'दुष्कर्म पूरे समाज के खिलाफ किया गया अपराध है' : कर्नाटक हाईकोर्ट ने गैंग-रेप के लिए डेथ पेनल्टी की सिफारिश की

LiveLaw News Network

24 Oct 2020 5:30 AM GMT

  • दुष्कर्म पूरे समाज के खिलाफ किया गया अपराध है : कर्नाटक हाईकोर्ट ने गैंग-रेप के लिए डेथ पेनल्टी की सिफारिश की

    यह देखते हुए कि ''भारतीय दंड संहिता को 1860 के अधिनियम 45 द्वारा अधिनियमित किया गया था, और स्वतंत्रता के 74 वर्षों के बाद भी महिलाएं बलात्कारियों/ कानून के उल्लंघनकर्ताओं से सुरक्षित नहीं है'', कर्नाटक हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376डी में संशोधन की सिफारिश की है ताकि 'गैंगरेप' के अपराध के लिए मृत्युदंड प्रदान किया जा सके।

    जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस के नटराजन की खंडपीठ ने वर्ष 2012 में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी की छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में सात अभियुक्तों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए अपने फैसले में यह सिफारिश की है।

    पीठ ने कहा किः

    ''हम यहां विधान मंडल/केंद्र सरकार से सिफारिश करते हैं कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 376 डी-गैंगरेप के प्रावधानों में संशोधन करें ताकि गैंगरेप के मामले में मौजूदा आजीवन कारावास व जुर्माने की सजा के अलावा मृत्युदंड की सजा दी जा सकें। ऐसे करते समय भारतीय दंड संहिता की धारा 10 के तहत 'महिला' की परिभाषा को ध्यान में रखा जाए ताकि बड़े पैमाने पर समाज में 'सामूहिक बलात्कार' के खतरे को रोका जा सकें।''

    पीठ ने अपील की है कि बलात्कार के अपराधों को रोकने के लिए लिंग संवेदनशीलता को लेकर जागरूकता फैलाने का समय आ गया है। कहा कि ''हम आशा और विश्वास करते हैं कि लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ाना महिलाओं की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। निर्भया के मामले के बाद कड़े संशोधित कानून के बावजूद महिलाओं की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। समय आ गया है कि गृह विभाग, राज्य कानूनी सेवा अधिकारी, महिला संगठन और प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आम जनता के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना शुरू कर दें।''

    अदालत ने आगे सुझाव दिया कि-

    ''एक बच्चे को समाज में महिलाओं का सम्मान करने के लिए उसी तरह सिखाया जाना चाहिए जैसे उन्हें पुरुषों का सम्मान करने के लिए सिखाया जाता है। लैंगिक समानता को स्कूल के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। स्कूल के शिक्षकों और माता-पिता को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, न कि केवल व्यक्तित्व-निर्माण और कौशल बढ़ाने के लिए बल्कि बच्चों के वास्तविक व्यवहार पैटर्न पर नजर रखने के लिए भी ताकि उन्हें लिंग के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके। शैक्षिक संस्थानों, सरकारी संस्थानों, नियोक्ताओं और सभी संबंधितों को लैंगिक संवेदनशीलता के संबंध में जागरूकता पैदा करने और महिलाओं का सम्मान करने के लिए कदम उठाने चाहिए। "

    यह भी सुझाव दिया है कि टीवी व प्रेस के माध्यम से लिंग न्याय पर जनता के संवेदीकरण का स्वागत किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि ''ऑटो, टैक्सियों और बसों आदि जैसे सार्वजनिक परिवहन वाहनों में बैनर और प्लेकार्ड लगाए जाने चाहिए। रात के समय सड़क लाईट जलाना, बस-स्टॉप पर रोशनी और अतिरिक्त पुलिस गश्त को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।''

