सरकारी खर्च पर धार्मिक शिक्षा : इलाहाबाद हाईकोर्ट (डीबी) ने रजिस्ट्री को चीफ जस्टिस/जनहित याचिका बेंच के समक्ष मामला रखने का निर्देश दिया

Shahadat

5 Jun 2023 8:19 AM IST

  • सरकारी खर्च पर धार्मिक शिक्षा : इलाहाबाद हाईकोर्ट (डीबी) ने रजिस्ट्री को चीफ जस्टिस/जनहित याचिका बेंच के समक्ष मामला रखने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह रजिस्ट्री को मदरसों जैसे संस्थानों में सरकारी खर्च पर धार्मिक शिक्षा के मुद्दे पर अलग मामले के रूप में जनहित याचिका (पीआईएल) दर्ज करने का निर्देश दिया और इस मामले को चीफ जस्टिस की बेंच के समक्ष उचित निर्देश के लिए रखने को कहा।

    निम्नलिखित मुद्दे को सीजे/पीआईएल बेंच के पास भेजा गया है:

    "क्या धार्मिक निर्देश देने वाले संस्थानों के सरकारी खजाने से धन देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26, 29 और 30 का उल्लंघन है?"

    उल्लेखनीय है कि जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने सिंगल बेंच द्वारा विचार किए जा रहे इस मुद्दे को दिनेश कुमार सिंह @ सोनू [2014 रिट याचिका संख्या 2599 (एमबी)] के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के मद्देनजर पीआईएल बेंच को भेजा।

    दिनेश कुमार सिंह मामले (सुप्रा) में एचसी की फुल बेंच ने माना था कि मामले से निपटने के दौरान यदि एकल न्यायाधीश या खंडपीठ के सामने जनहित से जुड़ा कोई प्रश्न आता है, जो पहले मुद्दे से जुड़ा नही था तो उस स्थिति में न्यायालय के पास एकमात्र विकल्प यह है कि रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाए कि वह इस मामले को चीफ जस्टिस की बेंच के समक्ष उचित दिशा-निर्देशों के लिए या उपयुक्त पीआईएल पीठ के समक्ष रखे। साथ ही किसी भी मामले में अदालत ऐसी रिट याचिका को जनहित याचिका में परिवर्तित नहीं करना चाहिए।

    मामले की पृष्ठभूमि

    उक्त मुद्दा तब सामने आया जब एकल न्यायाधीश याचिकाकर्ता अजाज अहमद और अन्य द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जो मदरसे में शिक्षकों के रूप में काम कर रहे हैं और उनकी शिकायत मदरसा प्रबंधन के साथ कुछ वेतन विवाद से संबंधित है।

    हालांकि उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए एकल न्यायाधीश ने 27 मार्च के अपने आदेश में केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा कि क्या सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसों में धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है और क्या यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26, 29 और 30 का उल्लंघन हो सकता है।

    इसके अलावा, 17 मई के आदेश में एकल न्यायाधीश ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को भी मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी।

    अब दोनों आदेशों को चुनौती देते हुए रिट याचिकाकर्ता ने वर्तमान इंट्रा-कोर्ट अपील दायर की, जिसमें खंडपीठ के समक्ष अपीलकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट ने तर्क दिया कि रिट याचिका में प्राथमिक मुद्दा/प्रार्थना उनके रोके गए वेतन को जारी करने और उन्हें नियमित वेतन देने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश देने के लिए है। हालांकि, उन्होंने कहा कि न्यायालय ने बड़े सार्वजनिक हित के मुद्दे (धार्मिक शिक्षा के राज्य वित्त पोषण) को जोड़ने के लिए इस पर सुनवाई शुरू की है।

    आगे यह तर्क दिया गया कि हालांकि एकल न्यायाधीश को ऐसे मुद्दों का संज्ञान लेने से नहीं रोका जाता है, जो व्यापक जनहित के हैं। हालांकि, उसके लिए उचित तरीका यह है कि वह मामले के उस हिस्से को संदर्भित करें जो संबंधित है या जिसे जनहित याचिका से निपटने वाली डिवीजन बेंच को संदर्भित किए जाने के लिए चीफ जस्टिस को बड़े जनहित में इस मामले में संबोधित करने की आवश्यकता है। इस संबंध में उन्होंने दिनेश कुमार सिंह (सुप्रा) के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।

    डिवीजन बेंच का आदेश

    प्रारंभ में खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेशों से सहमति व्यक्त की, जिसमें उन्होंने व्यापक जनहित से संबंधित प्रश्न की जांच करने का निर्णय लिया और राज्य और केंद्र सरकार से इस मामले में अपनी जवाब दर्ज कराने को कहा।

    पीठ ने एनसीपीसीआर को अनुमति देने के एकल न्यायाधीश के फैसले से भी सहमति व्यक्त की, जो मुख्य रूप से बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा की निगरानी के लिए इस मामले में हस्तक्षेपकर्ता के रूप में गठित वैधानिक आयोग है।

    हालांकि, इस सवाल के संबंध में कि क्या ऐसी स्थिति में बड़े जनहित के मुद्दों पर एक ही बेंच द्वारा विचार किया जा सकता है या मामले को पीआईएल बेंच को संदर्भित करने की आवश्यकता है, खंडपीठ ने फुल बेंच के फैसले को ध्यान में रखा। हाईकोर्ट कोर्ट ने दिनेश कुमार सिंह @ सोनू (सुप्रा) के मामले को देखते हुए वर्तमान मामले को अलग मामले के रूप में दर्ज करने और चीफ जस्टिस के समक्ष पोस्ट करने का निर्देश दिया।

    अपीयरेंसः

    अपीलकर्ताओं के लिए: सीनियर एडवोकेट वीके सिंह, एडवोकेट एमए औसाफ, संकल्प नारायण, जीएस मौर्य, श्रीवत्स नारायण, आदिल हुसैन, बीपी तिवारी और आयुष टंडन द्वारा सहायता प्रदान की गई।

    एनसीपीसीआर के लिए: एडवोकेट स्वरूपमा चतुर्वेदी और यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से एडवोकेट आरसी तिवारी

    केस टाइटल- अजाज अहमद और अन्य बनाम राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के माध्यम से इसके अध्यक्ष और अन्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 178 [विशेष अपील दोषपूर्ण नंबर- 354/2023]

    केस साइटेशन: लाइवलॉ (एबी) 178/2023

    पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story