पत्नी की ओर से पति और उसके परिवार के खिलाफ बार-बार अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल क्रूरता के बराबर: दिल्ली हाईकोर्ट ने विवाह विच्छेद को बरकरार रखा

Avanish Pathak

16 Feb 2023 1:40 PM GMT

  • पत्नी की ओर से पति और उसके परिवार के खिलाफ बार-बार अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल क्रूरता के बराबर: दिल्ली हाईकोर्ट ने विवाह विच्छेद को बरकरार रखा

    Delhi High Court

    दिल्ली हाईकोर्ट क्रूरता के आधार पर एक जोड़े के विवाह के विघटन को सही ठहराते हुए कहा कि पति और उसके परिवार के खिलाफ पत्नी की ओर से बार-बार अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल क्रूरता की श्रेणी में आता है।

    अदालत ने कहा कि हर व्यक्ति को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है और किसी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह लगातार गाली-गलौज के साथ जीए।

    जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विकास महाजन की एक खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के निष्कर्षों को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि पत्नी ने पति के साथ क्रूरता का व्यवहार किया था और वह उसे और उसके माता-पिता को गंदी गाली देती थी।

    पीठ ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील को खारिज कर दिया, जिसने हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 की धारा 13(1) (i-a) के तहत पति की याचिका को अनुमति देकर तलाक की डिक्री पारित की थी, जिसमें क्रूरता के आधार पर विवाह को भंग करने की मांग की गई थी।

    कोर्ट ने कहा,

    "वर्तमान मामले में, अपीलकर्ता-पत्नी का आचरण जो रिकॉर्ड पर साबित हुआ है, वह इतनी गुणवत्ता, परिमाण और प्रभाव का है कि नियमित और निरंतर आधार पर प्रतिवादी-पति को मानसिक पीड़ा, दर्द, क्रोध और पीड़ा का कारण बनता था और इस प्रकार स्पष्ट रूप से क्रूरता के समान था।"

    अदालत संतुष्ट थी कि क्रूरता, जो रिकॉर्ड पर साबित हुई थी, पर्याप्त थी और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) के तहत आवश्यक क्रूरता थी।

    कोर्ट ने फैसले कहा,

    "नतीजतन, हम याचिका की अनुमति देने और क्रूरता के आधार पर तलाक देने के फैसले में कोई कमी नहीं पाते हैं। तदनुसार, हम अपील में कोई योग्यता नहीं पाते हैं। फलस्वरूप अपील खारिज की जाती है।”

    अदालत ने फैसले में पत्नी की ओर से कहे गए शब्दों को फिर से दोहराया,

    - मैं शिक्षा विभाग में अधीक्षक हूं, तुम्हारा परिवार हमारे स्तर का नहीं है।

    - 2 कौड़ी के पुलिसवाला है तेरा बाप, मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, मिनिस्ट्री तक पहुंच है मेरे पापा की।

    - मैं इतना खर्च नहीं करती, जितना तेरी दवाओं पर खर्च होता है।

    - दिखायी नहीं देता बात कर रही हूं, सांस की बीमारी है, लकवा नहीं है जो खुद नहीं ले सकते।'

    कोर्ट ने फैसले में कहा, "ऊपर दिए गए शब्दों का उपयोग स्पष्ट रूप से अपमानजनक है और निश्चित रूप से क्रूरता के बराबर होगा।"

    अदालत ने कहा कि जिरह का कोई खंडन या उक्त आरोपों को खारिज करने का प्रयास ना करना दिखाता है कि यह विधिवत साबित और स्थापित हो गया है।

    टाइटल: डीबी बनाम आरबी

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