राजस्थान हाईकोर्ट ने एनडीपीएस एक्ट के तहत अफीम की खेती की छोटी या वाणिज्यिक मात्रा निर्दिष्ट नहीं करने पर केंद्र से जवाब मांगा
LiveLaw News Network
24 Jun 2021 2:34 PM IST
राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने एक स्वत: संज्ञान मामले में 19 अक्टूबर 2001 की अधिसूचना के पीछे के औचित्य को स्पष्ट करने के लिए केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें आमतौर पर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) के तहत अफीम के पौधों ( पापवेर सोमनिफरम) की खेती की छोटी या व्यावसायिक मात्रा निर्दिष्ट नहीं की गई है।
न्यायमूर्ति दिनेश मेहता की अवकाश पीठ ने वित्त मंत्रालय, राजस्व विभाग और राजस्थान राज्य के माध्यम से भारत सरकार को नोटिस जारी किया।
बेंच ने आदेश दिया कि,
"यह अदालत छोटी और व्यावसायिक मात्रा निर्धारित करने के बजाय दिनांक 19.10.2001 की अधिसूचना में नोट .3 को सम्मिलित करने के पीछे के औचित्य को स्पष्ट करने के लिए केंद्र सरकार से आह्वान करना उचित समझता है।"
बेंच ने इसके अलावा कहा कि,
"अदालत अधिसूचना में तीसरे नोट के स्वार्थ साधक होने, वैधता या स्वामित्व की जांच करेगा। अदालत पौधों की संख्या और खेती का क्षेत्र के संदर्भ में या छोटी और वाणिज्यिक मात्रा निर्धारित करने के लिए केंद्र सरकार (यदि आवश्यक समझा) को उचित निर्देश जारी कर सकती है ताकि अधिसूचना को अधिनियम के प्रावधानों और योजना के अनुरूप लाया जा सके।"
अधिसूचना के नोट 3 के अनुसार यह प्रावधान है कि अफीम के पौधों की खेती के संबंध में "छोटी मात्रा" और "वाणिज्यिक मात्रा" को अलग से निर्दिष्ट नहीं किया गया है क्योंकि इस संबंध में नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 18 के खंड (सी) के तहत अपराध कवर किया गया है।
कोर्ट ने उपरोक्त नोट को देखते हुए कहा कि इस न्यायालय की राय में चूंकि बिना लाइसेंस के अफीम की खेती नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 18 के तहत निषिद्ध है। केंद्र सरकार के मुताबिक अफीम की खेती चाहे जो भी हो इसकी मात्रा नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 18 (सी) द्वारा कवर की गई है, जाहिर तौर पर वैधानिक स्थिति के विपरीत है।
कोर्ट के अनुसार इसके अलावा मात्रा की परवाह किए बिना अफीम के पौधों की खेती के हर मामले को अधिनियम की धारा 18(सी) के तहत दंडनीय माना जाता है और ऐसे अपराधियों को अधिनियम की धारा 37(1)(बी) के अनुपालन सुनिश्चित किए बिना जमानत पर रिहा किया जा रहा है।
प्रावधान के अनुसार यदि किसी अपराध में वाणिज्यिक मात्रा शामिल है तो न्यायालय लोक अभियोजक को सुनवाई का अवसर देगा और इस विश्वास की संतुष्टि दर्ज करेगा कि आरोपी इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और आरोपी द्वारा जमानत पर रहते हुए कोई अपराध नहीं करने की संभावना है।
बेंच ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की 16 (कोका के पौधे और कोका के पत्तों के संबंध में उल्लंघन के लिए सजा), धारा 18 (अफीम पोस्त और अफीम के संबंध में उल्लंघन के लिए सजा) और धारा 20 (कैनबिस के पौधे और भांग के संबंध में उल्लंघन के लिए सजा) का विश्लेषण किया।
बेंच ने कहा कि,
" जब अफीम के पौधों की खेती के प्रावधानों की बात आती है तो अपराध को उत्पादन, निर्माण, प्रसंस्करण, बिक्री, खरीद, परिवहन, अंतर-राज्यीय आयात, अंतर-राज्यीय निर्यात या उपयोग के अपराध के बराबर रखा गया है। तद्नुसार अधिनियम की धारा 18 के तहत विचाराधीन मात्रा के आधार पर सजा निर्धारित की गई है।"
कोर्ट के अनुसार अधिसूचना के साथ संलग्न नोट संख्या 3 के कारण अफीम के पौधों की संख्या की परवाह किए बिना एक आरोपी/किसान नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 37(1)(बी) की कठोरता से प्रतिरक्षा का दावा कर सकता है और अदालतों के पास अधिनियम की धारा 37(1)(बी) की आवश्यकताओं को समाप्त करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता है।
कोर्ट ने शुरुआत में अवलोकन किया कि,
"19.10.2001 की अधिसूचना में नोट नंबर 3 प्रथम दृष्टया असंगत और नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 18 के प्रावधानों के विपरीत है, क्योंकि संसद ने अफीम के पौधों की खेती को भी उतना ही गंभीर अपराध माना है जितना कि विधायिका द्वारा निर्माण, प्रसंस्करण, उत्पादन, बिक्री और खरीद आदि का माना गया है।
मामले को अब 12 जुलाई 2021 को रोस्टर बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा।
केस का शीर्षक: स्वत: संज्ञान बनाम भारत संघ [S.B Criminal Misc (Pet.) No. 2877/2021]