नक्सली होने के कारण फरार होने की आशंका की वजह से बलात्कार के दोषी को पैरोल देने से इनकार कियाः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उसे राहत दी

Manisha Khatri

11 Sep 2022 2:00 PM GMT

  • नक्सली होने के कारण फरार होने की आशंका की वजह से बलात्कार के दोषी को पैरोल देने से इनकार कियाः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उसे राहत दी

    Chhattisgarh High Court

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने थाना प्रभारी द्वारा व्यक्त की गई आशंका के कारण पैरोल से वंचित किए गए बलात्कार के एक दोषी को राहत दी है। थाना प्रभारी ने आशंका जताई थी कि दोषी नक्सल प्रभावित क्षेत्र का है, इसलिए उसके फरार होने की संभावना है।

    जस्टिस एन के चंद्रवंशी की पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि पुलिस स्टेशन के प्रभारी ने आपत्ति दर्ज की है, उसे दोषी को छूट देने की एक पूर्ण बाधा के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, जो छत्तीसगढ़ प्रिज़नर लीव रूल्स 1989 की धारा 4 और 6 के तहत सृजित एक अधिकार है।

    इसी के साथ ही अदालत ने अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया है कि वह 15 दिनों की अवधि के भीतर दोषी को उसके द्वारा आवेदित अवधि के लिए छुट्टी/पैरोल देने के लिए आवश्यक रिहाई आदेश जारी करें।

    संक्षेप में मामला

    याचिकाकर्ता/दोषी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(बी)(II), 376(2बी) और 506बी के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है और वह लगभग 6 साल से जेल में है। उसने छत्तीसगढ़ कैदी अवकाश नियम 1989 के नियम 4 और 6 के तहत छुट्टी मंजूर करने के लिए आवेदन दायर किया था।

    अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, गरियाबंद (सीजी) ने यात्रा अवधि सहित 12 दिनों की पैरोल की मांग करने वाले याचिकाकर्ता/दोषी द्वारा दायर आवेदन को खारिज कर दिया था क्योंकि थाने के प्रभारी द्वारा आशंका व्यक्त की थी कि वह एक नक्सली होने के नाते फरार हो सकता है। इसे चुनौती देते हुए दोषी ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    कोर्ट ने नोट किया कि 1989 के नियमों के नियम 6 (ए) से जुड़े नोट में यह प्रावधान है कि केवल एक ही आधार पर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा छुट्टी/पैरोल से इनकार किया जा सकता है यानी केवल उस मामले में जहां वह संतुष्ट है कि कैदी की रिहाई सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा है और किसी भी अन्य परिस्थिति में बिना किसी ठोस कारण के नियमित रूप से छुट्टी से इनकार नहीं किया जा सकता है।

    इसे देखते हुए कोर्ट ने जोर देकर कहा कि नियम 1989 के तहत कार्रवाई की जिम्मेदारी जिला मजिस्ट्रेट को सौंपी गई है और इसलिए, यह उम्मीद की जाती है कि पैरोल देने के उद्देश्य पर विचार करते हुए इस तरह की जिम्मेदारी का पालन किया जाए।

    गौरतलब है कि कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में थाना प्रभारी ने अपनी आशंका के लिए कोई उचित आधार नहीं बताया था, बल्कि उक्त गांव के पीड़ित और सरपंच ने याचिकाकर्ता को पैरोल दिए जाने के संबंध में कोई आपत्ति जाहिर नहीं की थी। यहां तक कि अधीक्षक, सेंट्रल जेल, रायपुर ने भी याचिकाकर्ता को पैरोल देने की सिफारिश की थी।

    अदालत ने दोषी को राहत देते हुए आगे कहा कि,

    ''1989 के नियम कुछ उद्देश्य के साथ बनाए गए हैं, इसलिए पैरोल की मंजूरी के आवेदन पर उन उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जाना चाहिए। बिना उचित कारण के किसी भी आधार पर ऐसे आवेदन को अस्वीकार करने से उपरोक्त नियम बनाने का उद्देश्य विफल हो जाएगा। इसलिए, मामले के तथ्यों में, याचिकाकर्ता 1989 के नियमों के अनुसार पैरोल पर रिहा होने का हकदार है।''

    केस टाइटल - कमलेश कुमार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य व अन्य, डब्ल्यूपीसीआर नंबर- 228/2022

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