रश्मि शुक्ला के पास कोई आधार नहीं, फोन टैपिंग की FIR रद्द करने की उनकी याचिका सुनवाई योग्य नहीं: महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट से कहा

LiveLaw News Network

6 Sep 2021 6:19 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    महाराष्ट्र सरकार ने सीनियर आईपीएस ऑफ‌िसर रश्मि शुक्ला की याचिका को यह कहते हुए खारिज करने की मांग की है कि गोपनीय रिपोर्ट लीक करने के मामले में ऑफ‌िसियल सिक्रेट एक्ट के तहत दायर एफआईआर में उनका नाम नहीं है। इसलिए, वह इसे चुनौती नहीं दे सकती हैं।

    पुलिस उपायुक्त रश्मि करंधीकर की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है, शुक्ला के पास "कोई आधार नहीं है," इसलिए उनकी याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। शुक्ला की 2020 की रिपोर्ट (राज्य खुफिया विभाग के प्रमुख के रूप में), फोन इंटरसेप्शन से संबंधित है, जिसमें कथित तौर पर पुलिस बल में तबादलों और पोस्टिंग में भ्रष्टाचार और राजनीतिक गठजोड़ का खुलासा किया गया है।

    शुक्ला की याचिका में लीक के बाद अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मुंबई पुलिस की ओर से दर्ज 26 मार्च, 2021 की एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई है। प्राथमिकी में भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

    उल्लेखनीय है कि भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने मार्च में राष्ट्रीय टेलीविजन पर शुक्ला की गोपनीय रिपोर्ट का विवरण जारी किया था, जिसके बाद यह मामला दर्ज किया गया। राज्य का दावा है कि शुक्ला ने रिपोर्ट को "टॉप सीक्रेट" के रूप में चिह्नित किया था, इसलिए आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम की धाराएं लागू की गई हैं।

    हलफनामे में कहा गया है , "चूंकि गुप्त सूचना का लीक होना एक संज्ञेय अपराध है, इसलिए प्राथमिकी रद्द नहीं की जानी चाहिए । "

    हलफनामे में इस आरोप का भी खंडन किया गया है कि 25 अगस्त, 2020 को तत्कालीन पुलिस महानिदेशक सुबोध जायसवाल को शुक्ला द्वारा एक रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद पिछले साल उन्हें नागरिक सुरक्षा में स्थानांतरित करने में प्रतिशोध, दुर्भावना या अवैधता थी। शुक्ला ने अपने वकीलों के माध्यम से आरोप लगाया था कि उन्हें "बलि का बकरा " बनाया गया है और उन्होंने प्राथमिकी में कथित कोई अपराध नहीं किया है।

    शुक्ला की ओर से पेश से सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने कहा था कि अगर ही शुक्ला ने रिपोर्ट लीक करने का काम किया होगा तो ऐसा करके उन्होंने "बहुत बड़े जनहित में, आरटीआई एक्‍ट की प्रस्तावना और प्रावधानों के अनुरूप और सच्चाई, न्याय और जनहित के सर्वोच्च अंतर्निहित सिद्धांत के अनुरूप काम किया होगा। "

    उन्होंने दावा किया था कि प्राथमिकी तब दर्ज की गई थी जब राज्य के मुख्य सचिव सीताराम कुंटे ने एक रिपोर्ट दी थी कि उन्होंने "अपनी गलती स्वीकार कर ली है" और एक महिला होने के नाते कोई और कदम नहीं उठाया गया। राज्य ने उनके इन आरोपों से इनकार किया कि पुलिस उन्हें तलब कर 'रोविंग इन्‍क्वाइरी' करने की कोशिश कर रही है । 13 पन्नों के हलफनामे में कहा गया है, "समन इसलिए दिया गया है ताकि अपराधों की प्रभावी जांच हो सके।"

    हलफनामे में कहा गया है, "इस बात से इनकार किया जाता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी तरह की जांच का निर्देश दिया गया है।" जेठमलानी के आरोपों कि फोन टैप में कुंटे की मंजूरी थी और वह अपनी भूमिका को "अस्वीकार" नहीं कर सकते थे, का जवाब देते हुए 13 पेज के हलफनामे में कहा गया है कि चूंकि शुक्ला खुद स्वीकार करती हैं कि फोन टैप करना उनकी आधिकारिक क्षमता में था, इसलिए एफआईआर को रद्द करने के लिए अनुमति अप्रासंगिक है।

    हलफनामे में कहा गया है, "जिस अपराध की जांच की जानी है वह सूचना की लीक होना है और इसका लीक की गई जानकारी की सामग्री से कोई लेना-देना नहीं है।"

    केस का शीर्षक: [रश्मि शुक्ला बनाम महाराष्ट्र राज्य]

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