रेप पीड़िता की प्रेग्नेंसी: दिल्ली हाईकोर्ट ने एम्स को गर्भ को खत्म करने पर फैसला करने के लिए एक दिन के भीतर मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया
LiveLaw News Network
24 Sept 2021 4:45 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बलात्कार पीड़िता की ओर से गर्भपात कराने के संबंध में दायर रिट याचिका पर चिकित्सा अधीक्षक, एम्स को तत्काल मेडिकल बोर्ड का गठन करने और पीड़िता के 20 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की व्यवहार्यता की जांच करने का निर्देश जारी किया है।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने गुरुवार को आदेश दिया कि बोर्ड का गठन किया जाए और एक दिन के भीतर याचिकाकर्ता से पूछताछ की जाए।
आदेश में कहा गया है,
" यह न्यायालय एम्स के चिकित्सा अधीक्षक से अनुरोध करता है कि वह आज या कल, यानी 24 सितंबर, 2021 तक याचिकाकर्ता की जांच करने के लिए तुरंत एक मेडिकल बोर्ड का गठन करे और अगर याचिकाकर्ता के जीवन को कोई नुकसान पहुंचे बिना गर्भावस्था को सुरक्षित रूप से समाप्त किया जा सकता है तो तेजी से किया जाए।"
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसकी गर्भकालीन अवधि 20 सप्ताह से कम थी, जब उसने गर्भपात के लिए एम्स का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, चूंकि अस्पताल ने उसके अनुरोध को ठुकरा दिया था, इसलिए उसे हाईकोर्ट में आने के लिए बाध्य होना पड़ा।
याचिकाकर्ता के वकीलों ने दावा किया कि गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन संबंधित पुराने और नए कानून के तहत पीड़ित बखूबी कवर है, हालांकि, एम्स के इनकार के कारण याचिकाकर्ता का गर्भ 20 सप्ताह का हो गया है।
कोर्ट ने मामले में कहा कि याचिकाकर्ता के गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के अधिकार को लागू करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। एम्स के वकील द्वारा उन्हें निर्देश लेने के लिए कुछ समय देने के अनुरोध को खारिज करते हुए, अदालत ने मौखिक रूप से कहा, "आप ऐसे मामलों में हफ्तों का समय नहीं मांग सकते।"
23 जून 2021 को याचिकाकर्ता के दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज की गई थी। महीनों बाद अगस्त में याचिकाकर्ता को उसकी गर्भावस्था के बारे में पता चला, तब वह 15 सप्ताह की गर्भवती हो चुकी थी। सितंबर के पहले सप्ताह में उसने गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए एम्स का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, अस्पताल ने गर्भावस्था को समाप्त करने से इनकार कर दिया क्योंकि गर्भकालीन अवधि 16 सप्ताह से अधिक थी।
याचिकाकर्ता का मामला है कि वह नए अधिनियमित गर्भावस्था (संशोधन) अधिनियम 2021 के तहत पूरी तरह से कवर है, जिसने बलात्कार से बचे, अनाचार की शिकार महिलाओं और अन्य कमजोर महिलाओं (विकलांग महिलाएं, नाबालिग, अन्य) के लिए ऊपरी गर्भ सीमा को 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया है। हालांकि, कानून द्वारा पूरी तरह से कवर किए जाने के बावजूद, प्रतिवादी-अस्पताल ने कानून के तहत अनिवार्य दो पंजीकृत चिकित्सकों की सलाह के बिना गर्भावस्था को समाप्त करने से इनकार कर दिया।
यह मामला अब 27 सितंबर, 2021 को सूचीबद्ध है। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व एडवोकेट अन्वेश मधुकर और प्राची निर्वाण ने किया।
प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त स्थायी वकील कामना वोहरा, एडवोकेट वी. शशांक कुमार और एडवोकेट वीएसआर कृष्णा, स्थायी वकील ने किया।