सुप्रीम कोर्ट का टेलीकॉम कंपनियों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को निर्देश, जांच में जब्त सीडीआर और अन्य रिकॉर्ड्स को अलग से और सुरक्षित सहेजें

LiveLaw News Network

15 July 2020 9:02 AM

  • सुप्रीम कोर्ट का टेलीकॉम कंपनियों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को निर्देश, जांच में जब्त सीडीआर और अन्य रिकॉर्ड्स को अलग से और सुरक्षित सहेजें

    सुप्रीम कोर्ट ने सेलुलर कंपनियों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को सामान्य निर्देश जारी किए हैं कि वे संबंधित अवधि के लिए कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (सीडीआर) और अन्य प्रासंगिक रिकॉर्ड (एविडेंस एक्ट की धारा 39 के अनुसार) "पृथक और सुरक्षित" ढंग से सहेजें, यदि जांच के दौरान उक्त अवधि के विशेष सीडीआर या अन्य रिकॉर्ड को जब्त किया जाता है।

    जस्टिस आरएफ नरीमन, एस रविंद्र भट, और वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने ये निर्देश अर्जुन पंडितराव खोतकर बनाम कैलाश कुशनराव गोरान्ट्याल में दिए गए फैसले में जारी ‌किया। पीठ ने कहा कि धारा 65 बी (4) के तहत आवश्यक सर्टिफिकेट इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के जर‌िए से साक्ष्य की स्वीकार्यता के लिए जरूरी शर्त है।

    अदालत के समक्ष प्रश्न था कि "क्या इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पेश करने के लिए साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी (4) के तहत प्रमाण पत्र अनिवार्य है?"

    दो-जजों की बेंच ने शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अनवर पीवी बनाम पीके बशीर के फैसलों के बीच संघर्ष को देखते हुए प्रश्न को संदर्भित किया था। अदालत ने शफी मोहम्मद में दो-जजों की बेंच के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एक पार्टी, जिसके पास वह उपकरण नहीं है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज को पेश किया जाना है, उसे साक्ष्य अध‌िनियम की धारा 65 बी (4) के तहत प्रमाण पत्र पेश करने की आवश्यकता नहीं हो सकती है।

    न्यायालय ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 सी के अनुसार, एक मध्यस्थ ऐसी जानकारी को सहेजेगा और संरक्षित रखेगा, जिसे ऐसी अवधि के लिए निर्दिष्ट किया जा सकती है और ऐसे तरीके और प्रारूप में रखना पड़ा सकता है, जैसा कि केंद्र सरकार अनुशंसा करेगी।

    हालांकि, अदालत ने पाया कि दूरसंचार विभाग की लाइसेंस की शर्तों में आमतौर पर यह बाध्यता होती है कि

    इंटरनेट सेवा प्रदाता और मोबाइल टेलीफोनी प्रदाता इलेक्ट्रानिक कॉल रिकॉर्ड और इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के लॉग रिकॉर्ड को एक वर्ष की सीमित अवधि के लिए सहेजें और संरक्षित रखें। यदि पुलिस या अन्य व्यक्ति ( जिसकी रुचि हो, या किसी मुकदमेबाजी के किसी पक्ष हो), उक्त अवधि में, उन अभिलेखों को प्राप्त करने में विफल रहते हैं, या अभिलेखों को प्राप्त करते हैं, लेकिन प्रमाण पत्र प्राप्त करन में विफल रहते हैं, ऐसी ‌स्थिति में पोस्ट डेटेड सर्टिफिकेट (अर्थात ट्रायल शुरु होने के बाद जारी किया गया) की पेशी, से यह आशंका होगी कि अप्रमाणित डेटा प्रस्तुत किया गया है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह अभियुक्त को एक संकटपूर्ण स्थिति में डालता है, जैसा कि, घटना में, अभियुक्त साक्ष्य अधिनियम की धारा 45A के तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षक की राय मांगकर, प्रमाण पत्र की निष्पक्षता को चुनौती देना चाहता है, कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (यानी सेवा प्रदाता के कंप्यूटर में कॉल लॉग का डेटा) गायब हो सकता है।"

    पीठ ने ऐसे परिस्थिति के लिए सामान्य निर्देश जारी किया और कहा,

    "ऐसी स्थितियों से छुटकारा पाने के लिए, सेलुलर कंपनियों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को सामान्य निर्देश जारी किए जाते हैं कि वे संबंधित अवधि (साक्ष्य अधिनियम की धारा 39 के अनुसार) के लिए सीडीआर और अन्य प्रासंगिक रिकॉर्ड सहेज कर रखें......। इन निर्देशों को क्रिमिनल ट्रायल में तब तक लागू किया जाएगा, जब तक कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 सी के तहत या लाइसेंस के प्रासंगिक शर्तों के तहत उपयुक्त दिशा-निर्देश न‌हीं जारी किए जाते हैं। "

    न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि ये निर्देश सभी कार्यवाहियों में लागू होंगे, जब तक कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67C के तहत दूरसंचार और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के अनुपालन के लिए नियम और निर्देश तैयार नहीं किए जाते हैं।

    जजमेंट को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें


    Next Story