राजस्थान हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 'सामाजिक ताने-बाने' आदेश पर भरोसा करके लिव-इन रिलेशन में रह रही विवाहिता को पुलिस सुरक्षा देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

16 Aug 2021 7:27 AM GMT

  • राजस्थान हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामाजिक ताने-बाने आदेश पर भरोसा करके लिव-इन रिलेशन में रह रही विवाहिता को पुलिस सुरक्षा देने से इनकार किया

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में एक विवाहिता को पुलिस सुरक्षा देने से मना कर दिया। लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही महिला ने कहा था कि कुछ लोग उसके रिश्ते से खुश नहीं हैं, इसलिए उसे पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता है।

    जस्टिस सतीश कुमार शर्मा की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया आदेश पर भरोसा किया, जिसमें कोर्ट ने साथी के साथ रही रही एक विवाहिता की सुरक्षा याचिका को 5,000 रुपए के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया था।

    कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था- "... कानून का पालन नहीं करने वाला कोई भी नागरिक, जो पहले से ही हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाहित है, एक अवैध संबंध के लिए इस न्यायालय की सुरक्षा की मांग नहीं कर सकता है, जो इस देश के सामाजिक ताने-बाने के दायरे में नहीं है। विवाह की पवित्रता तलाक को मानती है। अगर उसका अपने पति से कोई मतभेद है, तो उसे पहले अपने पति से अलग होने के लिए समुदाय पर लागू कानून के अनुसार आगे बढ़ना होगा यदि हिंदू कानून उस पर लागू नहीं होता है।"

    मामला

    यह दावा करते हुए कि याचिकाकर्ता एक विवाहित महिला है, लेकिन उसे अपना वैवाहिक घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है और वर्तमान में, वह याचिकाकर्ता नंबर 2 (उसके लिव-इन पार्टनर) के साथ रह रही है, उसने पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    फैसला

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया फैसले का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा, "यह अच्छी तरह से स्थापित कानूनी स्थिति है कि लिव-इन रिलेशनशिप इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर नहीं हो कते हैं, और पुलिस को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे अवैध संबंधों को हमारी सहमति देना होगा।"

    इसलिए, उपरोक्त कानूनी स्थिति को ध्यान में रखते हुए, पुलिस सुरक्षा प्रदान करने की प्रार्थना को खारिज किया जाता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा, अगर याचिकाकर्ताओं के साथ कोई अपराध होता है तो वे संबंधित पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराने और कानून का सहारा लेने के लिए स्वतंत्र हैं।

    उल्लेखनीय है कि 10 अगस्त को अदालत ने याचिका को निस्तारित करते हुए गलती से संबंधित एचएचओ को याचिका को शिकायत के रूप में मानने और उचित जांच के बाद सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए थे।

    हालांकि, 13 अगस्त को कोर्ट ने स्पष्टीकरण जारी किया कि ‌पिछले आदेश का ऑपरेटिव हिस्सा कोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार नहीं है और इसलिए, इसे कोर्ट की वेबसाइट से हटाने का आदेश दिया जाता है।

    केस शीर्षक - श्रीमती माया देवी बनाम राजस्थान राज्य और अन्य

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story