    पुलिस/ सुरक्षा गार्डों को अंधेरे और एकांत वाले स्थानों जैसे पार्क, सड़कों आदि पर तैनात किया जाना चाहिए, महत्वपूर्ण स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए। महिलाओं की तत्काल सहायता के लिए मोबाइल ऐप तैयार किए जाने चाहिए और उनका प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिए। महिलाओं की रक्षा करने वाले विभिन्न कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन के अलावा, बड़े पैमाने पर समाज की मानसिकता में बदलाव और लिंग न्याय पर जनता में जागरूकता पैदा करना, महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने का एक लंबा रास्ता तय करेगा।

    अभियोजन का मामला

    13.10.2012 को रात को लगभग 9.15 बजे बैंगलोर यूनिवर्सिटी के मुख्य भवन और नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के बीच स्थित सड़क पर खड़ी एक कार के अंदर पीड़ित लड़की और उसका दोस्त एक दूसरे से बात कर रहे थे, अचानक तभी आरोपी व्यक्ति - रामू, शिवन्ना, मद्दुरा, एलेय्याह, एरायाह, राजा, और डोड्डा एरायाह उस कार के पास आए और कार को चारों तरफ से घेर लिया। उनके हाथ में लोहे की छड़, आरी, लंबे चाकू व रस्ती आदि थे।

    उन्होंने कार के बाए दरवाजे को जबरन खोला और पीड़ित लड़की को वन एरिया में खींच ले गए और जबरन सामूहिक बलात्कार किया।

    उन्हें आईपीसी की धारा 427, 366, 323, 324, 397, 376 (2) (जी) रिड विद 149 के तहत ट्रायल कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

    हाईकोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ सबूतों की बारीकी से जांच के बाद ट्रायल कोर्ट की सजा को बरकरार रखते हुए कहा किः

    ''आरोपी व्यक्तियों ने जंगल के घातक जानवरों की तरह काम किया है। यह ऐसा था, जैसे कि जंगली जानवर अपने असहाय शिकार जैसे की खरगोश आदि को खोजते हैं और फिर उसे अपना शिकार बनाते हैं। वर्तमान मामले में, इन आरोपी व्यक्तियों ने अपनी वासना की इच्छा की पूर्ति के लिए पीड़ित लड़की का शिकार किया है। उन्होंने बारी-बारी उससे दुष्कर्म किया था,जबकि कुछ आरोपियों ने तो दो या तीन बार उससे दुष्कर्म किया। इसलिए यह मामला एक इंसान के खिलाफ की गई बर्बरता है, जो क्रूर जानवरों से भी बदतर हैं और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।

    इस बात को ध्यान में रखते हुए कि बैंगलोर में सात लाख से अधिक कामकाजी महिलाएँ हैं और भारत में उनकी ताकत विश्व बैंक से मिली जानकारी के अनुसार 20 प्रतिशत है, पीठ ने कहा ''इस घटना के मद्देनजर, महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल पैदा हुआ है। नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के आसपास के वन क्षेत्र में घटी यह घटना एक ऐसी घटना है जिसके कारण सभी मनुष्यों को सिर झुक गया है। यह घिनौने अपराध की एक एकान्त घटना है, जिसने सभी की सुरक्षा पर एक सवालिया निशान लगा दिया है।''

    अभियोजन के मामले के अनुसार, अभियुक्त के खिलाफ सबूत का एक महत्वपूर्ण टुकड़ा घटना के मौके पर पाया गया रूमाल था, जिस पर पीड़िता व अभियुक्त के वीर्य के दाग के पाए गए थे।

    पीठ ने कहा ''जब 13.10.2012 को यह भयावह घटना हुई, तब वहां पर प्रकृति को छोड़कर कोई भी इंसान नहीं था। प्रकृति ने आरोपियों द्वारा किए गए बर्बर 'सामूहिक बलात्कार' को देखा है और इस तरह उनसे उनकी बर्बरता का 'सुराग' वहीं पर छुड़वा दिया गया।''

