकता सहित छोटी से छोटी चीजों को लेकर इस समुदाय के सदस्यों के समक्ष आने वाली दिक्कतों और कठिनाइयों को भूलकर और तकनीकी कारणों का सहारा लेकर इस आरक्षण या छूट को एक हाथ से देकर दूसरे हाथ से नहीं लिया जा सकता।"
खंडपीठ ने यह टिप्पणी राजस्थान के आरक्षित श्रेणी के निवासी एवं पुलिस बल के उम्मीदवार लेखराज मीणा की रिट याचिका की सुनवाई के दौरान की।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता का मामला था कि यद्यपि उसने अनुसूचित जाति के तहत एसएससी परीक्षा के लिए आवेदन किया था और फ्लाइंग कलर्स के साथ परीक्षा पास की थी, लेकिन वह दिल्ली में आयोजित फीजिकल एफिसिएंसी टेस्ट (पीईटी) में इसलिए क्वालिफाई नहीं कर सका था क्योंकि उसने लंबाई में छूट के लिए प्रमाण प्रपत्र नहीं भरा था।
कोर्ट के समक्ष यह दलील दी गयी थी कि पीईटी बोर्ड के पीठासीन अधिकारी ने याचिकाकर्ता को लंबाई में छूट से संबंधित आवश्यक प्रमाण पत्र अपने जिला (करौली, राजस्थान) के सक्षम अधिकारी से प्राप्त करके पांच दिन के भीतर जमा करने का निर्देश दिया था। हालांकि, यह प्रमाण पत्र समय पर जमा नहीं कराया जा सका और पीठासीन अधिकारी ने पांच दिन के बाद संबंधित प्रमाण पत्र स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि पांच दिन की निर्धारित अवधि से अधिक की देरी के लिए जो कारण थे वे उसके नियंत्रण में नहीं थे और पिछले कुछ समय से जारी किसान आंदोलन के कारण एवं राजस्थान में होने वाले निगम चुनावों के कारण प्रमाण पत्र हासिल करने में देरी हुई थी।
निष्कर्ष
इन दलीलों का संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कहा कि यद्यपि याचिकाकर्ता ने एसटी का जाति प्रमाण पत्र सौंपा है और लंबाई में छूट संबंधी प्रमाण पत्र जमा कराने में देरी हुई है, लेकिन आरक्षण दिये जाने के उद्देश्यों को नजरंदाज करके केवल किताबी ज्ञान के आधार पर निर्णय नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने एनसीआर में जारी किसान आंदोलन को लेकर भी नोटिस जारी किया ताकि इस कारण कोई व्यक्ति अपने हक से वंचित न रह जाये। कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को लंबाई संबंधी छूट के साथ याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार करने का भी निर्देश दिया।
केस शीर्षक : लेखराज मीणा बनाम भारत सरकार एवं अन्य
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