यदि निर्धारिती क्रिप्टो करेंसी अकाउंट स्टेटमेंट जमा करने में विफल रहता है तो पुनर्मूल्यांकन नोटिस को चुनौती नहीं दी जा सकती: राजस्थान हाईकोर्ट

Avanish Pathak

17 Sep 2022 5:32 AM GMT

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    राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि यदि निर्धारिती क्रिप्टो करंसी अकाउंट के लेनदेन का ब्योरा आयकर विभाग को जमा करने में विफल रहता है तो पुनर्मूल्यांकन (Reassessment) नोटिस को चुनौती नहीं दी जा सकती।

    जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने कहा कि क्रिप्टो करंसी में व्यापार का सत्यापन करने के लिए केवल बैंक लेनदेन पर्याप्त नहीं हैं। निर्धारिती को विभाग के समक्ष संबंधित लेज़र स्टेटमेंट प्रस्तुत करना चाहिए था, जो यह प्रमाणित करता हो कि उसने क्रिप्टो करेंसी के व्यापार शुरु किया था जैसा कि उसकी ओर से दी गई जानकारी के में उसने दावा किया है।

    2018-19 के निर्धारण वर्ष के लिए याचिकाकर्ता/निर्धारिती आदाता ने अपनी आयकर रिटर्न जमा की और निर्धारण कार्यवाही तैयार की गई। याचिकाकर्ता को धारा 148 ए (बी) के तहत एक नोटिस जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि निर्धारण वर्ष 2018-19 के लिए कर योग्य आय निर्धारण से बच गई है।

    यह खुलासा किया गया कि आयकर निदेशालय (सिस्टम) द्वारा चिह्नित हाई रिस्क सीआरआईयू / वीआरयू सूचना के अनुसार, निर्धारिती ने क्रिप्टो करंसी की खरीद के लिए 4,65,72,546 रुपये का निवेश किया था, लेकिन स्रोत सत्यापित नहीं था और आईटीआर दाखिल किया गया। यह घोषित किया गया था कि वर्ष के लिए कुल आय रु 5,46,500 है, जो बताए गए निवेश की तुलना में काफी मामूली राशि थी।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि नोटिस में आरोपित राशि क्रिप्टो करंसी के व्यापार के दरमियान किए गए लेनदेन की मात्रा को दर्शाती है, न कि निवेश राशि जैसा कि आरोप लगाया गया है। जवाब के साथ, याचिकाकर्ता ने आकलन वर्ष 2018-19 के लिए आईटीआर पावती बैंक स्टेटमेंट्र जिसमें क्रिप्टो करेंसी के बदले किए गए ट्रांसफर और आकलन वर्ष 2018-2019 के लिए आय की गणना दायर की।

    निर्धारण अधिकारी प्रतिक्रिया से असंतुष्ट था, मुख्यतः क्योंकि लेन-देन की मात्रा को गलत तरीके से निवेश राशि मान लिया गया था, जो संबंधित दस्तावेजी साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं था। एओ ने आयकर अधिनियम की धारा 148ए(डी) के तहत आदेश पारित किया, जिसके कारण धारा 148 के तहत नोटिस जारी किया गया, जिसे चुनौती नहीं दी गई।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आदेश सकारण नहीं ‌था और याचिकाकर्ता के जवाब पर विचार नहीं किया, आपत्त‌ि को यंत्रवत् खारिज कर दिया। यह निष्कर्ष कि याचिकाकर्ता ने सूचना के समर्थन में कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया था, विकृत था क्योंकि याचिकाकर्ता ने एक से अधिक दस्तावेज प्रस्तुत किए थे। निवेश के स्रोत को गलत तरीके से असत्यापित माना गया, हालांकि पूरा लेनदेन बैंक से विवरण प्राप्त करने के बाद प्रस्तुत किया गया था। आदेश गुप्त, अस्पष्ट और विकृत था।

    विभाग ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 148 ए (बी) के तहत कार्यवाही शुरू की गई थी, क्योंकि विश्वसनीय जानकारी प्राप्त होने पर, यह पता चला था कि याचिकाकर्ता द्वारा भारी मात्रा में निवेश किया गया था।

    ‌विभाग ने कहा कि याचिकाकर्ता का दावा कि लेन-देन में दिखाई गई राशि निवेश नहीं थी, बल्‍कि क्रिप्टो करंसी के व्यापार के दरमियान लेनदेन की मात्रा थी, असत्यापित रही, भले ही याचिकाकर्ता अधिकारियों के समक्ष क्रिप्टो करंसी के लेनदेन से संबंधित इलेक्ट्रॉनिक लेज़र रिकॉर्ड स्टेटमेंट प्रस्तुत कर सकता था, लेकिन ऐसा करने में विफल रहा। उत्तर के साथ संलग्न किए गए विभिन्न दस्तावेज क्रिप्टो करेंसी में लेनदेन से संबंधित लेज़र अकाउंट जमा न करने के अभाव में निर्धारिती द्वारा प्रस्तुत जानकारी को सत्यापित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।

    कोर्ट ने कहा कि यह व्यापार की मात्रा थी जो कुल 4,65,72,546 रुपये की राशि में परिलक्षित होती है या क्या यह क्रिप्टो करंसी में बिना किसी निकासी के किया गया निवेश था, यह क्रिप्टो करेंसी लेज़र के अवलोकन के बाद अनिवार्य रूप से विचार का एक मामला होगा।

    कोर्ट ने कहा,

    "हम पाते हैं कि प्राधिकरण ने इस स्तर पर याचिकाकर्ता के जवाब पर संक्षेप में विचार किया, केवल यह तय करने के उद्देश्य से कि क्या आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 148 के तहत कार्यवाही की जानी चाहिए। हमारे विचार में, प्राधिकरण द्वारा की गई कार्रवाई, अधिनियम, 1961 की धारा 148 (ए) की कानूनी आवश्यकता को पूरा करता है।"

    अदालत ने कहा कि निर्धारिती के लिए यह खुला होगा कि वह संबंधित क्रिप्टो करेंसी लेज़र जमा करके अधिकारियों को संतुष्ट करे, जैसा कि उसके द्वारा धारा 148ए के तहत कार्यवाही में मूल्यांकन अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की गई जानकारी को सत्यापित करने के लिए किया गया था।

    केस टाइटल: परमेष चंद यादव बनाम आयकर अधिकारी

    साइटेशन: डीबी सिविल रिट याचिका संख्या 7352/2022

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