धारा 23 वरिष्ठ नागरिक अधिनियम: मद्रास हाईकोर्ट बेटे के पक्ष में निष्पादित सेटलमेंट डीड को रद्द किया, बेटा वृद्ध माता -पिता की देखभाल करने में विफल रहा था

Avanish Pathak

10 Oct 2022 2:31 PM IST

  • God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट एक बूढ़े दंपति की दुर्दशा से द्रवित होकर ट्रायल कोर्ट के एक फैसले और डिक्री को बरकरार रखा और उसके बेटे के पक्ष में निष्पादित एक सेटलमेंट डीड को रद्द कर दिया। कोर्ट ने माना कि बेटा बूढ़े माता -पिता की देखभाल करने में विफल रहा।

    कोर्ट ने कहा,

    अगर विलेख को भरणपोषण अधिनियम की धारा 23 के आधार पर एक सेटलमेंट डीड भी माना जाता है, तो उसे उस हद तक शून्य घोषित किया जाना चाहिए, जिस हद तक वादी ने अपने माता-पिता की चिकित्सा आवश्यकताओं की अनदेखी करके विलेख के तहत उस पर आरोपित दायित्वों का पालन नहीं किया है।

    माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 की व्याख्या करते हुए जस्टिस पीटी आशा ने कहा,

    "भरण-पोषण अधिनियम का उद्देश्य माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण की गारंटी देना है। अधिनियम की धारा 4 (3) के अनुसार बच्चे अपने माता -पिता की जरूरतों को पूरा करने के लिए बाध्य होते हैं।"

    वर्तमान मामले में वादी यानि प्रतिवादी दंपति के सबसे बड़े बेटे ने एक घोषणा के लिए सिटी सिविल कोर्ट में आवेदन दायर किया था कि सेटलमेंट डीड को रद्द करने का विलेख शून्य है। उनके माता -पिता ने इस शर्त पर एक ‌सेटलमेंट डीड को अंजाम दिया था कि वादी अपने जीवनकाल तक भोजन, कपड़े, चिकित्सा सुविधाएं आदि देकर प्रतिवादियों की देखभाल करता है।

    ट्रायल कोर्ट ने यह मानने के बाद मुकदमा खारिज कर दिया कि वादी (पुत्र) सेटलमेंट डीड की शर्तों का पालन करने में विफल रहा और जब उसके माता -पिता मेडिकल इमर्जेंसी में थे, तो उनका ध्यान देने में विफल रहा।

    अपीलीय अदालत ने अपील में ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों को खारिज कर दिया। अपीलीय अदालत ने कहा कि सेटलमेंट डीड के निष्पादन के तुरंत बाद प्रॉपर्टी को स्थानांतरित कर दिया गया था और वादी ने अपनी मां के खाते में तीन लाख रुपये भी ट्रांसफर किए थे। इस प्रकार, शर्तों का अनुपालन किया गया था, जिसके बाद पीड़ित माता-पिता ने उच्च न्यायालय से संपर्क किया।

    माता -पिता ने प्रस्तुत किया कि बेटा अस्पताल में भर्ती होने पर उनकी देखभाल करने या उनके चिकित्सा खर्चों के लिए भुगतान करने में विफल रहा था। सेटलमेंट डीड को निष्पादित करने के समय तीन लाख रुपये का भुगतान करने के अलावा, बेटे द्वारा कोई अन्य वित्तीय सहायता प्रदान नहीं की गई थी।

    बेटे ने रद्द करने के आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी कि सेटलमेंट डीड के तहत, माता -पिता को सूट संपत्ति से किराया प्राप्त करने का अधिकार दिया गया था और इसे भरण-पोषण राशि के रूप में माना जाना चाहिए। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि विलेख को एकतरफा रूप से रद्द नहीं किया जा सकता है क्योंकि उन्होंने इसके निष्पादन के लिए तीन लाख रुपये का भुगतान किया था।

    इसके लिए, अदालत ने कहा कि किराए प्राप्त करने के अधिकार के अलावा, विलेख ने स्पष्ट रूप से कहा कि पुत्र माता -पिता की देखभाल के लिए बाध्य था।

    अदालत ने कहा कि मामला भरण-पोषण अधिनियम की धारा 23 के के तहत आता है जो एक माता -पिता या वरिष्ठ नागरिक को उनके द्वारा किए गए स्थानांतरण को शून्य घोषित करने में सक्षम बनाता है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए पेश किया गया था कि बच्चों ने संपत्ति प्राप्त करने के बाद भी माता -पिता की देखभाल करें।

    धारा 23 को इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए पेश किया गया है कि वरिष्ठ नागरिकों को उनकी देखभाल करने के वादे के साथ अपनी संपत्ति को स्थानांतरित करने का लालच दिया जाता है और संपत्ति हस्तांतरित होने के बाद, उन्हें छोड़ दिया जाता है।

    चूंकि भरण-पोषण अधिनियम एक विशेष कानून है, इसलिए यह सामान्य कानून पर प्रभावी होगा। इसके अलावा, अधिनियम की धारा 3 यह प्रावधान करती है कि अधिनियम अन्य अधिनियमों पर प्रभावी होगा।

    इस प्रकार अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और अपीलीय अदालत के निष्कर्षों को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: श्री एन नागराजन बनाम श्री शेखर राज

    केस नंबर: SA No.602 Of 2020

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