[धारा 29 पॉक्सो एक्ट] आरोप चिकित्सा साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं, आरोपी के खिलाफ अनुमान यांत्रिक नहीं हो सकता: मद्रास हाईकोर्ट ने सेना के जवान को बरी किया

Avanish Pathak

26 Oct 2023 3:21 PM GMT

  • [धारा 29 पॉक्सो एक्ट] आरोप चिकित्सा साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं, आरोपी के खिलाफ अनुमान यांत्रिक नहीं हो सकता: मद्रास हाईकोर्ट ने सेना के जवान को बरी किया

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में सेना के एक जवान की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया, जिसे POCSO अदालत ने दस साल की कैद और 10,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी।

    जस्टिस साथी कुमार सुकुमार कुरुप ने कहा कि हालांकि अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि इसंर्सन के परिणामस्वरूप ब्लीडिंग हुई थी, लेकिन गंभीर यौन उत्पीड़न को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं था और इस प्रकार आरोप बिना किसी चिकित्सीय सबूत के थे। अदालत ने आगे कहा कि जब आरोप चिकित्सा साक्ष्य से साबित नहीं होते हैं, तो POCSO अधिनियम की धारा 29 के तहत अनुमान के यांत्रिक अनुप्रयोग के परिणामस्वरूप न्याय की विफलता होगी।

    कोर्ट ने कहा,

    “इसलिए, यह एक स्पष्ट मामला है कि अभियोजन पक्ष ने चिकित्सा साक्ष्य के माध्यम से आरोपों को साबित नहीं किया है। इसलिए, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 29 के तहत धारणा, अगर यांत्रिक रूप से इन परिस्थितियों में लागू की जाती है, तो न्याय का गर्भपात हो जाएगा।”

    अदालत प्रताप कुमार नायक की अपील पर सुनवाई कर रही थी। नायक के खिलाफ मामला यह था कि जब नायक की पत्नी और एक पड़ोसी खरीदारी करने गए थे, तब उसने पड़ोसी की बेटी का यौन उत्पीड़न किया था। बाद में जब पीड़ित बच्ची ने अपनी मां को घटना की जानकारी दी तो मां ने थाने जाकर शिकायत दी। चूंकि वह केवल उड़िया जानती थी, इसलिए शिकायत का हिंदी और फिर तमिल में अनुवाद किया गया और दर्ज किया गया।

    अपील के दौरान नायक ने दावा किया कि बदला लेने के लिए उसे गलत तरीके से आरोपी बनाया गया है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि मां और पीड़ित बच्चे द्वारा दिए गए बयान विरोधाभासी थे और चिकित्सा साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं थे। उन्होंने मेडिकल सर्टिफिकेट की ओर इशारा किया जिसमें कहा गया था कि पीड़ित बच्चे के शरीर पर विशेष रूप से जननांग क्षेत्र में कोई चोट नहीं थी।

    अतिरिक्त लोक अभियोजक ने यह कहते हुए अपील पर आपत्ति जताई कि अकेले पीड़िता के साक्ष्य ही आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त हैं। उन्होंने कहा कि बच्चे के साक्ष्य की पुष्टि मां के साक्ष्य से होती है और इस प्रकार भले ही पुष्टिकारक सामग्री की कमी हो, अदालत पर पीड़िता के बयान पर विश्वास करने/मानने का दाय‌ित्व है।

    हालांकि, अदालत ने कहा कि यदि अतिरिक्त लोक अभियोजक की दलील को स्वीकार कर लिया जाए, तो इसका मतलब यह होगा कि नायक को केवल पीड़िता और उसकी मां के सबूतों के आधार पर यंत्रवत् दोषी ठहराया जाएगा।

    अदालत ने यह भी पाया कि पीड़िता के बयान के अनुसार, उसकी योनि में लिंग डाला गया था जहां उसे रक्तस्राव हुआ था। हालांकि, अदालत ने कहा कि अगर उसकी योनि में खून होता, तो उसकी हाइमन फट जाती, लेकिन मेडिकल परीक्षक के प्रमाण पत्र में कहा गया कि उसके शरीर पर कोई चोट नहीं थी और हाइमन बरकरार था। इस प्रकार, अदालत ने पाया कि गंभीर यौन उत्पीड़न का अपराध आकर्षित नहीं हुआ।

    इस प्रकार, अदालत ने चेन्नई की महिला अदालत के सत्र न्यायाधीश के फैसले और दोषसिद्धि को रद्द कर दिया और नायक को POCSO अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत आरोपों से बरी कर दिया।

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (मद्रास) 330

    केस टाइटल: पी प्रताप कुमार नायक बनाम राज्य

    केस नंबर: Crl.A.No.433 of 2018

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