केरल हाईकोर्ट ने हेबियस कॉर्पस याचिका मामले में महिला और उसके बेटे को चरमपंथी संगठनों द्वारा कस्टडी में रखने के मीडिया रिपोर्टों पर दु:ख और निराशा व्यक्त की

LiveLaw News Network

9 July 2021 11:12 AM IST

  • केरल हाईकोर्ट ने हेबियस कॉर्पस याचिका मामले में महिला और उसके बेटे को चरमपंथी संगठनों द्वारा कस्टडी में रखने के मीडिया रिपोर्टों पर दु:ख और निराशा व्यक्त की

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को मीडिया रिपोर्टों पर अपनी निराशा व्यक्त की जिसमें कहा गया कि महिला और उसके बेटे को चरमपंथी निकायों की कस्टडी में रखा गया है। अदालत ने महिला के पति की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर नोटिस जारी किया था।

    पति ने अपनी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी और बेटे को जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया गया और अवैध रूप से कस्टडी में रखा गया था। कोर्ट को बाद में यह पता चला कि महिला ने अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन किया था।

    कोर्ट ने इसके बाद नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा कि वह आमतौर पर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं में ऐसा किया जाता है, जब तक कि बहुत विषम परिस्थितियां न हों।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "जिस क्षण हमने नोटिस जारी किया, उस समय मीडिया में इस तरह के कॉलम लिखे गए कि पत्नी और बेटे चरमपंथी संगठनों की कस्टडी में हैं।"

    कोर्ट ने कहा कि,

    "हम दुखी और निराश हैं क्योंकि इस तरह की जमीनी वास्तविकताओं की जांच किए बिना केवल समुदायों के ध्रुवीकरण का परिणाम घोषित कर देते हैं, जिसे नागरिक समाज बर्दाश्त नहीं कर सकता है। इसलिए हम पुलिस को निर्देश देते हैं कि यदि महिला द्वारा किसी भी तरह के उत्पीड़न की शिकायत की जाती है तो पुलिस यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई करेगी कि मां और बेटे को बिना किसी हस्तक्षेप और उत्पीड़न के अपना जीवन जीने दिया जाए।"

    न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति ज़ियाद रहमान एए की खंडपीठ ने बुधवार को उस व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी।

    अधिकारियों की अनुपस्थिति में न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जियाद रहमान ए.ए ने महिला से बातचीत की। इस चर्चा के दौरान उसने स्वीकार किया कि उसने अपनी मर्जी से इस्लाम कबूल किया और किसी की ओर से कोई जबरदस्ती नहीं की गई।

    यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें अदालत के साथ साझा करने की कोई आशंका है, मां ने जवाब दिया कि बाहरी लोगों और यहां तक कि मीडिया के लगातार हस्तक्षेप के कारण बेटे की पढ़ाई बाधित हो रही है।

    अदालत ने पाया कि अदालत द्वारा नोटिस जारी करने पर मीडिया में कई कॉलम लिखे गए, जिसमें कहा गया कि पत्नी और बेटे चरमपंथी संगठनों की कस्टडी में हैं।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "हम दुखी और निराश हैं क्योंकि इस तरह की जमीनी वास्तविकताओं की जांच किए बिना केवल समुदायों के ध्रुवीकरण का परिणाम घोषित कर देते हैं, जिसे नागरिक समाज बर्दाश्त नहीं कर सकता है। इसलिए हम पुलिस को निर्देश देते हैं कि यदि महिला द्वारा किसी भी तरह के उत्पीड़न की शिकायत की जाती है तो पुलिस यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई करेगी कि मां और बेटे को बिना किसी हस्तक्षेप और उत्पीड़न के अपना जीवन जीने दिया जाए।"

    डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता इस आरोप को खारिज किया कि पत्नी और बेटा एक चरमपंथी संगठन की कस्टडी में हैं। तद्नुसार रिट याचिका का निस्तारण किया गया।

    केस का शीर्षक: गिल्बर्ट पीटी बनाम केरल राज्य और अन्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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