राजस्थान हाईकोर्ट ने एसबीआई लोन स्कैम मामले में धीर एंड धीर एसोसिएट्स के आलोक धीर के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट पर रोक लगाई

LiveLaw News Network

10 Nov 2021 8:40 AM GMT

  • राजस्थान हाईकोर्ट ने एसबीआई लोन स्कैम मामले में धीर एंड धीर एसोसिएट्स के आलोक धीर के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट पर रोक लगाई

    राजस्थान हाईकोर्ट ने मंगलवार को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) लोन स्कैम के संबंध में धीर एंड धीर एसोसिएट्स के प्रबंध आलोक धीर और अल्केमिस्ट एसेट रिकंस्ट्रक्शन के एक अन्य कर्मचारी के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट पर रोक लगा दी।

    जैसलमेर की एक अदालत ने 12 फरवरी, 2020 को आलोक धीर और अल्केमिस्ट एसेट रिकंस्ट्रक्शन के एक अन्य कर्मचारी शशि मदाथिल के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था।

    न्यायमूर्ति विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने कहा कि जिस एफआईआर के तहत धीर और मदाथिल के खिलाफ वारंट जारी किया गया था, उसमें पहले से दर्ज एक ओर एफआईआर के समान आरोप है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही खारिज कर दिया था।

    संक्षेप में तथ्य

    वर्तमान एफआईआर वर्ष 2015 में जैसलमेर होटल परियोजना के संबंध में दर्ज की गई थी। इसे वर्ष 2007 में एसबीआई द्वारा वित्तपोषित किया गया था।

    मामले में जांच करने के बाद पुलिस ने शुरू में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी। इसके जवाब में मामले में शिकायतकर्ता ने एक विरोध याचिका दायर की। इसे अंततः फरवरी 2020 में अनुमति दी गई और बिना किसी नोटिस के याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया गया।

    न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया गया कि समान तथ्यों पर वर्ष 2017 में जयपुर में एक एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें इस लेनदेन पर सवाल उठाया गया था। हालांकि, एफआईआर को बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने इस बात पर भी जोर दिया कि मामला दीवानी प्रकृति का है और इसी तरह के तथ्यों पर एक एफआईआर को सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय का विचार है कि वर्तमान कार्यवाही 2015 की एफआईआर से उत्पन्न होती है, जिसमें याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोप लगभग 2017 की एफआईआर के समान हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह ध्यान दिया जाता है कि कार्यवाही 25 करोड़ रुपये के ऋण की अदायगी न करने से उत्पन्न होती है, इसलिए एनसीएलटी, एनसीएलएटी और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष की गई कार्यवाही दीवानी प्रकृति की प्रतीत होती है। आगे एफआईआर नंबर में 37/2015 पुलिस ने गहन जांच के बाद निगेटिव रिपोर्ट दी है।"

    अत: प्रकरण के समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने आदेश दिया कि इस बीच एवं आगामी दिनांक 12.02.2020 के आदेश की सुनवाई, प्रभाव एवं संचालन तथा मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, जैसलमेर द्वारा पारित परिणामी आदेश तक गिरफ्तारी वारंट के माध्यम से याचिकाकर्ताओं को समन करने की सीमा तक रोक रहेगी।

    केस का शीर्षक - आलोक धीर और दूसरा बनाम राजस्थान राज्य

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