राजस्थान हाईकोर्ट के अग्र‌िम जमानत आदेश के बावजूद मजिस्ट्रेट ने जारी किया गिरफ्तारी आदेश, हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया

LiveLaw News Network

16 Nov 2020 4:18 AM GMT

  • राजस्थान हाईकोर्ट

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    राजस्थान हाईकोर्ट ने सोमवार (09 नवंबर) को रजिस्ट्रार (विजिलेंस) को निर्देश दिया कि वह एक ऐसे मजिस्ट्रेट के खिलाफ पहल करे, जिसने इस तथ्य के बावजूद कि हाईकोर्ट ने पहले ही अग्र‌िम जामनत दी है, आरोप‌ियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया।

    जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा की खंडपीठ ने कहा, "विद्वान मजिस्ट्रेट की कार्रवाई स्पष्ट रूप से अतिरिक्त थी और हाईकोर्ट के आदेश के प्रति न्यूनतम सम्मान का प्रदर्शन किया गया था और क्रिमिनल लॉ का भी कम ज्ञान था।"

    पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ताओं, नानूराम सैनी और विनोद कुमार को धोखाधड़ी के आरोप में दर्ज एफआईआर के संबंध में वर्ष 2003 में हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत दी थी।

    इसके बाद, मजिस्ट्रेट ने आरोपियों/याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धारा 418, 420, 465, 467, 468, 471, 406 और 120-बी आईपीसी के तहत आरोपों से संबंधित अपराधों का संज्ञान लिया। कोर्ट ने उनके खिलाफ (सितंबर 2020 में) गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया।

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि गिरफ्तारी वारंट के बारे में पता चलने पर, याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दिया, जिसमें जानकारी दी गई कि वे अग्रिम जमानत पर हैं, जिसे उच्च न्यायालय ने दिया है और उन्होंने मजिस्ट्रेट से यह भी अनुरोध किया है कि गिरफ्तारी वारंट को धारा 70 (2) सीआरपीसी के संदर्भ में जमानती वारंट में परिवर्तित किया जा सकता है।

    हालांकि, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, खेतड़ी ने अपने 3.9.2020 के आदेश के जर‌िए गैर-जमानती वारंट को इस आधार पर जमानती वारंट में परिवर्तित करने से मना कर दिया कि उनके पास गैर-जमानती वारंट को जमानती वारंट में परिवर्तित करने की शक्ति नहीं है क्योंकि यह अपने पहले के आदेश को वापस लेने से इनकार करने के बराबर होगा, जो कि धारा 362 सीआरपीसी के संदर्भ में वर्जित है और उन्होंने उसी दिन गिरफ्तारी वारंट जारी किया।

    हाईकोर्ट के समक्ष वकील ने कहा कि अग्रिम जमानत के कार्यकाल से संबंधित मुद्दा सुशीला अग्रवाल और अन्य बनाम राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली) और अन्य के मामले में तय किया गया है। पांच जजों की बेंच ने यह माना है कि न्यायालय द्वारा दी गई अग्रिम जमानत मुकदमे के अंत तक जारी रहेगी।

    आदेश

    इस पर, हाईकोर्ट ने कहा कि विद्वान मजिस्ट्रेट की कार्रवाई का संज्ञान लिया गया है और 3.9.2020 को पारित (गिरफ्तारी वारंट) आदेश हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत दिए जाने के आदेश के स्पष्ट उल्लंघन में दिया गया है।

    कोर्ट ने कहा, "मजिस्ट्रेट के पास गिरफ्तारी वारंट जारी करने का कोई मौका नहीं था और इस प्रकार का रास्ता या शक्ति, दिए जाने के बावजूद, उन्हें उपलब्ध नहीं थी। विद्वान मजिस्ट्रेट ने गिरफ्तारी वारंट जारी करने पर जोर दिया है और यह भी देखा गया है कि धारा 362 सीआरपीसी के प्रावधान धारा 70 (2) सीआरपीसी के तहत आवेदन तय करते समय लागू नहीं हो सकते।"

    उपरोक्त के मद्देनजर, हाईकोर्ट ने याचिका की अनुमति दी और दिनांक 3.9.2020 (मजिस्ट्रेट) के आदेश को रद्द कर दिया।

    अंत में, कोर्ट ने निर्देश दिया, "इस आदेश की एक प्रति रजिस्ट्रार (विजिलेंस) को संबंधित समिति के समक्ष रखने के लिए, यह तय करने के लिए भेजा जाना चाहिए कि इस तरह के मजिस्ट्रेट के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए क्या आवश्यक है।"

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