सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को चिन्हित यौनकर्मियों को, पहचान पत्र के बिना, सूखा राशन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया, हलफनामा मांगा
LiveLaw News Network
29 Sept 2020 1:38 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) द्वारा चिह्नित यौनकर्मियों को पहचान पत्रों का आग्रह के बिना सूखा राशन प्रदान करें।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें निर्देशों से संबंधित आदेश के कार्यान्वयन को निर्धारित करते हुए संबंधित जानकारियां, विशेषकर लाभान्वित यौनकर्मियों की संख्या के साथ चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करें।
न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा कि वह चार सप्ताह में बताए कि क्या वह ट्रांसजेंडरों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता, यौनकर्मियों को भी दे सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश बुधदेव कर्मकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य के कार्यवाही के तहत दायर एक याचिका, जिसमें महामारी के कारण यौनकर्मियों को हो रही कठिनाइयों को उजागर किया गया है, पर उक्त आदेश पारित किया।
कोर्ट ने कहा कि 2011 में, बुद्धदेव कर्मकार के मामले में एक आदेश पारित किया गया था, जिसमें यह कहा गया था कि यौनकर्मियों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है क्योंकि वे मनुष्य हैं और अदालत ने देश में यौनकर्मियों के हालात को समझने के लिए एक समिति का गठन किया था।
जनहित याचिका में कहा गया है कि भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) का अनुमान है कि देश में 8.68 लाख से अधिक महिला यौनकर्मी और 17 राज्यों में 62,137 हिजड़ा / ट्रांसजेंडर हैं, जिनमें से , 62% यौनकर्म में लगे हुए हैं।
यह आदेश पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र और राज्य सरकारों को दिए गए निर्देश की पृष्ठभूमि में आया है, जिसमें उन्हें यौनकर्मियों को भोजन और वित्तीय सहायता प्रदान करने का आग्रह किया गया है।
पीठ ने पिछली तारीख पर कहा था, ".... हमारा विचार है कि IA में मांगी गई राहत पर इस कोर्ट को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। राज्य सरकारों की ओर से पेश विद्वान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और विद्वान वकील को पहचान के प्रमाण पर जोर दिए बिना यौनकर्मियों को मासिक सूखा राशन वितरण और नकद हस्तांतरण के लिए तौर-तरीकों के बारे में निर्देश प्राप्त करने के लिए निर्देशित किया जाता है।"
आज, वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने अदालत को सूचित किया कि यौनकर्मियों की पहचान में बहुत बड़ा अंतर मौजूद है ताकि राहत का दावा किया जा सके जो कि याचिका में कहा गया था।
जनहित याचिका देश की सबसे पुरानी यौनकर्मियों की सामूहिक संस्था दरबार महिला समिति (DMSC) की ओर से दायर की गई है।
सुप्रीम कोर्ट से की गई अपील में कहा गया है कि: - "यौनकर्मियों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीने का अधिकार है क्योंकि वे भी मनुष्य हैं और उनकी समस्याओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।"
कोलकाता स्थित समूह का कहना है कि सामाजिक कलंक और हाशिए के कारण यौनकर्मियों को COVID-19 सहायता कार्यों से बाहर रखा गया है, उन्हें समर्थन की आवश्यकता है।
डीएमएससी के आवेदन में बताया गया है कि आधार और राशन कार्ड जैसे पहचान पत्रों की कमी कारण बड़ी संख्या में यौनकर्मियों को सहायता उपायों से बाहर रखा गया है। यह इस तथ्य के बावजूद कि सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में केंद्र और राज्य सरकारों को राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और बैंक खातों तक पहुंच सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था, जो 2011 में अदालत द्वारा नियुक्त पैनल की सिफारिशों के आधार पर यौनकर्मियों के पुनर्वास और सशक्तिकरण को देखते हुए किया गया था।
आवेदन में निम्नलिखित राहत का सुझाव भी दिया गया है: -
-यौनकर्मियों को COVID-19 महामारी के बने रहने तक, मासिक सूखा राशन, 5000 रुपए प्रति माह नकद, स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए 2500 रुपए अतिरिक्त नकद की सहायता प्रदान करें। लक्षित हस्तक्षेप परियोजनाओं/ राज्य एड्स नियंत्रण समितियों और सामुदायिक आधारित संगठनों के माध्यम से COVID-19 रोकथाम के उपाय जैसे मास्क, साबुन, दवाएं और सैनिटाइजर वितरित किया जाए।
-स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय / कल्याण विभाग, राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों के साथ-साथ समुदाय आधारित संगठनों के प्रतिनिधियों के माध्यम से केंद्र और राज्य स्तर पर COVID-19 राहत प्रयासों का प्रत्यक्ष समन्वय और निगरानी।
-राज्य के श्रम विभागों और असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा बोर्ड को यौनकर्मियों को पंजीकृत करने और उन्हें सामाजिक कल्याण के उपाय प्रदान करने के लिए निर्देशित करें..।
डीएमएससी ने कहा कि उन्होंने देश भर में यौनकर्मियों के साथ काम कर रहे विभिन्न समुदाय आधारित संगठनों और गैर सरकारी संगठनों से परामर्श प्राप्त किया था। आवेदन में यौनकम में लिप्त महिलाओं एवं उनके संगठनों के गठबंधन, तारास द्वारा 5 राज्यों में किए गए मूल्यांकन का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है,
सामाजिक सुरक्षा सेवाओं तक पहुंच का अभाव: यौनकर्मियों के पास सामाजिक सुरक्षा उपायों जैसे पेंशन, स्वास्थ्य लाभ और श्रम अधिकारों तक पहुंच नहीं है। पांच-राज्यों में परामर्श से पता चलता है कि केवल 5% यौनकर्मियों को पंजीकृत श्रमिकों के श्रम कार्ड के आधार पर 1000 / - रुपए का नगद हस्तांतरण प्राप्त हुआ था। तमिलनाडु को छोड़कर, जहां सीबीओ ने घरेलू कामगारों, सब्जी विक्रेताओं, स्ट्रीट फेरीवालों इत्यादि के रूप में पंजीकरण करके यौनकर्मियों के लिए श्रमिक कार्ड प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की है, किसी अन्य राज्य ने इस कार्य को यौनकर्मियों तक नहीं बढ़ाया है;
आवश्यक सेवाओं तक पहुंच का अभाव: लगभग 48% सदस्यों को पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के माध्यम से राशन नहीं मिला। बीमारी की रिपोर्ट करने वाले 26,527 सदस्यों में से, लगभग 97% (25,699) सार्वजनिक और निजी - दोनों प्राथमिक देखभाल सेवाओं का उपयोग करने में असमर्थ हैं। 20% सदस्यों के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हैं और उनमें से 95% (23,425) स्कूलों की फीस का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं। लगभग 61% सदस्य जो किराए के आवास में रहते हैं, 83% किराए और बिजली के बिलों का भुगतान करने में असमर्थ हैं;
आजीविका पर प्रभाव: लगभग 71% (81,433) सदस्यों के पास दिन की जरूरतों के लिए अपने आवश्यक दिन को पूरा करने के लिए आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है। यहां तक कि जिन लोगों को कुछ आय है, उन्हें पिछले चार महीनों से एक दिन में तीन समय का भोजन हासिल करने में कठिनाई हो रही है।