    यह भी कहा कि ''कानून को 'राजाओं का राजा' कहा जाता है और कोई भी 'न्याय से बच नहीं सकता है' - आरोपी व्यक्तियों को दंडित करने के लिए रूमाल 'सुदर्शन चक्र' (भगवान श्रीकृष्ण का हथियार) बन गया है।''

    सजा के पहलू पर

    पीठ ने कहा कि ''न्याय यह मांग करता है कि न्यायालयों को अपराध को दबाने के लिए दंडित करना चाहिए ताकि न्यायालय सार्वजनिक रूप से प्रतिबिंबित हों। उचित सजा देने पर विचार करते समय न्यायालय को केवल अपराधी के अधिकारों का ध्यान नहीं रखना चाहिए बल्कि पीड़ित और बड़े पैमाने पर समाज के अधिकारों को भी ध्यान में रखना चाहिए।''

    यह भी कहा कि,''विक्टिम, जो नेपाल के काठमांडू से भारत आई थी और उसने बहुत सारे सपनों के साथ लॉ कॉलेज में पढ़ाई शुरू की थी। आरोपी व्यक्तियों द्वारा किए गए इस अपराध के कारण उसने अपनी पढ़ाई बंद कर दी है और हमारे देश (भारत) को कोसते हुए अपने मूल स्थान पर वापस चली गई है। पीड़ित लड़की के साथ आरोपियों द्वारा की गई घिनौनी घटना के कारण, पूरे देश विशेषकर कर्नाटक राज्य की कानून-व्यवस्था को जिम्मेदार माना गया है।

    चूंकि 'देश की प्रतिष्ठा दांव पर है', इसलिए आरोपी व्यक्तियों के प्रति कोई उदारता नहीं दिखाई जा सकती है। अभियुक्तों के प्रति कोई भी गलत सहानुभूति 'अदालत की गरिमा, कानून की महिमा और हमारे प्रचीन काल से चली आ रही परंपराओं और संस्कृतियों के रास्ते के बीच में आ जाएगी।' इसलिए उनके प्रति कोई सहानुभूति नहीं रखी जा सकती है।''

    बलात्कार अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकार की गारंटी का उल्लंघन करता है

    पीठ ने उल्लेख किया कि ''एक अमानवीय कृत्य होने के अलावा अभियुक्त द्वारा की गई यौन हिंसा, एक महिला के निजता और पवित्रता के अधिकार में की गई एक गैरकानूनी घुसपैठ होती है। यह उसके सर्वोच्च सम्मान के लिए एक गंभीर झटका है और उसके आत्मसम्मान और गरिमा को समाप्त करता है। यह पीड़ित को अपमानित करता है और जहां पर पीड़ित एक असहाय निर्दोष महिला, बच्चा या नाबालिग है, यह एक दर्दनाक अनुभव को पीछे छोड़ देता है। एक बलात्कारी न केवल शारीरिक चोटों का कारण बनता है, बल्कि उसकी सबसे अधिक पोषित स्थिति यानी उसकी गरिमा, सम्मान, प्रतिष्ठा और पवित्रता पर भी निशान छोड़ता है।''

    पीठ ने कहा कि,''बलात्कार केवल पीड़ित लड़की के खिलाफ अपराध नहीं है, बल्कि पूरे समाज के खिलाफ एक अपराध है।'' यह बुनियादी मानवाधिकारों के खिलाफ एक अपराध है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सबसे पोषित या अभिलषित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन करता है।''

    कोर्ट ने मनु-स्मृति, वेद से उद्धृत किया और सप्तपदी मंत्र के अर्थ का उल्लेख करते हुए कहा, ''वह समाज जो महिलाओं को सम्मान और आदर प्रदान करता है, वो बड़प्पन और समृद्धि के साथ पनपता है और एक ऐसा समाज जो महिलाओं को इतने ऊंचे पद पर नहीं रखता है,उसे दुखों और असफलताओं का सामना करना पड़ता है,भले ही वह अन्य कितने ही नेक काम करें।

