आरटीआई- सीपीआईओ/ पीआईओ 'डाकघरों' के रूप में कार्य नहीं कर सकते और न ही उचित कारण के बिना सूचना रोक सकते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

31 Jan 2021 9:45 AM GMT

  • आरटीआई- सीपीआईओ/ पीआईओ डाकघरों के रूप में कार्य नहीं कर सकते और न ही उचित कारण के बिना सूचना रोक सकते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) या पीआईओ बिना उचित कारण के जानकारी को रोक नहीं सकते हैं और सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी से निपटने के दौरान ऐसे अधिकारी केवल ''डाकघरों'' के रूप में कार्य नहीं कर सकते हैं।

    यह निर्णय दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठ की न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने दिया है।

    कोर्ट ने सीपीआईओ और अन्य सार्वजनिक सूचना अधिकारियों के विभिन्न सिद्धांतों को दोहराते हुए माना कि सरकारी विभागों को सूचना का खुलासा करने से बचने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। ऐसे मामलों में जहां विभाग को लगता है कि कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, तो पूरी तरह से उसके लिए खोज व पूछताछ की जानी चाहिए।

    न्यायालय द्वारा बताए ग सिद्धांत इस प्रकार हैंः

    1. सीपीआईओ/पीआईओ बिना उचित कारण के जानकारी को रोक नहीं सकते हैं।

    2. यदि अधिनियम के तहत वैध आधारों पर मांगी गई जानकारी को अस्वीकार करते हैं तो पीआईओ/ सीपीआईओ को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। सीआईसी की ओर से राय का अंतर आरटीआई अधिनियम की धारा 20 के तहत जुर्माना लगाने का कारण नहीं बन सकता है।

    3. सरकारी विभागों को सूचना का खुलासा करने से बचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इन विभागों द्वारा परिश्रम किया जाना चाहिए और कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है,यह निष्कर्ष निकालने से पहले पूरी खोज और जांच करनी चाहिए।

    4. सूचना का पता लगाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए, और अनुशासनात्मक कार्रवाई का डर निहित स्वार्थों के लिए सूचना का दमन करने के खिलाफ एक निवारक के रूप में काम करेगा।

    5. पीआईओ/सीपीआईओ केवल ''डाकघरों'' के रूप में कार्य नहीं कर सकते हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं कि आरटीआई अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी प्रदान की जाए।

    6. एक पीआईओ/सीपीआईओ को अपने दिमाग को लागू करते हुए सामग्री का विश्लेषण करना चाहिए और फिर सूचना के खुलासे का निर्देश देना चाहिए या सूचना प्रदान न करने के लिए कारण बताने चाहिए। पीआईओ अपने अधीनस्थ अधिकारियों पर भरोसा नहीं कर सकता है।

    7.अनुपालन का कर्तव्य पीआईओ/सीपीआईओ पर निहित है। पीआईओ/सीपीआईओ द्वारा शक्ति का उपयोग निष्पक्षता और गंभीरता के साथ किया जाना चाहिए। पीआईओ/सीपीआईओ लापरवाहपूर्ण दृष्टिकोण नहीं अपना सकते हैं।

    8. बिना उचित कारण के जानकारी को देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने इसके बाद एक्ट की धारा 5 (3) के तहत सीपीआईओ और अन्य पीआईओ की जिम्मेदारियों का विश्लेषण किया,जिनके तहत प्रत्येक अधिकारी के लिए सूचना मांगने वाले व्यक्तियों को 'उचित सहायता प्रदान करना' आवश्यक है।

    कोर्ट ने माना कि,

    ''सीपीआईओ या एसपीआईओ धारा 5 (4) के अनुसार अपने कर्तव्यों के उचित निर्वहन के लिए मांगी गई जानकारी देने में सक्षम बनने के लिए संगठन में उच्च /अन्य अधिकारियों से सहायता ले सकते हैं। ऐसे अन्य अधिकारी जिनसे सहायता मांगी जा सकती है,उनको भी धारा 5 (5) के तहत सीपीआईओ के रूप में भी माना जाएगा। इस प्रकार, सीपीआईओ से आरटीआई अधिनियम के तहत आवेदकों द्वारा उठाए गए प्रश्नों पर गौर करने और उक्त आवश्यक सूचनाओं को निष्पक्ष, गैर-मनमाने और सत्य तरीके से प्रस्तुत करने की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को पूरा करने की उम्मीद की जाती है। पूरे संगठन को भी सीपीआईओ के कामकाज में सहयोग करना है।''

    कोर्ट ने यह टिप्पणी दो सीपीआईओ की तरफ से दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की है। यह सीपीआईओ यूनियन बैंक आॅफ इंडिया के साथ काम करते हैं और उन्होंने सूचना आयुक्त, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा 14 दिसम्बर 2020 को पारित एक आदेश को चुनौती दी थी। उक्त आदेश के तहत, एक आरटीआई आवेदन का सही तरीके से जवाब न देने के मामले में इन दोनों याचिकाकर्ताओं पर दस-दस हजार रुपये जुर्माना लगा दिया गया था।

    प्रारंभ में, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि एक्ट की धारा 8 (1) (डी) के तहत मांगी गई सूचना को ''बैंक के लिए वाणिज्यिक विश्वास'' के रूप में छूट प्राप्त है। हालांकि, सीआईसी द्वारा उन्हें कारण बताओ नोटिस भेजे जाने के बाद उन्होंने अपना स्टैंड बदल लिया था और कहा था कि सूचना से संबंधित आवश्यक दस्तावेज मिल नहीं रहे हैं।

    वर्तमान तथ्यों का अवलोकन करते हुए, न्यायालय ने कहा कि,

    ''रूख/स्टैंड में इस तरह के बदलाव से पता चलता है कि कुछ ऐसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों या सूचनाओं को छुपाने का इरादा था, जो बदनीयत और अनुचित आचरण का पता लगाने में मदद कर सकते थे।''

    न्यायालय ने इस तथ्य पर विचार करते हुए कि दोनों अधिकारी बैंक की सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके है, जुर्माने की राशि को घटाकर पांच-पांच हजार रुपये कर दिया है। जिसका भुगतान छह सप्ताह के अंदर करना होगा।

    निर्णय की तारीखः 22 जनवरी 2021

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