कॉपीराइट अधिनियम के तहत संरक्षण पाने के लिए कॉपीराइट का पंजीकरण अनिवार्य नहींः बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

15 March 2021 8:23 PM IST

  • कॉपीराइट अधिनियम के तहत संरक्षण पाने के लिए कॉपीराइट का पंजीकरण अनिवार्य नहींः बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि उल्लंघन के खिलाफ निषेधाज्ञा के लिए कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के तहत कॉपीराइट का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है।

    जस्टिस जीएस पटेल की एकल पीठ ने कहा, "कॉपीराइट अधिनियम के तहत कॉपीराइट के पहले मालिक को बिना किसी पूर्व पंजीकरण की आवश्यकता के, कई अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं।"

    उन्होंने कहा कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 51, जो कॉपीराइट के उल्लंघन की बात करती है, खुद को उन कार्यों तक सीमित नहीं रखती है, जो कॉपीराइट के रजिस्ट्रार के साथ पंजीकृत हैं।

    उन्होंने कहा, "यह धारा, जैसा कहा गया है, पूर्व पंजीकरण की मांग नहीं करती है। यह कहीं भी ऐसा नहीं कहती है; और इसे धारा 45 (1) के साथ पढ़ा जाना चाहिए, जो कहती है कि कॉपीराइट का मालिक पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकता है। महत्वपूर्ण बात, कॉपीराइट का उल्लंघन मूल कार्यों के बिना लाइसेंस के उपयोग में है, जिसमें लेखक के पास कई विशेष अधिकार है।"

    इस प्रावधान की तुलना ट्रेड मार्क्स एक्ट की धारा 27 से भी की गई, जो अपंजीकृत व्यापार चिह्न के उल्लंघन के संबंध में किसी भी कार्यवाही पर स्पष्ट रोक लगाता है।

    कोर्ट ने कहा, "कॉपीराइट और व्यापार चिह्न अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं, हालांकि कुछ मामलों में - जैसे कि वर्तमान में - ये ओवरलैप या इंटरसेक्ट कर सकते हैं। एक कलात्मक कार्य को लेबल के रूप में ट्रेड मार्क पंजीकरण और कलात्मक कार्य के रूप में कॉपीराइट संरक्षण दोनों प्राप्त हो सकते हैं। पहले के उल्लंघन के मामले में मुकदमा के लिए पंजीकरण की आवश्यकता होती है, दूसरा के लिए नहीं, है। इसके मूल में यह है कि, कॉपीराइट मौलिकता की मान्यता है, एक लेखक को व्यावसायीकरण और विशिष्टता के अधिकार प्रदान करता है..."

    इस प्रकार, जस्टिस पटेल ने धीरज धरमदास दीवानी बनाम सोनल इंफो सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड एंड अदर्स, 2012 (3) एमएच एलजे 888, और गुलफाम एक्सपोर्टर्स एंड अदर्स बनाम सईद हामिद एंड अदर्स (अनरिपोर्टेड) में बॉम्बे हाईकोर्ट की दो एकल खंडपीठों के फैसलों का भी उल्‍लेख किया और घोषणा की कि दोनों फैसलों में कानून या तथ्यों की कमी है।

    उपरोक्त दोनों मामलों ने माना गया था कि कॉपीराइट अधिनियम के तहत वादी, दीवानी या आपराध‌िक राहत का दावा करे, इससे पहले कॉपीराइट अधिनियम के तहत पंजीकरण अनिवार्य है।

    अपने आदेश में, जस्टिस पटेल ने कहा कि उपरोक्त निर्णयों को चार बाध्यकारी मिसालों की अनदेखी कर पारित किया गया है, सभी विपरीत हैं।

    खंडपीठ ने कहा कि धीरज दीवानी (सुप्रा) में फैसले में पूरी तरह से कानून या तथ्यों की कमी है।

    आदेश में कहा गया है, "यह गलत रूप से उल्लेख‌ित करता है कि बॉम्बे हाईकोर्ट का कोई निर्णय सीधे तौर पर इस बिंदु पर नहीं था। वास्तव में, चार पिछले फैसले थे, सभी के विपरीत, धीरज दीवानी अदालत पर प्रत्येक बाध्यकारी था।"

