''समलैंगिक विवाह को मान्यता देना भारतीय संस्कृति, कानूनों और धर्म के खिलाफ होगा'': यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया
LiveLaw News Network
14 April 2022 4:22 PM IST
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध करते हुए कहा कि इस तरह के विवाह भारतीय संस्कृति और भारतीय धर्मों के खिलाफ हैं और भारतीय कानूनों के अनुसार अमान्य होंगे, जिन्हें एक पुरुष और एक महिला की अवधारणा/अस्तित्व को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
जस्टिस शेखर कुमार यादव की खंडपीठ के समक्ष यह प्रस्तुत किया गया है। पीठ एक मां की तरफ से दायर एक हैबियस कार्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपनी बेटी (23 वर्षीय) की कस्टडी की मांग की थी। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि उसकी बेटी को एक अन्य महिला, 22 वर्षीय संजना (प्रतिवादी नंबर 4) ने अवैध रूप से अपनी कस्टडी में रखा हुआ है।
मामले की पृष्ठभूमि
मां की याचिका पर, कोर्ट ने 6 अप्रैल, 2022 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें कार्पस और प्रतिवादी नंबर 4 को न्यायालय में पेश करने का निर्देश दिया गया था।
7 अप्रैल, 2022 को, वे दोनों अदालत में आई और प्रस्तुत किया कि वे बालिग हैं और प्यार करती हैं। उन्होंने आपसी सहमति से समलैंगिक विवाह किया है। इस संबंध में उन्होंने कोर्ट को एक वैवाहिक अनुबंध पत्र भी दिखाया।
इसके अलावा, उन्होंने अदालत के समक्ष प्रार्थना करते हुए कहा था कि वे वयस्क हैं और समलैंगिक विवाह कर चुकी हैैंं, इसलिए ऐसे विवाह को अदालत द्वारा मान्यता दी जानी चाहिए।
उनकी तरफ से यह विशिष्ट दलील दी गई कि सुप्रीम कोर्ट ने नवतेज सिंह जौहर व अन्य बनाम भारत संघ, सचिव कानून और न्याय मंत्रालय के जरिए,एआईआर 2018 एससी 4321 के मामले में अपने फैसले में समलैंगिक यौन संबंध सहित सभी वयस्कों के बीच आपसी सहमति से किए गए सेक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि हालांकि हिंदू विवाह अधिनियम दो लोगों के विवाह के बारे में बात करता है, लेकिन कानून द्वारा समलैंगिक विवाह का विरोध नहीं किया गया है।
यूपी राज्य द्वारा दी गई दलीलें
अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ताओं ने इन लड़कियों की प्रार्थना का इस आधार पर विरोध किया कि हमारा देश भारतीय संस्कृति, धर्म और भारतीय कानून के अनुसार चलता है और भारत में, विवाह को एक पवित्र संस्कार माना जाता है, जबकि अन्य देशों में, विवाह एक अनुबंध हैं।
हिंदू विवाह अधिनियम का उल्लेख करते हुए, एजीए ने आगे कहा कि यह एक महिला और एक पुरुष के बीच विवाह के बारे में बात करता है और दोनों में से किसी एक की अनुपस्थिति में, विवाह को किसी भी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह भारतीय परिवार की अवधारणा से परे होगा।
यह भी कहा गया कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विशेष विवाह अधिनियम 1954, और यहां तक कि विदेशी विवाह अधिनियम 1969 भी समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं देते हैं। यूपी राज्य ने तर्क दिया कि यहां तक कि मुस्लिम, बौद्ध, जैन, सिख आदि धर्मों ने भी समलैंगिकता विवाह को मान्यता नहीं दी गई है।
यूपी राज्य ने आगे कहा कि भारतीय सनातन विधि के अनुसार, कुल 16 प्रकार के अनुष्ठान होते हैं जिनमें गर्भावस्था से लेकर अंतिम संस्कार तक की रस्में शामिल हैं और सभी 16 अनुष्ठानों में, एक पुरुष और एक महिला की एक निश्चित भूमिका होती है और उनकी अनुपस्थिति में, ऐसे अनुष्ठान पूरे नहीं किए जा सकते हैं।
यह भी कहा गया कि,''भारतीय कानून और संस्कृति के अनुसार, एक जैविक पति और जैविक पत्नी को विवाह के लिए आवश्यक कहा गया है और केवल उनकी शादी को मान्यता दी गई है। उनकी अनुपस्थिति में, समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती है क्योंकि इसमें पुरुष और महिला की कमी है, और न ही वे बच्चे पैदा कर सकते हैं। हिंदू कानून में विवाह को महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसके तहत पुरुष और महिला दोनों एक साथ रहते हैं और बच्चे पैदा करके मानव श्रृंखला को आगे बढ़ाते हैं।''
इसी पर विचार करते हुए, अदालत ने उनके समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए कार्पस के अनुरोध को खारिज कर दिया और तदनुसार बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निपटारा कर दिया गया।
केस का शीर्षक- कुमारी नेहा चंद्रा बनाम यू.पी. राज्य व तीन अन्य
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (सभी) 174
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