एससी/एसटी एक्ट| संज्ञान और समन जारी करने के आदेशों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन सुनवाई योग्य: उड़ीसा हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से अलग राय दी
Avanish Pathak
16 Aug 2022 12:16 PM IST
उड़ीसा हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि संज्ञान लेने और समन जारी करने का आदेश अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 14-ए (1) के तहत अपील योग्य होगा, यह भी माना है कि ऐसे आदेशों को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत चुनौती दी जा सकती है।
जस्टिस आदित्य कुमार महापात्र की एकल पीठ का विचार था कि हाईकोर्ट के पास धारा 482 के तहत निहित शक्ति है, जिसे किसी भी कानून के प्रावधानों द्वारा निर्देशित और नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। ऐसा कहकर हाईकोर्ट ने हाल ही में अनुज कुमार @ संजय और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य। [2022 लाइव लॉ (एबी) 264] में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा लिए गए विचार से भिन्न विचार प्रकट किया है।
मामला
न्यायालय अधिनियम के तहत संज्ञान और समन जारी करने के आदेशों की प्रकृति तय कर रहा था, चाहे वे 'अंतर्वर्ती आदेश' (Interlocutory Order) हों या नहीं। अधिनियम की धारा 14-ए(1) के तहत 'अंतर्वर्ती आदेश' के रूप में सामने आए कानून के सवाल के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती है।
अपीलकर्ता के वकील श्री सुदीप्तो पांडा ने अपनी दलीलों को आगे बढ़ाते हुए अनुज कुमार @ संजय और अन्य बनाम यूपी राज्य के इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया फैसले पर भरोसा किया। उस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट को यह तय करना था कि धारा 482, सीआरपीसी के तहत एक आवेदन, जिसमें विशेष न्यायालय द्वारा एससी और एसटी (पीओए) अधिनियम, 1989 के तहत प्रावधानों को शामिल करने वाले अपराध का संज्ञान लेने के आदेश को चुनौती दी गई है, वह सुनवाई योग्य है या नहीं?
उसमें, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला था कि धारा 482, सीआरपीसी के तहत एक आवेदन, जिसमें एससी और एसटी (पीओए) अधिनियम, 1989 के तहत प्रावधानों को शामिल करने वाले विशेष न्यायालय द्वारा पारित समन आदेश को चुनौती दी गई है, वह सुनवाई योग्य नहीं है।
इसके अलावा, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना था कि यदि एससी और एसटी (पीओए) अधिनियम, 1989 के तहत प्रावधान से जुड़े मामले में विशेष न्यायालय द्वारा कोई अंतःक्रियात्मक आदेश पारित किया जाता है, वही एससी और एसटी (पीओए) अधिनियम, 1989 की धारा 14-ए (1) के तहत प्रदान किए गए आदेशों की श्रेणी में आएगा और उक्त आदेश के खिलाफ, केवल धारा 14-ए के तहत, जैसा प्रदान किया गया है, हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील पेश होगी।
उड़ीसा हाईकोर्ट का फैसला
उड़ीसा हाईकोर्ट ने अनुज कुमार उर्फ संजय (सुप्रा) में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से अपनी असहमति व्यक्त की और कहा,
"जहां तक सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को हटाने का संबंध है, यह न्यायालय कानून के इस तरह के प्रस्ताव से सहमत नहीं है। धारा 482 सीआरपीसी के तहत प्रदत्त शक्ति निहित शक्ति है। इसलिए, कल्पना के किसी भी विस्तार में यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता है कि उसे किसी भी कानून के प्रावधानों द्वारा निर्देशित और नियंत्रित किया जाना है। ऐसा कहते हुए, यह न्यायालय कानून के प्रस्ताव से भी अवगत है कि जब कोई कानून एक विशिष्ट उपाय प्रदान करता है, यानि जब एक वैकल्पिक उपाय प्रदान किया जाता है तो पार्टियों के लिए पहले उक्त उपाय को समाप्त करना आवश्यक होता है।"
केस टाइटल: स्मृतिकांत रथ और अन्य। बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।
केस नंबर: CRLA No. 408 of 2022
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (ओरी) 121