सुप्रीम कोर्ट का सीमा विस्तार का आदेश सेक्शन 167(2) सीआरपीसी के तहत डिफॉल्ट जमानत के अधिकार को प्रभावित नहीं करताः उत्तराखंड हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
12 May 2020 8:22 PM IST
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अभियुक्त के अविलोप्य अधिकारों, कि 60 या 90 दिनों की हिरासत की समाप्ति के बाद उसे डिफॉल्ट जमानत पर रिहा किया जाए, पर जोर देते हुए मंगलवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा COVID-19 के मद्देनजर मामले दर्ज करने की सीमा अवधि के विस्तार का सामान्य आदेश, सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत अभियुक्त की डिफॉल्ट जमानत के अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा।
जस्टिस आलोक कुमार वर्मा ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि सीमा विस्तार के आदेश का अर्थ यह नहीं है कि अदालत ने पुलिस जांच की अवधि 60 या 90 दिन बढ़ा दी है।
उन्होंने कहा,
"माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उक्त आदेशों में यह उल्लेख नहीं किया है कि इन आदेशों में जांच को भी शामिल किया जाएगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश उच्च न्यायालयों सहित सभी अदालतों के लिए बाध्यकारी हैं। किसी भी अदालत को उनकी व्याख्या का अधिकार नहीं है। इसलिए, माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों में जांच को शामिल नहीं किया गया है।"
पिछले सप्ताह मद्रास हाईकोर्ट ने भी एक ऐसा ही आदेशा पारित किया था, जिसमें यह माना गया था कि सीआरपीसी की धारा 167 को अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के लिए सीमा की अवधि के रूप में नहीं माना जा सकता है। जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने उस फैसले में कहा था,
"20 मार्च, 2020 से 29 जून, 2020 की अवधि में, निर्दिष्ट कानूनों के तहत कुछ कार्यों के अनुपालन या पूर्ण होने की समय सीमा को बढ़ाया गया है। सीआरपीसी की धारा 167 (2) के संबंध में इस प्रकार का परिवर्तन नहीं किया गया है।"
वर्तमान आदेश नियमित जमानत के लिए दायर किए गए एक आवेदन पर पारित किया गया है, जिसके तहत आवेदक ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, चंपावत के आदेश को मौखिक रूप से चुनौती दी थी, जिसने आवेदक के डिफॉल्ट जमानत के अनुरोध को खारिज कर दिया था कि आवेदक डिफॉल्ट जमानत के लाभ का दावा करने का हकदार नहीं है। 23 मार्च, 2020 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश 'सीमा विस्तार का पुनर्संज्ञान' में कहा था-
"(167 धारा के तहत) 90 दिनों या 60 दिनों की अवधि की समाप्ति पर, जैसा भी मामला हो, अभियुक्त के पक्ष में जांच एजेंसी की ओर से डिफॉल्ट जमानत का अविलोप्य अधिकार अर्जित होता है, ...अभियुक्त, यदि मजिस्ट्रेट के निर्देशानुसार जमानत देने में सक्षम है तो उसे को जमानत पर रिहा होने का अधिकार है।"
कोर्ट ने उदय मोहनलाल आचार्य बनाम महाराष्ट्रा राज्य (2001) 5 एससीसी 453 में की गई टिप्पणियों को दोहराया। अदालत ने आगे कहा कि धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत डिफॉल्ट जमानत का अधिकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीमित सीमा के आदेश से प्रभावित नहीं है।
कोर्ट ने आवेदक को व्यक्तिगत बॉन्ड और दो विश्वसनीय जमानतदार प्रस्तुत करने की शर्त पर रिहा करने का आदेश दिया। मौजूदा मामले में आवेदक छात्रवृत्ति घोटाले में आरोपी है, जिसमें लगभग 39,52,000 रुपए गबन का आरोप है।
मामले का विवरण:
केस टाइटल: विवेक शर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य
केस नं: प्रथम जमानत आवेदन संख्या 511/2020
कोरम: जस्टिस आलोक कुमार वर्मा
प्रतिनिधित्व: एडवाकेट सनप्रीत सिंह अजमानी (आवेदक की ओर से); सरकारी एडवोकेट जीएस संधू और सहायक सरकारी एडवोकट जेएस विर्क (राज्य के लिए)
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