सुप्रीम कोर्ट के आदेश का लिमिटेशन केवल वाणिज्यिक न्यायालय के मामलों में लिखित बयान दाखिल करने के पहले 30 दिनों तक लागू होता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

2 Jan 2021 3:45 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश का लिमिटेशन केवल वाणिज्यिक न्यायालय के मामलों में लिखित बयान दाखिल करने के पहले 30 दिनों तक लागू होता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 23 मार्च, 2020 के आदेश में जिसमेंं लिमिटेशन बढ़ाया गया है, वह सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VIII नियम 1 के तहत लिखित बयान वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 के दर्ज कराने के लिए पहले 30 दिनों के लिए लागू होगा न कि अतिरिक्त 90 दिनों के लिए।

    न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य की बेंच ने कहा कि निर्धारित अवधि के बाद की 90 दिनों की अतिरिक्त अवधि है और आदेश VIII नियम 1 सीपीसी के तहत लिमिटेशन की निर्धारित अवधि नहीं है।

    इस मामले में प्रतिवादी को 2 दिसंबर, 2020 को समन भेजा गया था। 30 दिनों की यह लिमिटेशन 2 जनवरी, 2020 को उस समन का समय समाप्त हो गया। प्रतिवादी द्वारा 5 फरवरी, 2020 को समय बढ़ाने के लिए आवेदन दायर किया गया था और लिखित बयान दाखिल करने की तैयारी के लिए 8 सप्ताह का समय मांगा गया था। बचाव पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश पर विश्वास जताया, जिसमें लिमिटेशन का समय बढ़ाने का का उल्लेख किया गया।

    न्यायालय द्वारा माना गया प्रश्न (1) कि क्या 30 दिनों की प्रारंभिक अवधि सीमा के प्रयोजनों के लिए निर्धारित अवधि है और (2) क्या प्रतिवादी सुप्रीम कोर्ट द्वारा 23 मार्च, 2020 को पारित आदेश के तहत बचाव कर सकता है।

    पहले सवाल का जवाब देते हुए कोर्ट ने कहा:

    "संशोधन के शब्द यह स्पष्ट करते हैं कि एक प्रतिवादी को दी गई अतिरिक्त अवधि केवल तभी उपयोग में आती है, जब प्रतिवादी ऑर्डर VIII नियम 1 के तहत निर्धारित अवधि के भीतर अपना लिखित बयान दर्ज कराने में विफल रहा हो, जो 30 दिन की अवधि है। इसलिए, 90 दिनों के बाद की निर्धारित अवधि अतिरिक्त अवधि है, जो ऑर्डर VIII नियम 1 के तहत सीमा की निर्धारित अवधि नहीं है।"

    अदालत ने कहा कि सगुफा अहमद बनाम अपर असम प्लाइवुड प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड में मामले सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के आदेश में स्पष्ट कर दिया था कि दिया गया समय विस्तार केवल लिमिटेशन की निर्धारित अवधि तक ही सीमित है और निर्धारित अवधि से आगे की अवधि का अर्थ नहीं लगाया जा सकता है, जो न्यायालय को निर्धारित अवधि के अलावा अवधि को अनुमति देने या अस्वीकार करने के लिए अपने विवेक का प्रयोग करने की अनुमति देता है।

    बेंच ने कहा:

    "इस अदालत का दृष्टिकोण है कि 23 मार्च, 2020 को सुप्रीम कोर्ट का आदेश सीपीसी के ऑर्डर VIII नियम 1 के तहत लिखित बयान दर्ज करने के लिए पहले 30 दिनों तक ही लागू होगा, न कि 2015 अधिनियम द्वारा कवर किए गए मामलों के लिए निर्धारित अवधि के अतिरिक्त 90 दिनों के लिए।

    इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को उनके विशिष्ट तथ्यात्मक संदर्भ में देखा जाना चाहिए और यह आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति के तहत पारित किए गए थे। इस आदेश की तारीख 18 सितंबर, 2020 थी, अतः वादियों के लिए अब यह विकल्प बंद हो गया है। इस मामले में आवेदन 30 दिनों की निर्धारित अवधि के बाद दायर किया गया था।"

    इस प्रकार, अदालत ने कहा कि उसे लिखित आदेश दर्ज करने के लिए समय बढ़ाने के लिए आवेदन की अनुमति देने के लिए या तो आदेश VIII नियम 1 के तहत प्रदान किया गया कोई भी आधार या सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के आधार पर नहीं मिलता है।

    केस: सिद्धा रियल एस्टेट डेवेलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड बनाम गिरधर फिस्कल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड [CS 245 का 2019]

    कोरम: न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य

    परामर्शदाता: एडिशनल जीशान हक, एडवोकेट मेघजीत मुखर्जी

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story