बलात्कारी असहाय महिला की आत्मा को अपमानित करता हैः पटना हाईकोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार करने वाले व्यक्ति की सजा को सही ठहराया

LiveLaw News Network

8 April 2021 8:45 AM GMT

  • बलात्कारी असहाय महिला की आत्मा को अपमानित करता हैः पटना हाईकोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार करने वाले व्यक्ति की सजा को सही ठहराया

    पटना हाईकोर्ट ने 14 साल की नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने के मामले में दोषी पाए गए एक व्यक्ति की सजा की पुष्टि करते हुए मंगलवार को कहा कि,''बलात्कार केवल एक शारीरिक हमला नहीं है, यह अक्सर पीड़ित व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व का विनाशकारी होता है। एक हत्यारा पीड़ित के फिजिकल शरीर को नष्ट करता है, परंतु एक बलात्कारी असहाय महिला की आत्मा को अपमानित करता है।''

    न्यायमूर्ति बीरेंद्र कुमार की एकल पीठ ने यह भी कहा कि यदि मामले के रिकॉर्ड से पता चलता है कि पीड़िता के पास आरोपी को गलत तरीके से फंसाने के लिए कोई मजबूत मकसद नहीं है, तो अदालत को उसके बयान को स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए क्योंकि ''कोई भी आत्म-सम्मान रखने वाली महिला आकस्मिक तरीके से स्वंय का अपमान करने वाला बयान देने के लिए आगे नहीं आएगी।''

    यह अवलोकन दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की तरफ से दायर अपील पर सुनवाई के दौरान किया गया है। जिसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के साथ- साथ पाॅक्सो एक्ट (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012)की धारा 4 के तहत विशेष पाॅक्सो जज ने अपने 27 मई 2019 के फैसले के तहत दोषी करार दिया था। इसके बाद उसे 10 साल के कठोर कारावास और 50000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।

    अपीलकर्ता का मामला यह था कि पीड़िता के बयान को चिकित्सा साक्ष्य द्वारा प्रमाणित नहीं किया गया है और इस मामले के गवाह केवल ''सुनी सुनाई बात कहने वाले गवाह'' हैं।

    दूसरी ओर, पीड़ित लड़की की ओर से वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि बलात्कार की पीड़िता को छोटी-मोटी विसंगतियों के लिए संदेह की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता है।

    न्यायालय ने कहा कि बलात्कार के हर मामले में प्रतिपुष्टि न्यायिक साख का अनिवार्य घटक नहीं है, इस प्रकार न्यायालय ने माना किः

    ''प्रतिपुष्टि के अभाव में एक नियम के रूप में,यौन उत्पीड़न की शिकार की गवाही पर कार्रवाई करने से इनकार करना, उसकी चोट में अपमान को जोड़ना है।''

    बलात्कार जैसे अपराधों से निपटने के दौरान भारतीय महिलाओं को होने वाली कठिनाइयों पर टिप्पणी करते हुए, न्यायालय ने कहा किः

    ''इसका कारण यह है कि भारत के परंपराओं से बंधे गैर-अनुमेय समाज में एक लड़की या एक महिला उस घटना के घटित होने को भी स्वीकार करने में अनिच्छुक होती है जो उसकी पवित्रता को दर्शा सकती है। वह समाज से बहिष्कृत होने के खतरे के प्रति सचेत होती है। जब इन कारकों को देखते हुए अपराध को प्रकाश में लाया जाता है, तो यह एक इनबिल्ट आश्वासन होता है कि आरोप गढ़े नहीं गए हैं बल्कि वास्तविक हैं। सामान्य तौर पर, भारतीय महिलाओं में इस तरह के अपराध को अपने परिवार के सदस्यों के समक्ष भी छिपाने की प्रवृत्ति होती है,फिर पुलिस के समक्ष या उनको सार्वजनिक करने की बात दूर होती है। इसलिए, कुछ हद तक पीड़िता की गवाही, एक घायल गवाह की तुलना में अधिक ऊंचाई पर खड़ी होती है।''

    इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि जहां एक हत्यारा अपने शिकार के फिजिकल शरीर को नष्ट कर देता है, वहीं दूसरी ओर एक बलात्कारी, असहाय महिला की आत्मा का अपमान करता है।

    कोर्ट ने शुरूआत में ही कहा कि,

    ''अदालत को यह ध्यान रखना चाहिए कि एक बलात्कारी न केवल पीड़िता की निजता और पवित्रता का उल्लंघन करता है, बल्कि अनिवार्य रूप से इस दौरान गंभीर मनोवैज्ञानिक के साथ-साथ शारीरिक नुकसान पहुंचाता है।''

    पूर्वोक्त टिप्पणियों के मद्देनजर, न्यायालय ने यह भी माना कि ऐसे मामलों से ''अत्यंत संवेदनशीलता'' के साथ निपटने के लिए न्यायालयों की अधिक जिम्मेदारी बन जाती है।

    '''मुकदमे की व्यापक संभावनाओं की जांच की जानी चाहिए। पीड़िता के बयान के मामूली अंतर्विरोध या नगण्य विसंगतिया, जो एक घातक प्रकृति की नहीं हैं, अभियोजन पक्ष के विश्वसनीय मामले के रास्ते में नहीं आनी चाहिए।''

    यह देखते हुए कि चिकित्सा न्यायशास्त्र के तहत, बलात्कार के सभी मामलों में हाइमन का टूटना महत्वपूर्ण नहीं है, न्यायालय ने यह भी कहा कि वर्तमान मामले में रिकाॅर्ड पर ऐसा कुछ है जो पीड़िता के साथ हुए पेनिट्रेशन की प्रकृति को निर्दिष्ट करता हो।

    इसलिए, अदालत ने कहा कि यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि पीड़िता की गवाही चिकित्सा साक्ष्य के साथ पूरी तरह से असंगत है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि पीड़िता के पास ऐसा आरोप लगाने का एक मजबूत मकसद था जो न केवल अपीलकर्ता के खिलाफ था, बल्कि खुद पीड़ित के मान-सम्मान के खिलाफ भी था। जैसा कि ऊपर देखा गया है, पीड़िता का बयान पूरी तरह से मेडिकल रिपोर्ट या अन्य अभियोजन पक्ष के गवाहों के साथ असंगत नहीं है। इसलिए, पीड़िता की भरोसेमंद गवाही को खारिज करने या त्यागने का कोई कारण नहीं है।''

    इस पर गौर करते हुए कोर्ट ने पाॅक्सो जज के फैसले की पुष्टि कर दी और दोषी द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया।

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