'चाहे कारण कितना भी वास्तविक हो, लेकिन अदालती कामकाज के बहिष्कार से परहेज करें', कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बार से अपील

LiveLaw News Network

6 Feb 2021 4:46 AM GMT

  • चाहे कारण कितना भी वास्तविक हो, लेकिन अदालती कामकाज के बहिष्कार से परहेज करें, कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बार से अपील

    कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका ने राज्य में बार एसोसिएशनों के सदस्यों से अपील की है कि कारण के औच‌ित्य के बावजूद वे अदालत के कामकाज से अलग रहने या अदालत की कार्यवाही का बहिष्कार करने से परहेज करें, और ऐसी अवैधताओं में ‌लिप्त न हों।

    चीफ जस्टिस ओका ने एक सार्वजनिक संदेश में कहा, "मैं बार के सदस्यों से अपील करता हूं कि वे अधिक से अधिक संख्या में मामलों के निस्तारण में अदालत का सहयोग करें।"

    यह अपील जिला न्यायालयों से प्राप्त उन रिपोर्टों के बाद की गई है, जिसमें कहा गया था कि मांड्या और दावणगेरे जिलों में बार एसोसिएशनों द्वारा पार‌ित प्रस्तावों में बार के सदस्यों को विभिन्न कारणों से अदालती कार्यवाही से अलग रखने को कहा गया है।

    जस्टिस ओका ने अपील में कहा है, "आप बखूबी वाकिफ हैं कि COVID-19 महामारी के कारण राज्य में अदालतें कुछ महीनों तक सामान्य रूप से काम नहीं कर सकीं हैं और इससे वादियों और बार के सदस्यों को भी कठिनाइयां और तकलीफ हुईं।

    कर्नाटक हाईकोर्ट चरणबद्ध तरीके से न्यायालयों के सामान्य कामकाज को बहाल करने के लिए सभी संभव कदम उठाए हैं और अब यह पूरी तरह से सामान्य होने वाला है। यह दुखद है कि इन परिस्थितियों में भी, कुछ बार एसोसिएशनों के सदस्यों ने अदालती कामाज से परहेज या विभिन्न कारणों से बहिष्कार की फैसला किया है।

    न्यायालयों के कामकाज से अलग रहने के ऐसे फैसले न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप का कारण बनते हैं। ऐसे कृत्यों से वादकारियों को असुविधा और पूर्वाग्रह भी होता है। महामारी के दिनों में, चुनौतियों के बावजूद, राज्य की जिला और ट्रायल अदालतों ने ने काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन कुछ बार एसोसिएशनों ने अदालतों के बहिष्कार के अवैध तरीकों का सहारा लिया है। इस तरह के कदम से बार के सदस्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।"

    अपील में डॉ बीआर अम्बेडकर द्वारा 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में दिए गए प्रसिद्ध "अराजकता के व्याकरण" भाषण के उद्धरण भी शामिल हैं, "यदि हम लोकतंत्र को केवल ढांचे में ही नहीं, बल्कि यथा‌र्थ में बनाए रखना चाहते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए? मेरी राय में, सबसे पहली बात यह है कि हम अपने सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संवैधानिक तरीकों पर तेजी से पकड़ बनाए रखें।

    इसका मतलब है कि हमें क्रांति के खूनी तरीकों का त्याग करना चाहिए। इसका मतलब है कि हमें सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह की पद्धति को छोड़ देना चाहिए। जब ​​आर्थिक और सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संवैधानिक तरीकों के लिए कोई रास्ता नहीं बचा था, तो असंवैधानिक तरीकों के लिए पर्याप्त औचित्य मौजूदा था, लेकिन जहां संवैधानिक तरीके खुले हैं, वहां इन असंवैधानिक तरीकों का कोई औचित्य नहीं हो सकता। ये तरीके कुछ और नहीं हैं, बल्कि अराजकता के व्याकरण और जितनी जल्दी उन्हें छोड़ दिया जाता है, हमारे लिए बेहतर है। "

    संदेश में आगे कहा गया है, "यह कानून की एक सुलझी हुई स्थिति है कि अदालत के कामकाज से अलग होना या अदालती कार्यवाही का बहिष्कार करना और बार एसोसिएशनों के पदाधिकारियों द्वारा बार के सदस्यों को अदालत के काम से दूर करने का आह्वान करना और अदालती कार्यवाही के बहिष्कार के लिए कहना न्याय के प्रशासन के साथ हस्तक्षेप करने जैसा है। अधिवक्ता न्यायालय के अधिकारी हैं और समाज में विशेष स्थिति का आनंद लेते हैं। उन पर न्यायालय के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने का दायित्व और कर्तव्य है।"

    चीफ ज‌स्ट‌िस ने अपनी अपील में, पूर्व कप्तान हरीश उप्पल बनाम यू‌नियन ऑफ इंडिया और अन्य, (2003) 2 SCC 45 और कृष्णकांत ताम्रकार बनाम मध्य प्रदेश राज्य, (2018) 17 SCC 27 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख किया।

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