'पछतावा व्यक्त करना तो सिर्फ अपने बुरे आचरण के परिणाम से बचने का एक तरीका है' : गुजरात हाईकोर्ट की फुल कोर्ट ने यतिन ओझा की बिना शर्त माफी को किया खारिज

LiveLaw News Network

26 Aug 2020 1:38 PM GMT

  • पछतावा व्यक्त करना तो सिर्फ अपने बुरे आचरण के परिणाम से बचने का एक तरीका  है : गुजरात हाईकोर्ट की फुल कोर्ट ने  यतिन ओझा की बिना शर्त माफी को किया खारिज

    गुजरात हाईकोर्ट की फुल कोर्ट ने 23 अगस्त को हुई बैठक में प्रस्ताव पास करते हुए कहा है कि-''फुल कोर्ट इस बात से पूरी तरह आश्वस्त है और दृढ़ता से मानती है कि श्री ओझा द्वारा पूर्व में इंगित की गई माफी और आज मांगी गई माफी में कोई नेकनीयती शामिल नहीं है और यह एक कागजी माफी से अधिक कुछ भी नहीं है।''

    फुल कोर्ट ने अधिवक्ता यतिन ओझा की माफी को खारिज करने का फैसला किया है। ओझा ने उनके खिलाफ शुरू हुई अवमानना की कार्यवाही और वरिष्ठ पद से हटाने के बाद यह माफी मांगी थी। फुल कोर्ट ने कहा कि ओझा के शब्दों ने न्यायिक संस्थान को ''अपूरणीय क्षति'' पहुंचाई है।

    फुल कोर्ट ने कहा कि

    "श्री ओझा क्यों हमेशा हाईकोर्ट से यह अपेक्षा करते हैं कि हाईकोर्ट अपनी उदारता दिखाएगी और उनके कदाचार या दुव्र्यवहार के लिए क्षमा प्रदान कर देगी? क्यों नहीं श्री ओझा संयम अपनाते है और सीनियर काउंसिल के रूप में अपेक्षित व्यवहार करते हैं?

    बहुत अच्छी तरह से व्यक्त और सचेत हमला संस्थान पर किया गया है और वह भी बिना किसी अच्छे कारण से। इसलिए इसको अनदेखा करना, क्षमा करना या नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। यदि इस तरह के हमले से दृढ़ता से नहीं निपटा गया तो यह राज्य के सर्वोच्च न्यायालय के सम्मान और प्रतिष्ठा को प्रभावित करेगा।''

    पिछले महीने फेसबुक पर एक लाइव कॉन्फ्रेंस के दौरान ओझा ने आरोप लगाया था कि हाईकोर्ट की रजिस्ट्री भ्रष्ट प्रथाओं का पालन कर रही है और केवल अमीर और शक्तिशाली लोगों के मामलों को सूचीबद्ध कर रही है और उन्हीं को सुना जा रहा है। इस सम्मेलन में विभिन्न पत्रकारों ने भी भाग लिया था।

    इस तरह की ''गैर जिम्मेदाराना, सनसनीखेज और असयंमित'' टिप्पणी पर कड़ा रूख अपनाते हुए हाइकोर्ट ने ओझा के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करते हुए कहा था कि ओझा के निराधार और असत्यापित तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को निशाना बनाते हुए हाईकोर्ट प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था।

    उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अवमानना की कार्यवाही को चुनौती दी थी परंतु सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।

    अवमानना की ​कार्यवाही के दौरान ही गुजरात हाईकोर्ट की फुल कोर्ट ने निर्णय किया कि वह अपने 25 अक्टूबर, 1999 के उस फैसले की समीक्षा करते हुए उसे वापिस लेंगे,जिसके तहत ओझा को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था। यह निर्णय गुजरात हाईकोर्ट(वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पदनाम) नियम 2018 के रूल 26 के तहत लिया गया था।

    इस निर्णय को चुनौती देते हुए ओझा ने शीर्ष अदालत का रुख किया था। जिसमें मांग की गई थी कि उनके पदनाम को हटाने वाली फुल कोर्ट की अधिसूचना को रद्द किया जाए और हाईकोर्ट रूल्स के रूल 26 को अल्ट्रा वायर्स घोषित किया जाए।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ओझा ने कहा कि वह हाईकोर्ट के खिलाफ की गई अपनी टिप्पणी के लिए बिना शर्त माफी मांगने के लिए तैयार है। इस पर ध्यान देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई ओझा की याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए टाल दी थी। साथ ही उम्मीद जताई थी कि इस अवधि के दौरान हाईकोर्ट ओझा के प्रतिनिधित्व पर विचार कर लेगी।

    10 अगस्त, 2020 को ने हाईकोर्ट के समक्ष बिना शर्त माफी मांगी, जिसके बाद हाईकोर्ट ने उनका पक्ष सुनने का मौका प्रदान करने का निर्णय लिया था।

    हालांकि, तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने ओझा की ''तथाकथित'' अयोग्य माफी को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि ''पश्चाताप व्यक्त करना तो अपने बुरे आचरण या कदाचार के परिणाम से बचने का एक तरीका है।''

    फुल कोर्ट ने कहा कि ''तथाकथित अयोग्य सुस्ष्ट माफी अपनी छवि को सुधारने और इस तंग स्थिति से निकलने का एक चतुर और प्रच्छन्न प्रयास है। इसीलिए अपने अचारण के लिए खेद के कुछ शब्दों को व्यक्त किया जा रहा है और बार-बार उन तथाकथित परिस्थितियों को दोष देने का प्रयास किया जा रहा है जिसके कारण यह सब हुआ है।''

    न्यायालय ने कहा कि अगर वह श्री ओझा की माफी को स्वीकार करता है, तो हाईकोर्ट अपने उस ''आवश्यक कर्तव्य को निभाने में विफल हो जाएगा, जिसे संविधान और लोगों द्वारा सिर्फ हाईकोर्ट को सौंपा गया है।''

    न्यायालय ने यह भी कहा कि श्री ओझा ने अपने लाइव सत्र के दौरान जो टिप्पणी की थी, वह न तो ''क्षणिक'' थी और न ही ''भावनाओं में बहकर'' की गई थी।

    फुल कोर्ट ने कहा कि

    "प्रेस कॉन्फ्रेंस की योजना 30 घंटे पहले बनाई गई थी। सभी वकीलों को इसमें शामिल होने के लिए एक खुला निमंत्रण दिया गया था। इतना ही नहीं यह निमंत्रण प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी भेजा गया था।

    इसी के लाइव टेलीकास्ट की योजना बनाई गई थी और उसे क्रियान्वित किया गया था। प्रेस कॉन्फ्रेंस की सामग्री को काफी हद तक अलग-अलग मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से पहले से ही अच्छी तरह से प्रकाशित कर दिया गया था। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जागरूकता के साथ और जानबूझकर बयान दिए गए थे। इतना ही नहीं अवमानना की कार्यवाही का समाना करने के लिए तत्परता भी व्यक्त की गई थी।''

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