कांस्टेबल/ उप-निरीक्षकों के पद पर नियुक्ति में ट्रांसजेंडर समुदाय को आरक्षण दिया जाएगा: बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय को बताया
LiveLaw News Network
20 Jan 2021 3:00 PM IST
बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि 14 जनवरी, 2021 की अधिसूचना के जरिए, ट्रांसजेंडर समुदाय को कांस्टेबलों / उप-निरीक्षकों के पद पर नियुक्ति में आरक्षण प्रदान करने का निर्णय लिया गया है।
चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रभात कुमार की खंडपीठ ने बिहार सरकार के निर्णय की सराहना की है और कहा है कि "2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार राज्य में ट्रांसजेंडर समुदाय की कुल आबादी के हिसाब से, कॉन्स्टेबल / सब-इंस्पेक्टर के प्रत्येक 500 पद के लिए एक पद आरक्षित किया गया है।"
न्यायालय के समक्ष एडवोकेट जनरल ने अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह विभाग, बिहार सरकार, पटना की ओर से 18 जनवरी 2021 को दाखिल हलफनामे को पढ़ा।
उल्लेखनीय है कि मामले की 22 दिसंबर 2020 को हुई सुनवाई के दरमियान महाधिवक्ता ने अदालत को सूचित किया था कि सरकार एक निर्णय लेने जा रही है, जिससे ट्रांसजेंडर समुदाय को 'वर्ग' के रूप में लाभ होगा। ।
सोमवार को, राज्य सरकार की प्रस्तुती को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने इस मामले को 28 जनवरी, 2021 को 'आदेश मामलों' की श्रेणी में सूचीबद्ध किया है।
पृष्ठभूमि
संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की सलाह देते हुए पटना उच्च न्यायालय ने 14 दिसंबर को बिहार सरकार से कहा था कि वह ट्रांसजेंडर समुदाय को कांस्टेबल के पद के लिए आवेदन करने में सक्षम बनाए।
चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार की खंडपीठ ने कांस्टेबल के केंद्रीय चयन बोर्ड द्वारा जारी विज्ञापन का अवलोकन किया और कहा, "विज्ञापन से, यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 (इसके बाद अधिनियम के रूप में संदर्भित) के प्रावधानों के तहत आने वाले व्यक्ति भी पद के लिए आवेदन कर सकते हैं या नहीं। विज्ञापन आवेदकों के लिंग के रूप में केवल पुरुष या महिला को निर्दिष्ट करता है।"
कोर्ट ने राज्य से आगे पूछा था, "क्या इसका अर्थ यह है कि ट्रांसजेंडर समुदाय से आने वाले व्यक्तियों को आवेदन करने से रोक दिया गया है, या अधिकारियों को यह स्पष्ट नहीं करना चाहिए कि ऐसे व्यक्तियों को आवेदन करने के लिए भी यह खुला होगा? महत्वपूर्ण यह है कि उम्मीदवारों को ऑनलाइन आवेदन करना है और फॉर्म में अधिनियम के दायरे में आने वाले आवेदकों का कोई संदर्भ नहीं है, जो उन्हें आवेदन करने में सक्षम बनाता है। "
महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने टिप्पणी की थी, "प्रथम दृष्टया जो हम पाते हैं वह यह है कि ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित व्यक्ति कांस्टेबल के पद के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया से पूरी तरह से बाहर हो जाते हैं.."
जनहित याचिका से संबंधित पटना हाईकोर्ट के पिछले आदेश
यह ध्यान दिया जा सकता है कि पटना उच्च न्यायालय ने 21 सितंबर 2020 को राज्य सरकार से ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को शिक्षा या सेवाओं के क्षेत्र में आरक्षण के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताने और स्पष्ट करने के लिए कहा था।
पटना उच्च न्यायालय ने बुधवार (09 सितंबर) को राज्य सरकार से कहा कि वह ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को आर्थिक सहायता बढ़ाने के बारे में सोचें, जो इस समय "गंभीर कठिनाई का सामना कर रहे हैं।"
27 अगस्त को, पटना उच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, 2019 के तहत निहित कल्याणकारी प्रावधानों को लागू करने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों को ध्यान में रखते हुए, केंद्र और राज्य सरकार से एक रिपोर्ट मांगी थी।
इसके अलावा, पटना उच्च न्यायालय ने 20 मई को सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि ट्रांसजेंडर समुदाय के व्यक्ति सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत वितरित किए गए खाद्यान्नों से वंचित न हों..।
चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार की खंडपीठ ने भी सरकार से कहा था कि वह राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों के क्रियान्वयन के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताए।
अन्य उच्च न्यायालयों के उल्लेखनीय आदेश
संबंधित समाचारों में, यह देखते हुए कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को पहचान का अधिकार देता है और ऐसे ट्रांसजेंडरों को अपनी समझ के लिंग पहचान का अधिकार है, बॉम्बे हाई कोर्ट (औरंगाबाद बेंच ) ने शनिवार (02 जनवरी) को एक ट्रांसजेंडर को एक महिला उम्मीदवार के रूप में ग्राम पंचायत चुनाव लड़ने की अनुमति दी थी।
जस्टिस रवींद्र घुगे की खंडपीठ ने अंजलि गुरु संजना जान द्वारा दायर याचिका की अनुमति दी, जिसने रिटर्निंग अधिकारी द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी, जिसने ग्राम पंचायत चुनावों के लिए उसके नामांकन को खारिज कर दिया था।
इसके अलावा, केंद्र ने हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि ट्रांसजेंडर को अब राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा तैयार की गई जेल सांख्यिकी रिपोर्ट में एक अलग लिंग श्रेणी के रूप में शामिल किया जाएगा।
केरल उच्च न्यायालय ने कहा था कि कि "व्यक्ति को वैध अधिकार से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह ट्रांसजेंडर है"। जस्टिस देवन रामचंद्रन ने यह टिप्पणी एक ट्रांसवोमन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की थी, जिसने अपनी याचिका में राष्ट्रीय कैडेट कोर अधिनियम, 1948 की धारा 6 को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के खिलाफ बताया था।
उल्लेखनीय है कि कर्नाटक, झारखंड और तेलंगाना के उच्च न्यायालयों ने भी सरकार को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया है कि ट्रांसजेंडर समुदाय को लॉकडाउन के दौरान पर्याप्त सुरक्षा और लाभ प्रदान किया जाए।
मई महीने में, केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की गई थी, जिसमें लॉकडाउन के दौरान राहत उपायों को देने में भेदभाव के खिलाफ समुदाय की सुरक्षा की मांग की गई थी।
जून में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सामाजिक न्याय और विशेष सहायता विभाग के प्रधान सचिव को एक पखवाड़े के भीतर, ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों की दुर्दशा के बारे में समुदाय के लिए काम करने वाले एक कार्यकर्ता द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं पर विचार करने और उन्हें निस्तारित करने का निर्देश दिया था।
हाल ही में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रासंगिक प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिए कदम उठाने और समुदाय के सदस्यों को सभी प्रकार के आरक्षण का विस्तार करने का निर्देश दिया है।
जुलाई में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से जवाब मांगा था कि उसने विशेष रिजर्व कांस्टेबल फोर्स और बैंड्समैन के पद पर भर्ती के लिए अपनी अधिसूचना में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक अलग श्रेणी शामिल क्यों नहीं की है।
केस टाइटिल- वीरा यादव बनाम बिहार सरकार और अन्य। [CWJC No. 5627/2020]
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