हिरासत में रखे व्यक्ति का पसंद के वकील से परामर्श करना संवैधानिक अधिकार, राज्य इसे कमजोर नहीं कर सकताः दिल्ली उच्च न्यायालय ने शिफा उर रहमान को राहत दी

LiveLaw News Network

11 May 2021 10:49 AM GMT

  • हिरासत में रखे व्यक्ति का पसंद के वकील से परामर्श करना संवैधानिक अधिकार, राज्य इसे कमजोर नहीं कर सकताः दिल्ली उच्च न्यायालय ने शिफा उर रहमान को राहत दी

    Delhi High Court

    यह कहते हुए कि हिरासत में रखे व्यक्ति का पसंद के वकील से परामर्श करना संवैधानिक अधिकार है, जिसे राज्य कमजोर नहीं कर सकता है, दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह जामिया मिलिया इस्लामिया के एलुमनाई एसोसिएशन के अध्यक्ष शिफा उर रहमान को राहत दी, जिन्हें दिल्ली में पिछले साल हुए दंगों के मामलों में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था।

    ज‌स्ट‌िस विभू बाखरू की एकल पीठ ने कहा, "यह अदालत यह स्वीकार करने में असमर्थ है कि इस प्रकार के मामलों में, इस आधार पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन ना करने की अनुमति है कि भले ही उसका अनुपालन किया गया हो, कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

    हिरासत में किसी व्यक्ति का अपनी पसंद के वकील से परामर्श करने का अधिकार भारत के संविधान के तहत प्रदत्त गारंटी है और राज्य के पास, इस आधार पर कि इससे कोई उपयोग उद्देश्य पूरा नहीं होगा, इस संवैधानिक अधिकार को कमजोर करने का विकल्प नहीं है।"

    दिल्ली हाईकोर्ट ने रहमान की ओर से 13 अगस्त 2020 के सत्र न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को के खिलाफ दायर याचिका पर उक्त अवलोकन दिए हैं।

    सत्र न्यायालय ने अपने फैसले में अभियोजन पक्ष के UAPA की धारा 43D के तहत आवेदन को अनुमति दी थी, और जांच और हिरासत की अवधि 17 सितंबर 2020 तक बढ़ा दी थी। इसलिए रहमान ने दावा किया था कि उन्हें अभियोजन पक्ष के आवेदन का विरोध करने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया क्योंकि उन्हें कानूनी सहायत तक पहुंच प्रदान नहीं की गई और यह कि संबंधित न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों के बावजूद, उन्हें वकीलों से परामर्श करने या निर्देश देने का कोई अवसर प्रदान नहीं किया गया।

    इसके अलावा, रहमान ने दिनांक 14 अगस्त 2020 के आदेश, जिसके तहत उन्हें पुलिस हिरासत में भेज दिया गया, को भी चुनौती दी थी। उन्होंने उच्च न्यायलय से प्रार्थना की थी कि उक्त आदेश को अवैध घोषित किया जाए।

    रहमान के खिलाफ पिछले साल 6 मार्च को धारा 147, 148, 149, 120C IPC के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी, बाद मे धारा 302, 307, 124A, 153A, 186, 353, 395, 427, 435, 436, 452, 454, 109 और 114 IPC; सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान का रोकथाम अधिनियम, 1984 की धारा 3 और 4; आर्म्स एक्ट 1959 की धारा 25 और 27 को जोड़ा गया था। इसके बाद, 19 अप्रैल को यूएपीए की धारा 13, 16, 17 और 18 को भी शामिल किया गया था।

    रहमान को 26 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया और 6 मई 2020 तक 10 दिनों की पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया। अभियोजन पक्ष ने एक और आवेदन दिया, जिसमें और 10 दिनों के लिए पुलिस कस्टडी बढ़ाने की मांग की गई, जिसकी अनुमति दिल्ली की एक कोर्ट ने दी दी। बाद में उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

    पिछले साल 24 जुलाई को, राज्य सरकार ने जांच अव‌धि के विस्तार के लिए एक आवेदन दायर किया, जिसे आंशिक रूप से अनुमति दी गई और आईओ को 24 अगस्त 2020 तक लंबित जांच को समाप्त करने के लिए निर्देशित किया गया। रहमान ने उक्त आदेश को चुनौती दी थी कि समय के विस्तार की अनुमति तब तक नहीं दी जानी चाहिए जब तक उनके पास विरोध का प्रभावी अवसर न हो।

    रहमान का कहना था कि उनके वकील ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जर‌िए परामर्श के ल‌िए जेल अधिकारियों से बार-बार अनुरो किया, लेकिन उन्होंने यह सुविधा देने से इनकार किया गया था।

    उच्च न्यायालय में रहमान की ओर से दलील दी गई कि लागू आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है क्योंकि उन्हें अपने वकील से परामर्श करने और राज्य के आवेदन का विरोध करने के लिए किसी भी सार्थक प्रस्तुतिकरण से वंचित ‌किया गया।

    उन्होंने यह दलील दी उन्हें सुनवाई का उचित अवसर नहीं दिया गया था। यह भी दलील दी गई कि जांच को पूरा करने के लिए आदेश में दर्ज समय बढ़ाए जाने का कारण यूएपीए की धारा 43-डी के तहत विचार किया गया विशिष्ट कारण नहीं हैं।

    दूसरी ओर, एएसजी राजू ने उक्त दलीलों का खंडन किया, और कहा कि रहमान को जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने के लिए दिए गए आवेदन का विरोध करने का कोई अधिकार नहीं था। यह तर्क भी दिया गया कि यह भी प्रस्तुत किया गया कि यह मानते हुए कि रहमान अपने वकील के साथ परामर्श करने के हकदार थे, उन्हें लागू आदेश मे दखल का अध‌िकार नहीं दिया जा सकता क्योंकि उन्होंने यह नहीं दिखाया था कि उक्त आदेश के कारण उनके साथ कोई भी पूर्वाग्रह हुआ था।

    मामले में दायर जेल अधीक्षक की स्थिति रिपोर्ट का विश्लेषण करते हुए, अदालत ने कहा कि यह गलत है कि रहमान को अपने वकील से परामर्श करने का कोई अवसर दिया गया।

    "निस्संदेह, याचिकाकर्ता को अपनी पसंद वकील से परामर्श करने का अधिकार है। जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, याचिकाकर्ता को वकील से परामर्श करने के संवैधानिक अधिकार से प्रभावी रूप से इनकार किया गया ।"

    अदालत ने आगे कहा , "सिद्धांत कि एक व्यक्ति, जिसके खिलाफ प्रतिकूल आदेश पारित किया जा सकता है, को पूर्ण सामग्री प्रदान करने की आवश्यकता होती है जिसके आधार पर इस प्रकार आदेश का आधार बनाया जा सकता है, को पूर्वोक्त सीमा तक कम करने की आवश्यकता होती है, लेकिन इससे आगे नहीं। याचिकाकर्ता को एक अवसर दिया जा सकता है.....अपने कारणों को प्रस्तुत करने के लिए कि जांच के लिए आगे समय क्यों नहीं दिया जा सकता है। यह तर्क कि याचिकाकर्ता को जांच पूरी होने के लिए समय के विस्तार का विरोध करने का कोई अधिकार नहीं है...त्रुटिपूर्ण है और इसीलिए रद्द किया जाता है। "

    टाइटिल : शिफा उर रहमान बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली

    शिफा उर रहमान का प्रतिनिधित्व एडवोकेट अभिषेक सिंह, अमित भल्ला और श्रद्धा आर्य ने किया।

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