धारा 12 डीवी एक्ट| पति/ रिश्तेदारों की ओर से दायर प्रतिक्रियाओं के आधार पर मजिस्ट्रेट समन रद्द कर सकते हैं: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

29 Sep 2022 8:21 AM GMT

  • Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत पारित अपने ही अंतरिम आदेश को रद्द करने के मामले में एक मजिस्ट्रेट अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर होगा, अगर पति और उसके रिश्तेदारों की प्रतिक्रिया को देखने पर, वह पाता है कि उन्हें अनावश्यक रूप से फंसाया गया है या अंतरिम आदेश देने का कोई मामला नहीं बनता है।

    जस्टिस संजय धर की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके तहत याचिकाकर्ता ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत प्रतिवादी द्वारा दायर आवेदन को चुनौती दी थी, जिसे मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, राजौरी के समक्ष लंबित बताया गया था।

    याचिकाकर्ता का आधार यह था कि प्रतिवादी द्वारा उसके खिलाफ दायर याचिका प्रक्रिया का दुरुपयोग है क्योंकि घरेलू हिंसा की कोई भी घटना प्रथम दृष्टया नहीं हुई थी। उसने आगे कहा कि एक बार जब मजिस्ट्रेट द्वारा मौद्रिक मुआवजे के अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया जाता है तो आक्षेपित कार्यवाही रद्द की जा सकती है।

    याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि चूंकि प्रतिवादी कभी भी याचिकाकर्ता के साथ नहीं रहता था, इसलिए पार्टियों के बीच कोई घरेलू संबंध नहीं था। रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पता चला कि विवाह के कुछ ही महीनों बाद प्रतिवादी ने अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया था।

    दलीलों ने आगे खुलासा किया कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी, उसके पिता और भाई के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी और इस संबंध में पुलिस स्टेशन, दारहल में एक एफआईआर दर्ज की गई थी।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, उक्त एफआईआर के बाद प्रतिवादी ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत आक्षेपित आवेदन दायर किया, जिसमें अधिनियम की धारा 23 के तहत एक अंतरिम आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किया गया था।

    याचिकाकर्ता को प्रतिवादी को 8,000/- रुपये प्रति माह के अंतरिम मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    अदालत ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी द्वारा दायर आवेदन पर अपनी विस्तृत आपत्ति दर्ज की और जब मजिस्ट्रेट ने संरक्षण अधिकारी से घटना की रिपोर्ट प्राप्त की तो यह पता चला कि प्रतिवादी के खिलाफ घरेलू हिंसा की कोई घटना नहीं हुई थी। जिसके परिणामस्वरूप मजिस्ट्रेट ने अपने 3 जून, 2022 के आदेश के अनुसार एकपक्षीय अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया गया था। यह लंबित आवेदन था, जिसे याचिकाकर्ता द्वारा मौजूदा याचिका में लगाया जा रहा था।

    मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस धर ने कहा कि जहां तक ​​डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत कार्यवाही का संबंध है, इसे आपराधिक शिकायत दर्ज करने या अभियोजन शुरू करने के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है और इसलिए पति और उनके रिश्तेदार आदि से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के बाद एक मजिस्ट्रेट समन जारी करने के अपने आदेश को रद्द करने में अधिकार क्षेत्र के भीतर हैं या वह कार्यवाही ड्रॉप भी सकते हैं।

    बेंच ने फैसले में कामाची बनाम लक्ष्मी नारायणन, 2022 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा रखा, जिसमें कहा गया था, "यह स्पष्ट है कि मजिस्ट्रेट के पास डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत किसी व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति है, जब मजिस्ट्रेट को पता चलता है कि ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई आधार नहीं है।"

    उक्त याचिका का निपटारा करते हुए पीठ ने सलाह दी कि याचिकाकर्ता अपने खिलाफ कार्यवाही को समाप्त करने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन दायर कर सकता है और यदि ऐसा किया जाता है तो मजिस्ट्रेट दोनों पक्षों को सुनने के बाद कानून के अनुसार उचित आदेश पारित करेगा।

    केस टाइटल: मोहम्मद हुसैन बनाम शबनम आरा

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 169

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