बलात्कार का मामला : शादी के वादे को प्रलोभन नहीं माना जा सकता, जब यौन संबंध अनिश्चित समय तक बनाए गए होंः दिल्ली हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
20 Dec 2020 10:45 AM IST
''शादी के वादे को समय की लंबी और अनिश्चित अवधि के लिए सेक्स में लिप्त होने के लिए प्रलोभन नहीं माना जा सकता है'',यह टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार (15 दिसंबर) को एक महिला की तरफ से दायर उस अपील को खारिज कर दिया है जो छह सौ चालीस दिन की असाधारण देरी के बाद ट्रायल कोर्ट के जजमेंट के खिलाफ दायर की गई थी।
न्यायमूर्ति विभु बाखरू की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के 24 मार्च 2018 के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया है। इस फैसले के तहत अभियुक्त पर लगाए गए आरोपों से उसे बरी कर दिया गया था - भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 417/376 के तहत दंडनीय अपराध।
मामले की पृष्ठभूमि
15 अगस्त 2015 को, अपीलकर्ता (महिला) ने पीएस मालवीय नगर में शिकायत दर्ज की थी, जिसके बाद आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 417/376 के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
अभियोजन पक्ष का मामला लगभग पूरी तरह से शिकायतकर्ता की गवाही पर निर्भर था और शिकायतकर्ता की गवाही का विश्लेषण करने के बाद, ट्रायल कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि,
''इस प्रकार यह स्पष्ट है कि पीड़िता ने अपनी मर्जी के अभियुक्त के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किए थे क्योंकि वह अभियुक्त के प्रति सच्चा स्नेह रखती थी और पहली बार में शारीरिक संबंध स्थापित करने में उसकी सहमति लेने के लिए अभियुक्त ने उससे शादी करने का वादा नहीं किया था।''
ट्रायल कोर्ट ने आगे कहा,
''शादी की बातचीत, यदि कोई हुई भी है तो वह अभियुक्त और पीड़िता के बीच अंतरंग शारीरिक संबंध बनाने के बाद हुई है।''
पीड़िता के अनुसार, आरोपी की एक महिला के साथ शादी के होने के बाद भी उसने आरोपी के साथ शारीरिक संबंध बनाए और वह गर्भवती हो गई थी।
उसने अपनी गवाही में बताया था कि कुछ समय बाद, आरोपी के एक अन्य लड़की के साथ संबंध बन गए थे, लेकिन इसके बावजूद भी पीड़िता ने उसके साथ अपने संबंध जारी रखे थे।
इस प्रकार ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 417/376 के तहत दंडनीय अपराध के लिए बरी कर दिया था।
हाईकोर्ट का अवलोकन
हमें ट्रायल कोर्ट द्वारा निकाले गए निष्कर्ष में ''कोई दुर्बलता'' नहीं मिली है,यह टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि,
''अपीलकर्ता द्वारा की गई शिकायत के साथ-साथ उसकी गवाही को पढ़ने के बाद स्पष्ट रूप से यह इंगित होता है कि अभियुक्त के साथ उसके संबंध सहमतिपूर्ण थे। उसका यह आरोप कि उसकी सहमति कोई मायने नहीं रखती है क्योंकि वह गलत बयान/वादे के आधार पर प्राप्त की गई थी,स्पष्ट रूप से अरक्षणीय है।''
यह ध्यान दिया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्यः(2019) एससीसी ऑनलाइन एससी 1073 के मामले में माना था कि,
''आईपीसी की धारा 375 के तहत सहमति में प्रस्तावित अधिनियम की परिस्थितियों, कार्यों और परिणामों की एक सक्रिय समझ शामिल है। एक व्यक्ति जो विभिन्न वैकल्पिक कार्यों (या निष्क्रियता) के साथ-साथ इस तरह के कार्य या निष्क्रियता से निकलने वाले परिणामों मूल्यांकन के बाद एक कार्य को करने के लिए एक उचित विकल्प बनाता है, तो वह ऐसे कार्य को करने के लिए अपनी सहमति देता है।''
इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना था कि क्या ''सहमति'' को शादी करने के वादे से उत्पन्न ''तथ्य की गलतफहमी'' के आधार पर लिया गया था,यह स्थापित करने के लिए दो कथन साबित किए जाने चाहिए -
- शादी का वादा एक झूठा वादा था, जो बुरी नियत के साथ किया गया था और जिस समय यह वादा किया गया था,उस समय भी इसका पालन करने का कोई इरादा नहीं था।
-झूठा वादा, अपने आप में तत्काल प्रासंगिकता का होना चाहिए, या यौन कृत्य में संलग्न होने के लिए महिला द्वारा लिए गए निर्णय के साथ इसका सीधा संबंध होना चाहिए।
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि,
''शारीरिक संबंध बनाने के लिए शादी के वादे का प्रलोभन देना और पीड़िता द्वारा इस तरह के प्रलोभन का शिकार होना,एक पल के संदर्भ में समझा जा सकता है।''
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने यह भी कहा,
''यह स्वीकार करना मुश्किल है कि एक ऐसा अंतरंग संबंध, जिसमें समय की एक महत्वपूर्ण अवधि में यौन गतिविधि भी शामिल थी, वो अनैच्छिक था और ऐसा संबंध स्नेह के कारण नहीं बल्कि केवल शादी के लालच के आधार पर जारी रखा गया था।''
अंत में, यह देखते हुए कि ''वर्तमान अपील भी छह सौ चालीस दिनों की एक असाधारण देरी के बाद दायर की गई है'', अदालत ने कहा कि अपील में कोई मैरिट नहीं हैं और इसप्रकार, इस अपील को मैरिट के साथ-साथ देरी के आधार पर खारिज कर दिया गया।
केस का शीर्षक - एक्स बनाम राज्य (Govt. Of NCT Of Delhi), [CRL.A. 613/2020 & CRL.M.A. 16968/2020]
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