धारा 39 बीमा अधिनियम | बीमा पॉलिसी में नॉमिनेशन नॉमिनेटेड व्यक्ति को कोई लाभकारी हित प्रदान नहीं करता है; उत्तराधिकार कानून के अनुसार कानूनी उत्तराधिकारी दावा करने के हकदार: एमपी हाईकोर्ट

Avanish Pathak

27 Sep 2022 10:16 AM GMT

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केवल नामांकन बीमा पॉलिसी के तहत नॉमिनेटड व्यक्ति को कोई लाभकारी हित प्रदान नहीं करता। एक नॉमिनेटेड व्यक्ति केवल बीमा राशि पाने के लिए अधिकृत है, जो कि उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार संवितरण के अधीन है।

    यह देखते हुए कि भारत के लगभग सभी हाईकोर्ट समान विचार रखते हैं, जस्टिस अंजुली पालो ने कहा कि जब तक यह मानने के लिए मजबूत और बाध्यकारी कारण न हो कि ये सभी निर्णय पूरी तरह से गलत हैं, न्यायालय को एक अलग दृष्टिकोण लेने में तेजी नहीं दिखानी चाहिए।

    मामला

    मामले के तथ्य यह थे कि मृतक ने एक जीवन बीमा पॉलिसी खरीदी थी और अपने पिता/याचिकाकर्ता को नामित किया था। बीमित व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी/प्रतिवादी (पत्नी/विधवा) ने अपने दिवंगत पति की जीवन बीमा पॉलिसी के तहत मृत्यु लाभ जारी करने के लिए बीमा कंपनी को एक पत्र लिखा। हालांकि, उनके अनुरोध को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि याचिकाकर्ता एकमात्र नामित व्यक्ति है।

    इसके बाद पत्नी ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 372 के तहत एक आवेदन दायर कर प्रार्थना की कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र उसके पक्ष में जारी किया जाए, जिसे निचली अदालत ने आंशिक रूप से अनुमति दी थी। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने अपीलीय अदालत में इसके खिलाफ अपील दायर की।

    अपीलीय अदालत ने इस आधार पर अपील को खारिज कर दिया कि प्रतिवादी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के तहत सभी लाभ पाने की हकदार थी क्योंकि वह अपने पति की कानूनी वारिस थी।

    अपीलीय अदालत ने आगे कहा कि केवल नॉमिनेशन के आधार पर याचिकाकर्ता नॉमिनेटेड व्यक्ति के रूप में किसी लाभ का दावा नहीं कर सकता है। रद्द करने के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने कोर्ट का रुख किया।

    याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि वह अपने बेटे की बीमा पॉलिसी में एकमात्र नामित व्यक्ति था, जो मृतक की इच्छा थी। बीमा अधिनियम की धारा 39 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि उनके बेटे के मृत्यु लाभ पर उनका एकमात्र दावा है। इसलिए यह तर्क दिया गया कि आक्षेपित आदेश रद्द किए जाने योग्‍य हैं।

    रिकॉर्ड पर मौजूदा दस्तावेजों और पार्टियों के प्रस्तुतीकरण की जांच करते हुए, कोर्ट ने कहा कि बीमा पॉलिसी के संबंध में नामांकन केवल बीमाकर्ता के लाभ के लिए है, ताकि उन्हें पॉलिसी के तहत अपनी देयता का वैध निर्वहन मिल सके...।

    सरबती ​​देवी बनाम उषा देवी में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लेख करते हुए, न्यायालय ने कहा कि नामांकन नामांकित व्यक्ति को कोई लाभकारी हित प्रदान नहीं करता है।

    "उक्त निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि नामांकन नामांकित व्यक्ति को कोई लाभकारी हित प्रदान नहीं करता और वह बीमा राशि प्राप्त करने का एक मात्र अथॉराजेशन है, जिसका दावा उत्तराधिकार कानून के अनुसार बीमित व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा किया जा सकता है।"

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादियों के पक्ष में नीचे की अदालतों द्वारा दिए गए समवर्ती निष्कर्षों में कोई अवैधता या विकृति नहीं थी। इसलिए, कोर्ट ने माना कि आक्षेपित आदेशों में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। इसी के तहत याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: अरुण कुमार सिंह बनाम श्रीमती जया सिंह व अन्य

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