    बेंच ने सबसे पहले जस्टिस (सेवानिवृत्त) एसएच कपाड़िया के बरोग़ वेलकम (इंडिया) लिमिटेड बनाम यूनी-सोल प्राइवेट लिमिटेड एंड एनॉदर्स के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कॉपीराइट के सार पर चर्चा करने के बाद, एकल जज ने माना कि अधिनियम के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कॉपीराइट के गैर-पंजीकरण के कारण एक लेखक को उसके अधिकारों से वंचित करता है।

    इसी तरह, एशियन पेंट्स (आई) लिमिटेड बनाम एम/ एस जयकिशन पेंट्स एंड एलाइड प्रोडक्ट्स, 2002 (4) एमएच एलजे 536, में जस्टिस (सेवानिवृत्त) एसजे वजीफदार के फैसले में यह कहा गया था कि कॉपीराइट एक्ट के तहत पंजीकरण वैकल्पिक है और अनिवार्य नहीं।

    इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ लायंस क्लब बनाम नेशनल एसोसिएशन ऑफ इंडियन लायंस एंड अदर्स, 2006 (4) एमएच एलजे 527 और आनंद पटवर्धन बनाम महानिदेशक दूरदर्शन एंड अदर्स, सूट नंबर 3759 ऑफ 2004 के निर्णयों को भी यही प्रभाव था।

    इस प्रकार यह मानते हुए कि पंजीकरण कॉपीराइट अधिनियम के तहत संरक्षण प्राप्त करने के लिए पूर्व-आवश्यकता नहीं है, जस्टिस पटेल ने कहा,

    "....एक अदालत न केवल एक बड़ी बेंच के निर्णयों से बंधी हुई है, बल्कि समान या समन्वय शक्ति के बेंच के भी। समन्वय शक्ति के खंडपीठ के इस तरह के पिछले निर्णयों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। वे पूरी तरह से बाध्यकारी हैं..."

    पृष्ठभूमि

    ये अवलोकन एक कंपनी की ओर से कॉपीराइट उल्लंघन के मुकदमे में आए हैं, जो रिफाइंड सोयाबीन तेल, संजय सोया प्राइवेट लिमिटेड के उत्पादन और बिक्री के कारोबार में लगी हुई थी।

    वादी का मामला था कि प्रतिवादी-कंपनी, नारायणी ट्रेडिंग कंपनी नकली थी और इसी तरह के सोयाबीन खाद्य तेल उत्पादों के लिए प्रतिद्वंद्वी व्यापार पोशाक और लेबल का उपयोग कर रही थी।

    जांच - परिणाम

    अपने आदेश में, जस्टिस पटेल ने कहा कि संजय सोया के लेबल में प्रमुख विशेषताएं, पूर्णांक या तत्व सभी नरायणी ट्रेडिंग के लेबल में केवल मामूली विविधताओं के साथ एक जगह मिलते हैं।

    उन्होंने कहा, "ये विविधताएं विचार करने के लिए बहुत अप्रासंगिक हैं। इन उत्पादों पर एक नजर देखने से, एक को दूसरे से अलग बताना संभव होगा। वास्तव में एकमात्र परीक्षण है, जब ट्रेडमार्क उल्लंघन की बात आती है, या कॉपीराइट उल्लंघन की।"

    बेंच ने नारायणी ट्रेडिंग की दलील को खारिज कर दिया कि वादी पैकेज लेबल पर कॉपीराइट का दावा नहीं कर सका क्योंकि उसने पंजीकरण नहीं किया है।

    अन्य निष्कर्ष

    प्रतिवादी का एक और तर्क यह था कि अभियोगी-कंपनी एक वाणिज्यिक इकाई है, कभी भी 'कलाकार' नहीं हो सकती और इसलिए उसके पास कोई कॉपीराइट नहीं है।

    यह दलील दी गई कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 17 का कहना है कि एक काम का लेखक कॉपीराइट का पहला मालिक है। एक कलात्मक काम के संबंध में धारा 2 (डी), कलाकार का मतलब एक लेखक को परिभाषित करता है। हालांकि कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया।

    कोर्ट ने वादी के पक्ष में निर्णय दिया और प्रतिवादी नारायणी ट्रेंडिग को वादी को 4,00,230 रुपए का जुर्माना देने का निर्देश दिया।

    केस टा‌इटिल: संजय सोया प्रा लिमिटेड बनाम नारायणी ट्रेडिंग कंपनी

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