लॉकडाउन में स्कूल फीस जमा करने से छूटः अलग-अलग उच्‍च न्यायालयों का क्या है आदेश

LiveLaw News Network

6 July 2020 4:28 AM GMT

  • लॉकडाउन में स्कूल फीस जमा करने से छूटः अलग-अलग उच्‍च न्यायालयों का क्या है आदेश

    अशोक किनी

    सुप्रीम कोर्ट पैरेंट्स एसोसिएशन द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार कर रही है, जिसमें 1 अप्रैल से 1 जुलाई 2020 तक, तीन महीने की अवधि के लिए निजी स्कूल को फीस देने से छूट की मांग की गई है।

    9 राज्यों, राजस्थान, ओडिशा, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली और मध्य प्रदेश में पैरैट्स एसोसिएशनों की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि "एक माता-पिता की वित्तीय कठिनाइयों के कारण फीस भुगतान में अक्षमता की स्‍थति में, संविधान में प्रदान किए गए ..." शिक्षा के अधिकार के मौलिक अधिकार की रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट जल्द ही मामले पर सुनवाई करेगा।

    मौजूदा आलेख में यह जानने का प्रयास किया गया है कि विभिन्न हाईकोर्टों ने कैसे, ऐसी ही याचिकाओं को निस्तारण किया।

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने स्कूलों को फीस मांगने से रोका

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस संबंध में पहला आदेश पारित किया था, जिसमें राज्य के सभी निजी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों को उन अभिभावकों से ट्यूशन फीस मांगने पर रोक दिया गया था, जो अपने बच्‍चों को ऑनलाइन क्लासेज दिलाने में असमर्थ थे। यह आदेश मई 2020 में पारित किया गया था।

    अदालत ने निर्देश दिया था कि "यह केवल उन छात्रों पर है, जो निजी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऑनलाइन पाठ्यक्रमों का उपयोग करने में सक्षम हैं, उन्हें ट्यूशन फीस का भुगतान करने की आवश्यकता होगी, अगर वे ऐसा करना चाहते हैं।"

    यह आदेश मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने 2 मई, 2020 के राज्य सरकार के आदेश के अनुरूप पारित किया था, जिसमें निजी स्कूलों को ट्यूशन फीस के अलावा कोई भी फीस लेने से रोक दिया गया था, और ट्यूशन फीस के भुगतान को स्वैच्छिक बना दिया गया था।

    "इन संस्थानों की, छात्रों से फीस लिए बिना खर्च उठाने की कठिनाइया समझ में आती है, ऐसे संकट के समय की आवश्यकता है कि साधन-संपन्‍न, साधन-हीनों की मदद करें। सरकार का 02 मई 2020 का आदेश निजी स्कूलों के लिए बाध्यकारी है, और जब तक यह लागू रहता है, तब तक वे इसकी निर्धारित शर्तों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।"

    इस आदेश के खिलाफ कई अपीले पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी, जिन पर सभी पक्षों को नोटिस जारी किया जा चुका है।

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, स्कूल फीस न जमा करने पर एडमिशन रद्द न करें

    स्कूल फीस के मुद्दे पर दायर रिट याचिकाओं पर विचार करते हुए, गुजरात हाईकोर्ट ने 19 जून को पारित एक आदेश में, महाधिवक्ता को निर्देश दिया कि वे इन मुद्दों को राज्य सरकार के साथ उठाएं और देखें कि राज्य भर के निजी स्कूल 30 जून 2020 तक फीस न जमा करने के करण छात्रों के एडमिशन रद्द न करें। कोर्ट ने मामलों की सुनवाई के लिए17 जुलाई 2020 को पोस्ट कर दिया।

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा, स्कूलों को ट्यूशन फीस लेने के अध‌िकार है

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि सभी स्कूल, चाहे वे लॉक-डाउन में ऑनलाइन कक्षाएं चला रहे हों या नहीं, ट्यूशन फीस लेने के हकदार हैं। न्यायमूर्ति निर्मलजीत कौर ने वित्तविहीन निजी स्कूलों और स्कूली छात्रों के अभिभावकों द्वारा दायर याचिकाओं पर, विचार करते हुए मामले में विभिन्न दिशा-निर्देश जारी किए।

    याचिकाओं में निदेशक, स्कूल शिक्षा की ओर से 14 मई को जारी आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें फीस लेने पर रोक लगाई गई ‌थी।

    "माता-पिता की शिकायत है कि उनसे उन सेवाओं के लिए भुगतान नहीं करवाय जाना चाहिए, जिन्हें दिया नहीं गया है, खासकर, जब या तो कुछ स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाएं चलाई नहीं या कुछ उसे नहीं ले पाए क्योंकि वे दूरस्थ इलाकों में रहते हैं, जहां ऑनलाइन सुविधा उपलब्ध नहीं है, यह एक उचित शिकायत हो सकती है, लेकिन यह शिकायत करते समय, माता-पिता इस तथ्य को भूल गए हैं, जैसा कि पहले ही ऊपर उल्लेख किया गया है, कि कर्मचारियों और शिक्षकों को लॉकडाउन की अवधि में भी लगातार वेतन का भुगतान किया जाना है। "

    दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्यूशन फीस को सही ठहराया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शिक्षा निदेशालय को निर्देश देने की मांग को खारिज कर दी, जिसमें स्कूलों को लॉकडाउन के दौरान ट्यूशन फीस लेने पर रोक लगाने को कहा गया था। कोर्ट ने कहा कि ट्यूशन फीस लेना उचित है क्योंकि स्कूल ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित कर रहे हैं, अध्ययन सामग्री प्रदान कर रहे हैं, और कर्मचारियों के वेतन का भुगतान कर रहे हैं। कोर्ट ने यह आदेश नरेश कुमार द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज करते हुए दिया, जिसमें कहा गया था कि निजी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों को लॉकडाउन के दौरान ट्यूशन फीस लेने से रोकना चाहिए।

    केरल हाईकोर्ट: टीचिंग / नॉन-टीचिंग स्टाफ का वेतन भुगतान किया जाना है

    केरल हाईकोर्ट ने भी लॉकडाउन के दौरान स्कूल फीस लेने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया। श्री बुद्ध सेंट्रल स्कूल के दो स्टूडेंट्स, श्रीलक्ष्मी एस और धन्विन एम पिल्लई ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया था कि वह सरकार से यह सुनिश्चित करवाए कि आधुनिक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तकनीकों का उपयोग करके ऑनलाइन/वर्चुअल क्लासेज का संचालन करने वाले स्कूलों को निर्देश जारी किए जाएं कि ऐसे क्लासेज से किसी छात्र को मात्र इसलिए वंचित न किया जाए कि उन्होंने फीस जमा नहीं की है।

    उन्होंने कहा था कि मार्च से मई, 2020 तक स्कूल बंद थे और ऑनलाइन कक्षाएं केवल जून 2020 से शुरू हुई थीं, जबकि छात्रों से कहा गया है कि वे उस अवधि के लिए भी ट्यूशन फीस का भुगतान करें।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूरी स्कूल फीस माफ करने की याचिका खारिज की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य के सभी स्कूलों और कॉलेजों की ट्यूशन फीस सहित सभी फीस पूरी तरह से माफ कराने के लिए दायर जनहित याचिका खारिज कर दिया।

    आशुतोष कुमार पांडेय की ओर से दायर रिट याचिका में तर्क दिया गया कि COVID संकट के दौरान स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने की अवधि को "छुट्टी" के रूप में माना जाना चाहिए और संस्थानों को इस तरह की फीस की मांग करने से रोकना चाहिए।

    न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की खंडपीठ ने कहा था, "अधिकांश स्कूल और कॉलेज छात्रों के लिए ऑन-लाइन कक्षाएं ले रहे हैं और शिक्षक या तो लाइव कक्षाएं ले रहे हैं या छात्रों को वीडियो भेज रहे हैं। यहां तक ​​कि छात्रों को होमवर्क दिया जा रहा है और शिक्षकों उसकी जांच भी कर रहे हैं।"

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सरकार से संपर्क करने का सुझाव दिया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दायर एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें स्कूलों को COVID-19 संकट और स्कूली बच्चों के माता-पिता को हुई आर्थिक तंगी को देखते हुए 50% स्कूल फीस माफ करने निर्देश देने की मांग की गई थी।

    मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति केके टेड की खंडपीठ ने डॉ बिनू वर्गीस की जनहित याचिका को खारिज कर दिया।

    बेंच ने कहा, "याचिकाकर्ता ने एक सामान्य बयान दिया है कि स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता वित्तीय संकट में हैं। यदि बयान सही है, तो ऐसे माता-पिता को एक समूह में सरकार से संपर्क करने और ट्यूशन फीस कम करने के लिए दिशानिर्देशों तैयार करने और लॉकडाउन में आई दिक्‍कतों के ‌लिए राहत की मांग करने से कोई रोक नहीं रहा है। ...शैक्षणिक नीति के मामलों में न्यायालयों को थोड़ी दूरी पर रहना चाहिए।

    राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार के नीतिगत फैसले का हवाला दिया

    राजस्थान हाईकोर्ट ने स्कूल फीस की माफी की मांग करने वाली एक जनहित याचिका का निस्तारण कर दिया, जब सरकार ने अदालत को बताया कि इस संबंध में नीतिगत निर्णय लिया जा चुका है। याचिकाकर्ता, अधिवक्ता राजीव भूषण बंसल ने लॉकडाउन की स्थिति के कारण यह कहते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि अभिभावक निजी स्कूल प्राधिकारियों को आवश्यक फीस देने में असमर्थ हैं। इसलिए, उन्होंने प्रार्थना की थी कि स्कूल की फीस का भुगतान माफ कर दिया जाए। कोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता गणेश मीणा की दलीलों के बाद अर्जी का निस्तारण किया। उन्होंने अपनी दलील में कहा था कि सरकार ने 15 मार्च, 2020 को निजी स्कूलों की फीस के देय भुगतान को तीन महीने के लिए टालने का आदेश जारी किया था।

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा, संस्थाएं उस कामों के लिए फीस नहीं लेंगी हैं, जो नहीं हो रहे हैं

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एसोसिएशन ऑफ अनएडेड सीबीएसई स्कूल्स की ओर से दायर एक याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांग, याचिका में राज्य सरकार की अध‌िसूचनाओं को चुनौती दी गई ‌थी।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संस्थान लॉकडाउन की अवधि के दौरान (जब तक स्कूल बंद हैं) परिवहन और मेस आद‌ि के लिए शुल्क नहीं लेंगे।

    मद्रास, कलकत्ता और उड़ीसा के उच्च न्यायालयों में भी इसी तरह की मांग वाली रिट याचिकाएं लंबित हैं, उन पर कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया गया है।

    Next Story