    स्वामी विवेकानंद का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि 'किसी राष्ट्र की प्रगति को नापने का सबसे अच्छा थर्मामीटर, उनकी महिलाओं के साथ किया जाने वाला व्यवहार है।''

    कोर्ट ने इस मामले में पीड़िता द्वारा दिखाए गए साहस की भी सराहना की।

    पीड़िता की गवाही को स्वीकार करते हुए और इसे पूरी तरह से विश्वसनीय और वास्तविक मानते हुए बेंच ने कहा कि ''उसने 'धर्म की रक्षा' के लिए रात को 1.30 बजे साहसपूर्वक शिकायत दर्ज कराई थी। कानून के अनुसार आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उसकी 'सहिष्णुता'और 'साहस' की सराहना करनी होगी।''

    पीठ ने कहा,''पीड़िता ने अपने जीवन की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में न्याय पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने का साहस दिखाया है,जिसकी हम सराहना करते हैं।''

    कोर्ट ने नरमी बरतने या दया दिखाने से किया इनकार

    कोर्ट ने कहा कि ''अदालत को बलात्कारियों से कड़े हाथों से निपटना होगा। वर्तमान मामले में, अपीलकर्ता-आरोपी व्यक्तियों ने अपने घोर अपराध के लिए कोई पश्चाताप व्यक्त नहीं किया है, बल्कि उन्होंने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपना बयान दर्ज करते हुए चुप रहने का विकल्प चुना है। ऐसे में उन्होंने जानबूझकर चुप रहने का विकल्प चुना है और झूठे आरोप में फंसाने की बात कही है। जो यह दर्शाता है कि उनमें कभी भी सुधार नहीं हो सकता है।''

    यह भी कहा कि,''अभियुक्तों द्वारा की गई क्षति अपार है, अपूरणीय है और उसकी भरपाई नहीं हो सकती है। इसके लिए पीड़ित को जीवन भर कष्ट झेलना पड़ेगा। इसलिए, अपीलार्थी-अभियुक्त किसी भी प्रकार की दया या नरमी के हकदार नहीं हैं।''

    कोर्ट ने आम जनता से की अपील,पीड़ितों का समर्थन करेंः

    पीठ ने कहा, ''अब बड़े पैमाने पर पिता, माता, भाई, पीड़ित के पति और समाज के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह बलात्कार की पीड़ितों का समर्थन करें ताकि उनके भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अनिवार्य जीवन के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सकें।''

    अंत में अदालत ने महात्मा गांधी के एक उद्धरण का उल्लेख किया, जो इस प्रकार है-''जिस दिन एक महिला रात में सड़कों पर स्वतंत्र रूप से चल सकती है, उस दिन हम कह सकते हैं कि भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है।''

    पीठ ने कहा, ''जब लॉ कोर्स पढ़ रही एक शिक्षित महिला रात 9.30 बजे अपने दोस्त के साथ हॉस्टल से बाहर नहीं जा पा रही है क्योंकि अभियुक्तों ने उसका अपहरण करके उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया है तो हम यह नहीं कह सकते कि हमने महात्मा गांधी के भारत की स्वतंत्रता के सपने को हासिल कर लिया है।''

    कोर्ट ने यह कहते हुए निष्कर्ष निकाला कि ''हम, न्यायाधीश सामाजिक माता-पिता हैं। इसलिए समाज की लड़कियों/ महिलाओं के लिए हमारी चिंता को एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है कि ''किसी की भी बेटी पर किया गया हमला हमारी बेटी पर हमला है।''

    केस का शीर्षकः रामू व कर्नाटक राज्य

    केस नंबर- आपराधिक अपील नंबर 246/2014

    जजमेंट की तारीख-21 अक्टूबर 2020

    कोरम-जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस के नटराजन।

    प्रतिनिधित्व-

    एडवोकेट ए.वी. राघवेंद्र अपीलकर्ताओं के लिए

    प्रतिवादियों के लिए अधिवक्ता विजय कुमार माजगे

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