'इतना आसान नहीं, इसमें भारी बुनियादी ढांचे के निवेश की आवश्यकता': आम जनता को CIC की सुनवाई में शामिल होने की अनुमति देने वाली जनहित याचिका पर हाईकोर्ट

Shahadat

9 July 2025 9:39 AM

  • इतना आसान नहीं, इसमें भारी बुनियादी ढांचे के निवेश की आवश्यकता: आम जनता को CIC की सुनवाई में शामिल होने की अनुमति देने वाली जनहित याचिका पर हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को जनहित याचिका का निपटारा किया, जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) को आम जनता के साथ-साथ पत्रकारों को भी कार्यवाही में प्रत्यक्ष और वर्चुअल रूप से शामिल होने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

    चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस अनीश दयाल की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि यह मुद्दा उतना सरल नहीं है, जितना याचिकाकर्ता दर्शाना चाहते हैं। इसके लिए भारी बुनियादी ढांचे के निवेश की आवश्यकता है।

    यह याचिका सौरव दास सहित विभिन्न पत्रकारों द्वारा दायर की गई।

    CIC के समक्ष कार्यवाही को आम जनता के लिए खुला रखने के निर्देश की मांग वाली प्रार्थना के संबंध में न्यायालय ने कहा कि आयोग द्वारा 23 सितंबर, 2016 को पारित एक आदेश में पहले ही कहा जा चुका है कि "आमतौर पर मामलों की सुनवाई जनता के लिए खुली होती है।"

    न्यायालय ने कहा,

    "तदनुसार, उपरोक्त के मद्देनजर, प्रार्थना 'क' के संबंध में न्यायालय द्वारा ऐसी कोई घोषणा करने की आवश्यकता नहीं है।"

    सुनवाई कक्षों में जनता और पत्रकारों के भौतिक प्रवेश की अनुमति देने की प्रार्थना के संबंध में खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं को केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष अपना पक्ष रखने की अनुमति दी।

    न्यायालय ने आयोग को निर्देश दिया कि वह कानूनों और नियमों के अनुसार शीघ्रता से उचित निर्णय ले और उक्त निर्णय से याचिकाकर्ताओं को अवगत कराए।

    जनता और पत्रकारों को वर्चुअल सुनवाई में भाग लेने की सुविधा प्रदान करने संबंधी प्रार्थना पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने न्यायालय को बताया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जहां आयोग के समक्ष वर्चुअल सुनवाई की सुविधा से संबंधित मुद्दा लंबित है।

    न्यायालय ने कहा,

    "तदनुसार, हमारी राय है कि याचिकाकर्ताओं को यह सलाह दी जानी चाहिए कि वे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित मामले में कार्यान्वयन की मांग करें, जिससे कार्यवाही के दोहराव से बचा जा सके। याचिका का निपटारा उपरोक्त शर्तों के साथ किया जाता है।"

    सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि आजकल, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के समक्ष यह प्रथा है कि यदि कोई व्यक्ति दिल्ली में है तो उसे CIC मुख्यालय में वर्चुअल माध्यम से उपस्थित होना पड़ता है। यदि वह राष्ट्रीय राजधानी से बाहर है तो उसे निकटतम एनआईसी केंद्र में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ता है।

    उन्होंने आगे कहा कि यद्यपि न्यायालय ने कहा कि CIC की कार्यसूची में लिंक प्रकाशित किए जाने चाहिए, लेकिन ऐसा कोई विशिष्ट आदेश नहीं है कि आम लोग कार्यवाही में शामिल हो सकें।

    इस पर खंडपीठ ने टिप्पणी की:

    "हमें नहीं पता कि आयोग के पास क्या बुनियादी ढांचा उपलब्ध है। वहां कितने आम लोगों को समायोजित किया जा सकता है।"

    इस पर वकील ने कहा कि वर्तमान में सुनवाई कक्षों में मामले का प्रतिनिधित्व करने वालों के अलावा लगभग 15-20 लोगों को समायोजित किया जा सकता है। हालांकि, आम लोगों के लिए वर्चुअल सुनवाई का कोई विकल्प नहीं है।

    न्यायालय ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए और लंबित मामले में वहां पक्षकार दायर करना चाहिए। इस मुद्दे को वहां व्यापक रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है।

    अदालत ने कहा,

    "यह उतना आसान नहीं है जितना आप लोग शायद दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। कई मुद्दे हैं जिनकी वजह से कई हाईकोर्ट ऑनलाइन नहीं हो पा रहे हैं। ऑनलाइन सुनवाई की अनुमति है, लेकिन ऑनलाइन स्ट्रीमिंग की अनुमति नहीं है। कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें आम जनता को समझना होगा। यह इतना आसान नहीं है।"

    खंडपीठ ने आगे कहा,

    "इन सबके लिए बुनियादी ढांचे में भारी निवेश की आवश्यकता है... अगर आप आम जनता को वर्चुअल सुनवाई में शामिल होने की सुविधा देने की बात कर रहे हैं तो क्या इसके लिए बुनियादी ढांचे में निवेश की आवश्यकता नहीं होगी?"

    अदालत ने आगे टिप्पणी की कि हालांकि मुद्दा वर्चुअल अदालतों का नहीं है या यह नहीं है कि जनता को ऐसी सुविधा नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन इस मामले में बुनियादी ढांचे में भारी निवेश की आवश्यकता है।

    अदालत ने कहा,

    "हम आपको यह बताना चाहते थे कि यह मामला उतना आसान नहीं है जितना आप दिखाना चाहते हैं।"

    Case Title: Saurav Das & Ors v. CIC

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