रोमांटिक रिश्ते को भुलाया नहीं जा सकताः मेघालय हाईकोर्ट ने POCSO मामले में किशोर को जमानत दी
LiveLaw News Network
23 Nov 2021 12:51 PM GMT
मेघालय हाईकोर्ट ने सोमवार को उस आरोपी किशोर को जमानत दे दी है, जिसके खिलाफ यौन शोषण के एक मामले में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो अधिनियम) के प्रावधानों के तहत केस दर्ज किया गया था। अदालत ने जमानत देते समय इस बात को ध्यान में रखा कि नाबालिग पीड़िता और आरोपी के बीच रोमांटिक रिश्ता था और उनके बीच सहमति से संभोग हुआ था।
न्यायमूर्ति डब्ल्यू डिएंगदोह ने कहा कि
''रिकॉर्ड, विशेष रूप से पीड़िता और आरोपी के बयानों को देखने पर, प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि दोनों के बीच एक रोमांटिक संबंध था और उनके बीच सहमति से यौन संबंध बने थे। हालांकि इस तथ्य के बावजूद कि एक कथित पीड़िता के नाबालिग होने के मामले में, सहमति की कोई कानूनी वैधता नहीं है, फिर भी अदालत द्वारा जमानत देने की याचिका पर विचार करते समय मामले के इस पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।''
कोर्ट ने आगे कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आरोपी और कथित पीड़िता के बीच एक रोमांटिक संबंध था,फिर भी शिकायतकर्ता ने प्राथमिकी दर्ज करवाई, जो कथित पीड़िता की मां है। अदालत ने आगे कहा कि यह सबूत का विषय है कि क्या कथित कृत्य पॉक्सो अधिनियम के प्रावधान के अनुसार यौन उत्पीड़न का गठन करता है या नहीं?
न्यायालय ने विजयलक्ष्मी व अन्य बनाम राज्य के मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया। इस फैसले में यह माना गया था कि पॉक्सो अधिनियम का इरादा उन किशोरों को दंडित करने का नहीं है जो एक रिश्ते में होते हैं और जिनके बीच यौन संबंध सहमति से बनते हैं।
इस मामले में आरोपी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट की धारा 5 और 6 (पेनेट्रेटिव एंड एग्रेवेटिड पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट) के तहत मामला दर्ज किया गया है। यह भी बताया गया है कि आरोपी और पीड़िता के बीच प्रेम संबंध थे।
आरोपी के वकील एडवोकेट सीबी सावियन ने कहा कि आरोपी किशोर है और इसलिए अपने कृत्यों के परिणामों को समझने में असमर्थ था। तदनुसार, यह तर्क दिया गया कि उसे अन्य कैदियों के साथ कैद में रखने से (जिनमें से कुछ कठोर अपराधी हो सकते हैं), उसके भविष्य के कैरियर पर प्रभाव पड़ेगा।
आगे यह तर्क दिया गया कि बच्चों पर यौन उत्पीड़न के मामलों को रोकने के लिए पॉक्सो अधिनियम बनाया गया है, हालांकि, अधिनियम उन किशोरों की सजा पर विचार नहीं करता है ,जिनके बीच रोमांटिक संबंध होते हैं। यह भी बताया गया कि आरोपी लगभग 11 महीने से न्यायिक हिरासत में है, जबकि पॉक्सो अधिनियम में कहा गया है कि मामलों को एक साल में निपटाया जाना चाहिए।
दूसरी ओर, अतिरिक्त महाधिवक्ता बी भट्टाचार्जी ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी एक ऐसा वयस्क है, जिस पर गंभीर आरोप लगाया गया है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि पॉक्सो अधिनियम के प्रावधान अपराध की गंभीरता के बीच अंतर नहीं करते हैं चाहे वह रोमांटिक प्रेम का परिणाम हो या अन्यथा। आगे तर्क दिया गया कि आरोपी चाहे 19 साल का हो या 40 साल का, कानून की नजर में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
रिकॉर्ड के अवलोकन के बाद, कोर्ट ने कहा कि जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट दाखिल कर दी गई है। इसके बाद स्पेशल कोर्ट (पॉक्सो) ने भी चार्जशीट पर संज्ञान ले लिया था और मामला अब सबूत के स्तर पर है।
कोर्ट ने आगे कहा कि,
''पॉक्सो अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधान की प्रयोज्यता और शामिल अपराध की गंभीरता पर एएजी द्वारा दी गई दलील मामले में पेश किए गए सबूतों की सराहना के अधीन होगी। हालांकि, इस न्यायालय को जमानत देने पर विचार करते समय कथित अपराध की प्रकृति और गंभीरता के साथ-साथ अन्य पहलुओं पर भी विचार करना होगा।''
तदनुसार, अदालत ने 20,000 रूपये के निजी मुचलके व दो जमानतदार पेश करने की शर्त पर जमानत याचिका को अनुमति दे दी। आरोपी को निर्देश दिया गया है कि वह मामले के सबूतों/गवाहों के साथ छेड़छाड़ न करे और पूर्व अनुमति के बिना निचली अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर न जाए।
केस का शीर्षकः एफीना खोंगलाह बनाम मेघालय राज्य
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