धारा 216 सीआरपीसी | मुकदमे के दौरान कभी भी आरोप बदला जा सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट
Avanish Pathak
11 Jun 2022 4:24 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 216 के तहत ट्रायल कोर्ट तय किए गए आरोप को बदल सकता है, भले ही मुकदमा काफी हद तक आगे बढ़ गया हो।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने एक आरोपी आनंद द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में निचली अदालत के 31-12-2021 के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसके द्वारा अदालत ने POCSO की धारा 7 के तहत एक आरोप जोड़ा है। यह आईपीसी की धारा 366 ए, 506 और 34 के तहत लगाए गए आरोप के अलावा था।
बेंच ने कहा,
"याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता का यह निवेदन अस्वीकार्य है कि मुकदमा शुरू होने के तीन साल बाद आरोप में बदलाव नहीं किया जा सकता है, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 216 के तहत नियोजित भाषा से ये स्पष्ट है कि एक मामले की सुनवाई कर रही अदालत है आरोप को बदलने का अधिकार दिया है।"
मामला
01-12-2016 को एक शिकायत दर्ज की गई जिसमें आरोप लगाया गया था कि जब पीड़िता स्कूल जा रही थी, तो याचिकाकर्ता ने उसे स्कूल छोड़ने के लिए बाइक पर बैठने के लिए कहा। पीड़िता बाइक पर बैठ गई और वे मस्ठी डिन्ने पहुंचे। वहां आरोपी नंबर 1 ने आरोपी 2 और 3 के साथ पीड़िता को अगवा कर हलसुमारनाडोडी ले गए। इस तरह के अपहरण का मकसद आरोपी नंबर 4 से उसकी शादी कराना था।
शिकायत में आगे बताया गया है कि वह आरोपी के चंगुल से बच निकली और शिकायतकर्ता और उसके रिश्तेदारों से संपर्क किया। इसके बाद, याचिकाकर्ता सहित सभी आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 366ए, 506 और 34 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एक शिकायत दर्ज की गई। 25 जनवरी, 2021 को अभियोजन द्वारा किए गए एक आवेदन के बाद अदालत ने सीआरपीसी की धारा 216 के तहत चार्ज में बदलाव किया और POCSO अधिनियम की धारा 7 को शामिल किया।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश कानून के विपरीत है क्योंकि मुकदमा शुरू होने के तीन साल बाद आरोप बदल दिया गया है जो नहीं किया जा सकता था और आरोप के इस तरह के परिवर्तन के लिए कोई सबूत नहीं था। यह केवल पीड़ित के बयान के आधार पर किया गया था..।
इसके अलावा, जोड़ा गया आरोप याचिकाकर्ता के लिए गंभीर पूर्वाग्रह पैदा करता है। वह यह प्रस्तुत किया गया कि पीड़िता को केवल आरोपी संख्या 4 से उसकी शादी करने के लिए ले जाया गया था और किसी ने भी ऐसा कोई कार्य नहीं किया है जो अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध हो।
दूसरी ओर प्रतिवादी ने तर्क दिया कि आरोप को सत्र न्यायाधीश द्वारा किसी भी समय बदला जा सकता है और अब किए गए आरोप में परिवर्तन अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध को दर्शाता है।
निष्कर्ष
पीठ ने सीआरपीसी की धारा 216 का हवाला दिया, जिसके अुनसार न्यायालय आरोप बदल सकता है।- (1) कोई भी न्यायालय निर्णय सुनाए जाने से पहले किसी भी समय किसी भी आरोप को बदल या जोड़ सकता है।
कोर्ट ने कहा, "आरोप में परिवर्तन की यह शक्ति, जैसा कि कानून में पाया गया है, किसी भी न्यायालय द्वारा निर्णय की घोषणा से पहले प्रयोग किया जा सकता है, जिसका अर्थ है कि मामला निर्णय के लिए आरक्षित होने के बाद भी आरोप को बदला जा सकता है।"
मामले में अनंत प्रकाश सिन्हा @ अनंत सिन्हा बनाम हरियाणा राज्य और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा रखा गया था और डॉ. नल्लापारेड्डी श्रीधर रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य पर भरोसा किया गया, जहां यह कानून तय किया गया था।
इसके बाद यह कहा गया, "शीर्ष न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों के आलोक में, जैसा कि ऊपर उद्धृत किया गया है, याचिकाकर्ता की ओर से पेश विद्वान वकील का यह निवेदन अस्वीकार्य है कि मुकदमे के शुरू होने के तीन साल बाद आरोप को बदला नहीं जा सकता था।"
अदालत ने अधिनियम की धारा 7 को जोड़ने में हस्तक्षेप करने की मांग वाली प्रार्थना को भी खारिज कर दिया।
इसी के तहत याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: आनंद बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: CRIMINAL PETITION No.1829 OF 2022
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 200