राजस्थान हाईकोर्ट ने COVID-19 वैक्सीनेशन स्थिति के आधार पर भेदभाव के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

Shahadat

10 Aug 2022 6:23 AM GMT

  • राजस्थान हाईकोर्ट ने COVID-19 वैक्सीनेशन स्थिति के आधार पर भेदभाव के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार के उस आदेश को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी, जिसमें COVID-19 के खिलाफ कम से कम एक वैक्सीन खुराक लेने वाले लोगों के लिए इनडोर गेम्स, जिम, रेस्तरां और अन्य सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच को प्रतिबंधित किया गया है।

    जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी। एडवोकेट जनरल ने अदालत को सूचित किया कि सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत आदेश पारित किया है, जिसमें कहा गया कि किसी भी व्यक्ति को वैक्सीन लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। फिर विभिन्न राज्यों द्वारा लगाए गए वैक्सीन जनादेश COVID-19 महामारी के संदर्भ में सरकारें और अन्य प्राधिकरण "आनुपातिक नहीं" हैं।

    हाईकोर्ट ने इस प्रकार सामाजिक कार्यकर्ता ज्योत्सना राठौर द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने यह देखते हुए याचिका खारिज की कि सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई टिप्पणियों के आलोक में COVID-19 महामारी से संबंधित मौजूदा दिशानिर्देशों पर पुनर्विचार करेगी।

    याचिकाकर्ता ने चिंता व्यक्त की कि आक्षेपित आदेश वैक्सीनेशन प्रक्रिया को अनिवार्य बनाता है और वैक्सीनेशन की स्थिति के आधार पर समान स्थिति वाले लोगों के साथ भेदभाव करता है।

    जैकब पुलियेल बनाम भारत संघ 2022 लाइव लॉ (एससी) 439 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि रिकॉर्ड पर कोई पर्याप्त डेटा पेश नहीं किया गया, जिससे यह देखा जा सके कि अन-वैक्सीनेट व्यक्तियों से COVID​​​​-19 वायरस के संक्रमण का जोखिम वैक्सीनेट व्यक्तियों की तुलना में अधिक है।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य हितों में व्यक्तिगत अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने की हकदार है, लेकिन प्रतिबंधों को पुट्टस्वामी फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित तीन गुना आवश्यकता वैधता, वैध आवश्यकता और आनुपातिकता को पूरा करना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "भारत संघ या हमारे सामने आने वाले राज्यों द्वारा कोई डेटा नहीं रखा गया है, जो वैज्ञानिक राय के रूप में याचिकाकर्ता द्वारा रखी गई सामग्री का खंडन करता हो। साथ ही यह दर्शाता हो कि असंबद्ध व्यक्तियों से वायरस के संक्रमण का जोखम वैक्सीनेट व्यक्तियों के बराबर हो। इसके आलोक में राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा विभिन्न वैक्सीन जनादेशों के माध्यम से लगाए गए अन-वैक्सीनेट व्यक्तियों पर प्रतिबंध को आनुपातिक नहीं कहा जा सकता।

    याचिकाकर्ता की दलीलें

    याचिका में कहा गया कि यह आदेश अनुचित वर्गीकरण पर आधारित है, यानी COVID-19 वैक्सीन की स्थिति बिना किसी तर्कसंगता के व्यक्ति के व्यवसाय और पेशे को जारी रखने के अधिकार पर है। इसलिए यह जीवन के अधिकार पर प्रतिबंध लगाता है। इस प्रकार, आक्षेपित आदेश स्पष्ट रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।

    इसने राजस्थान राज्य द्वारा सत्ता के संगीन प्रयोग का आरोप लगाया, क्योंकि यह अप्रत्यक्ष रूप से नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कम करने का प्रयास करता है, कुछ ऐसा जिसका सीधे उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। वैक्सीनेशन प्रक्रिया को प्रोत्साहित करके राज्य वह प्रदान कर रहा है, जिसकी पहले से ही संविधान द्वारा गारंटी दी गई है।

    याचिका में कहा गया,

    "प्रकृति में COVID-19 वैक्सीन को अनिवार्य बनाकर आक्षेपित आदेश सभी के लिए समान अवसर बनाने में विफल रहता है, क्योंकि यह वैक्सीनेशन केंद्रों तक पहुंच, CoWIN पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन में तकनीकी बाधाओं, पूर्व-मेडिकल स्थितियों (एलर्जी), वैक्सीनेशन जैसी जमीनी वास्तविकताओं की अनदेखी करता है। साथ ही ऊपर वर्णित कारणों से इसका पालन करने में असमर्थ लोगों को कोई छूट नहीं देता है।"

    याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट आयुष सिंह, हिमांशु कला, निश्चय निगम और पुनीत सिंघवी पेश हुए, जबकि ए.जी. एम.एस. राज्य की ओर से एडवोकेट दर्श पारीक, शीतलांशु शर्मा और प्रणव भंसाली के साथ सिंघवी पेश हुए।

    केस टाइटल: ज्योत्सना राठौर बनाम राजस्थान राज्य

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (राज) 214

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