(शोषण के खिलाफ अधिकार) इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा, आरटीई शिक्षकों को क्यों दिया जा रहा है चपरासी से भी कम वेतन?

LiveLaw News Network

12 Sep 2020 11:24 AM GMT

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को यूपी सरकार से कहा है कि वह उस रिट याचिका पर जवाबी हलफनामा दाखिल करे, जिसमें आरोप लगाया गया है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत भर्ती किए गए प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को चतुर्थ श्रेणी के पदों, यानी चपरासी आदि से भी कम वेतन दिया गया है।

    न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों से कहा है कि वह तीन सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल कर दें। अंतरिम निर्देश में पीठ ने यह भी कहा है कि शिक्षकों को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार मानदेय का भुगतान किया जाए।

    याचिकाकर्ताओं ने उनके पदों को जारी रखने के लिए उनके अनुबंध रिनुअल न करने के खिलाफ यह याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया गया है।

    न्यायालय ने कहा कि इस मामले के ''पहलू पर विचार करने की आवश्यकता है।'' वहीं कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की इन दलीलों पर भी ध्यान दिया कि सात हजार रुपये प्रतिमाह पर शिक्षकों की नियुक्ति करना स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 23 (शोषण के खिलाफ अधिकार) के जनादेश का उल्लंघन करता है।

    यह तर्क भी दिया गया है कि 7,000 रुपये का भुगतान तो मजदूरों के लिए निर्धारित ''न्यूनतम मानक'' को भी पूरा नहीं करता है। ऐसे में योग्य शिक्षकों को उक्त राशि पर रखना राज्य द्वारा किए जा रहे शोषण के अलावा कुछ भी नहीं है।

    'अनुराग एंड अदर्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स (2018)' मामले में हाईकोर्ट की एकल-पीठ द्वारा दिए गए फैसले का हवाला भी दिया गया। इस फैसले में कहा गया था कि 17,000 रुपये के भुगतान के लिए केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों को ''मार्गदर्शक कारक'' माना जाना चाहिए।

    इन दलीलों को देखते हुए कोर्ट का आदेश इस प्रकार था-

    ''एक अंतरिम परमादेश (मैंडेमस) जारी किया जा रहा है,जिसके तहत यह निर्देश दिया जाता है कि इस रिट याचिका का निपटारा होने तक याचिकाकर्ताओं को सरकार के 31 जनवरी 2013 आदेश के अनुसार प्रशिक्षकों के रूप में कार्य करने की अनुमति दी जाए। वहीं इनको सरकार के आदेश के अनुसार मानदेय का भुगतान किया जाए। राज्य द्वारा किए जा रहे शोषण और याचिकाकर्ता कितना मानदेय पाने के हकदार हैं,इन सवालों पर अगली सुनवाई पर विचार किया जाएगा।''

    जहां तक उनके अनुबंधों को रिन्यूअल न करने का संबंध है, न्यायालय ने कहा,

    '' नियुक्त व्यक्तियों के अनुबंधों को इस आधार पर रिन्यूअल करने से मना करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि छात्रों की संख्या संस्थान में 100 से नीचे आ गई है। इसलिए अंतरिम उपाय के तौर पर दिनांक 27 फरवरी 2020 के आदेश को लागू करने पर रोक लगाई जाती है। एक अंतरिम परमादेश जारी किया जा रहा है,जिसके तहत निर्देश दिया जा रहा है कि इस रिट याचिका का निपटारा होने तक याचिकाकर्ताओं को सरकार के 31 जनवरी 2013 आदेश के अनुसार प्रशिक्षकों के रूप में कार्य करने की अनुमति दी जाए।''

    मामले का विवरण-

    केस का शीर्षक- प्रभु शंकर व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य।

    केस नंबर-रिट ए नंबर 6356/2020

    कोरम- जस्टिस पंकज भाटिया

    आदेश की काॅपी डाउनलोड करें



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