राजस्थान हाईकोर्ट ने इंडियन मुजाहिदीन के साथ कथित संबंधों को लेकर 9 साल से जेल में बंद आरोपियों को जमानत देने से इनकार किया, कहा- मुकदमे में कोई अनावश्यक देरी नहीं होगी
Shahadat
3 Nov 2023 12:59 PM IST
राजस्थान हाईकोर्ट ने इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े होकर आतंकवादी गतिविधियों में कथित भागीदारी के लिए 9 साल से अधिक समय से जेल में बंद दो आरोपियों द्वारा दायर जमानत याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष के पास उपलब्ध साक्ष्य प्रथम दृष्टया कथित अपराधों के कमीशन में उनकी भूमिका का संकेत देते हैं।
जस्टिस कुलदीप माथुर की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि यूएपीए अधिनियम की धारा 43 (डी) (5) के तहत प्रथम दृष्टया राय बनाना मुश्किल है कि याचिकाकर्ताओं/अभियुक्तों के खिलाफ दावे झूठे हैं। अदालत ने बताया कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री जैसे 'मोबाइल फोन, चैट, वीडियो आदि के रूप में मौखिक, दस्तावेजी और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य' प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता को यूएपीए के तहत कथित अपराधों से जोड़ती है।
सक्षम आपराधिक अदालत में दिन-प्रतिदिन के आधार पर चल रहे मुकदमे की प्रगति के बारे में जोधपुर में बैठी पीठ ने निम्नानुसार उल्लेख किया:
"...अभियोजन पक्ष के आधे से अधिक गवाहों की जांच इस तथ्य के साथ की गई है कि निचली अदालत दिन-प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई कर रही है और मुकदमे को जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए सभी प्रयास कर रही है। इस न्यायालय की राय है कि मामले की सुनवाई शीघ्र ही समाप्त होने की संभावना है... यह तर्क कि याचिकाकर्ताओं को 9 साल से अधिक की अवधि के लिए कारावास का सामना करना पड़ा है, इस न्यायालय को अपील नहीं करता है, खासकर जब यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं रखा गया कि अभियोजन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा में अनावश्यक रूप से देरी कर रहा है।”
आरोपियों में से एक मोहम्मद मारूफ के बारे में यह भी अनुमान लगाया गया कि उसने वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित इंडियन मुजाहिदीन के प्रमुखों इकबाल भटकल और रियाज भटकल के साथ संचार बनाए रखा था।
राज्य ने प्रस्तुत किया कि 19.07.2022 को मुकदमे में तेजी लाने के लिए हाईकोर्ट की समन्वय पीठ के आदेश के अनुसार अभियोजन पक्ष के 110 गवाहों में से 68 गवाहों का ट्रायल पूरा हो चुका था।
सीआरपीसी की धारा 439 के तहत मोहम्मद यासिर और मोहम्मद मारूफ द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि आदेश में की गई टिप्पणियां जमानत देने/नहीं देने के सीमित उद्देश्य के लिए हैं और इससे ट्रायल कोर्ट द्वारा आने वाले निष्कर्षों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
आरोपियों को विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धारा 16, 17, 18, 18 ए, 18 बी, 19, 20, 23, 38 और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 120-बी, 121, 121ए,122, 465, 468, 471 धाराओं के तहत आने वाले अपराधों के लिए प्रतापनगर पुलिस स्टेशन में दर्ज एक प्राथमिकी के संबंध में गिरफ्तार किया गया था।
पुलिस के मुताबिक, ये दोनों 2013 में इंडियन मुजाहिदीन की मीटिंग में शामिल हुए थे और राजस्थान में आतंकी ऑपरेशन को अंजाम देने की साजिश रची थी। दोनों याचिकाकर्ताओं पर अन्य लोगों को प्रतिबंधित संगठन में भर्ती करने और उन्हें आतंकवादी संगठन द्वारा आयोजित राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में भाग लेने का भी आरोप लगाया गया।
आरोपियों में से एक मोहम्मद मारूफ ने तर्क दिया कि केवल उसके और सह-आरोपी व्यक्तियों द्वारा किए गए चैट मैसेज के आधार पर उस पर लगाए गए किसी भी अपराध से उसका कोई लेना-देना नहीं है। आरोपियों ने अदालत पर यह भी प्रभाव डालने की कोशिश की कि जिन सह-अभियुक्तों के खिलाफ इसी तरह के आरोप लगाए गए हैं, उन्हें पहले ही कई मामलों में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत दी जा चुकी है।
अभियोजन पक्ष इस तर्क पर टिका रहा कि उपरोक्त कृत्यों के अलावा, आरोपियों ने आतंकवादी संगठन को रसद और वित्तीय सहायता भी प्रदान की है। अभियोजन पक्ष ने आगे कहा कि आगे की जांच और मुकदमे के दौरान सामने आने वाले सबूत दोनों आरोपियों द्वारा निभाई गई भूमिका की वास्तविक सीमा के बारे में स्पष्ट तस्वीर दे सकते हैं। अभियोजन पक्ष ने इस आधार पर भी जमानत याचिकाओं का पुरजोर विरोध किया कि गवाहों से पूछताछ की मौजूदा गति को देखते हुए मुकदमा जल्द से जल्द पूरा किया जा सकता है।
केस टाइटल: मोहम्मद अम्मार यासिर बनाम राजस्थान राज्य और मोहम्मद मारूफ बनाम राजस्थान राज्य
केस नंबर: एस.बी. आपराधिक विविध जमानत आवेदन नंबर 11044/2023 एवं एस.बी. आपराधिक विविध जमानत आवेदन नंबर 10286/2023
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