शादी के प्रस्ताव को ठुकराना मर्डर के लिए उकसाने का कारण नहीं हो सकता : कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

25 Nov 2020 3:45 AM GMT

  • शादी के प्रस्ताव को ठुकराना मर्डर के लिए उकसाने का कारण नहीं हो सकता : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक ठुकराए हुए प्रेमी के द्वारा प्रस्तुत किए गए अचानक उकसाने के बचाव को खारिज कर दिया है। इस प्रेमी ने शादी के प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार करने पर एक लड़की की हत्या कर दी थी।

    न्यायमूर्ति सुनील दत्त यादव और न्यायमूर्ति पी कृष्णा भट की खंडपीठ ने कहा किः

    '' इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए अगर आरोपी को 'गंभीर और अचानक उकसावे' का बचाव लेने की अनुमति दे दी गई तो यह केस ''निदंनीय'' हो जाएगा और इसके अलावा भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1)(ए) और 21 के तहत मृतक को मिले मौलिक अधिकारों की उपेक्षा करेगा और इस तरह होगा,जैसे सार्वजनिक नीति का विरोध किया जा रहा है।''

    यह भी जोड़ा गया किः

    ''इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए अभियुक्त को 'गंभीर और अचानक उकसावे' की सुरक्षात्मक आवरण का लाभ देने का प्रभाव ऐसा होगा,जैसे कि पीड़ित से उसकी 'पसंद' व्यक्त करने के अधिकार को छीन लिया गया है।''

    हाईकोर्ट ने वर्ष 2016 के सत्र अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की है। सत्र न्यायालय ने आरोपी विजय उर्फ विजेंद्र सुरवसे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने इस आदेश के खिलाफ आरोपी की तरफ से दायर अपील को भी खारिज कर दिया है।

    अभियोजन के अनुसार, 27 अप्रैल, 2009 को, आरोपी मृतक पुष्पा के घर में घुस गया और पीड़ित लड़की से कहने लगा कि वह उससे शादी करे और अगर उसने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, तो वह उसे किसी और से शादी करने की अनुमति नहीं देगा और जब पीड़िता ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, तो उसने एक चाकू से उसके पेट पर, उसके कंधे और छाती पर वार किया। इस कारण पीड़िता को सात से आठ गंभीर चोटें आई और बाद में उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया।

    सबूतों के माध्यम से जाने पर पीठ ने कहा कि, ''वह (आरोपी) सीडब्ल्यू नंबर एक (पुष्पा) के ऊपर किसी तरह से दबाव बनाने की कोशिश कर रहा था, क्योंकि वह एक पुरुष है और वह सीडब्ल्यू 1 की उस स्थिति से सामंजस्य बनाने के लिए तैयार नहीं था, कि वह भी उसकी बात को अस्वीकार कर सकती है। उसने उसकी व्यक्तिगत स्वायत्तता और अपने जीवन साथी की पसंद पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता पर अधिकार जताया।''

    यह भी जोड़ा गया किः

    ''जिस स्थिति में उसने अपराध किया था, वह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वह इस तथ्य को बर्दाश्त नहीं कर सकता था कि एक महिला उससे शादी करने के उसके प्रस्ताव को मना कर सकती है। ऐसी स्थिति में, यह पूरी तरह से बेतुका है कि पीड़िता की तरफ गंभीर और अचानक उकसावे की स्थिति बनाई गई थी। विशेष रूप से तब, जब वह प्रस्ताव को अस्वीकार कर रही थी, तब वह अनिवार्य रूप से अपनी व्यक्तिगत स्वायत्तता का दावा कर रही थी जो उसके लिए पूरी तरह से वैध था।''

    पीठ ने उल्लेख किया कि आरोपी सशस्त्र घर में घुसा था और उसने फैसला कर रखा था कि उसे जवाब में 'ना' नहीं सुनना है।

    पीठ ने कहा कि,

    ''आरोपी ने मानव के रूप में पीडब्ल्यू नंबर एक के अंतर्निहित अधिकार, उसकी व्यक्तिगत स्वायत्तता कि वह किसे प्यार करना चाहती है,पति को चुनने का अधिकार और यहां तक कि उसके जीवन के महत्वपूर्ण मामलों में उसके माता-पिता की इच्छाओं को पूरा करने के अधिकार का पूरी तरह से तिरस्कार किया है। जो संक्षेप में भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को मिले मौलिक अधिकार है।''

    खंडपीठ ने कहा कि,''हम उस समय की आवश्यकता से अधिक सचेत हैं कि जहां टेक्स्ट निषेध और संदर्भ की मांग नहीं करता है। सामान्य कानूनों को इस तरह का बनाया जाना चाहिए और बचाव का दायरा इस तरह उपलब्ध होना चाहिए ताकि उपरोक्त अनुच्छेदों के तहत दिए गए सिद्धांतों को पूरी तरह प्रभावी बनाया जा सकें और बचाव के अमानवीय प्रभाव को इस तरह से तराशा जाए कि वह इस तरह का बचाव प्रदान करने वाले कानूनों का कोई विरोध भी न करें। वहीं यह लिंग न्याय की अवधारणा की वर्तमान समझ और व्यक्ति की गरिमा के साथ प्रतिध्वनित भी हो।''

    4 जुलाई, 1776 को की गई 'स्वतंत्रता की घोषणा' का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि ''जीवन, स्वतंत्रता और खुशी की खोज एक हक और अधिकार है, जिसके बिना एक व्यक्ति के लिए 'जीवन का अधिकार' नहीं हो सकता है और उसके बिना, यह केवल एक प्राणी का अस्तित्व होगा।''

    कोर्ट ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि ''गंभीर और अचानक उकसावे के बचाव का लाभ अभियुक्त को नहीं मिल सकता है,अगर इस तरह के लाभ का परिणाम पीड़ित व्यक्ति के लिए अमानवीय होता है और उसकी व्यक्तिगत स्वायत्तता व गरिमा को भंग करता है।''

    केस का विवरणः विजय उर्फ विजेंद्र पुत्र सुभाष सुरवसे और कर्नाटक राज्य

    केस नंबरः आपराधिक अपील नंबर 200141/2016

    आदेश की तिथिः 20 नवंबर 2020

    कोरमः जस्टिस एस सुनील दत्त यादव और जस्टिस पी कृष्णा भट।

    प्रतिनिधित्वः अपीलार्थी के लिए अधिवक्ता शिवशरण रेड्डी,एडीशनल एसपीपी

    एडवोकेट प्रकाश येली।

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story