पंजाब के वकील ने किसानों के समर्थन में जान दी

LiveLaw News Network

28 Dec 2020 8:05 AM GMT

  • Telangana High Court Directs Police Commissioner To Permit Farmers Rally In Hyderabad On Republic Day

    पंजाब के एक वकील ने रविवार को टिकरी बार्डर पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के स्थल से कुछ किलोमीटर की दूरी पर अपना जीवन समाप्त कर लिया।

    पंजाब के जलालाबाद बार एसोसिएशन के एडवोकेट अमरजीत सिंह को रोहतक के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (पीजीआईएमएस) ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया, ऐसा पीटीआई की रिपोर्ट में बताया गया है।

    सिंह द्वारा कथित रूप से एक सुसाइड नोट छोड़ा गया है,जिसका शीर्षक है ''लेटर टू मोदी, द डिक्टेटर'',जिसमें कहा है कि वह केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के समर्थन में अपना जीवन बलिदान कर रहे हैं ताकि सरकार को लोगों की आवाज सुनने के लिए मजबूर किया जा सकें।

    सिंह ने द्वारा कथित तौर पर छोड़े गए पत्र में कहा गया है कि,

    ''भारत की आम जनता ने आपको अपने जीवन को बचाने और समृद्ध करने के लिए पूर्ण बहुमत, शक्ति और विश्वास दिया है। स्वतंत्रता के बाद आम लोगों को प्रधान मंत्री के रूप में आपसे बेहतर भविष्य की उम्मीद थी।

    लेकिन बड़े दुःख और पीड़ा के साथ मुझे लिखना पड़ रहा है कि आप अंबानी और अडानी आदि जैसे विशेष समूह के प्रधानमंत्री बन गए हैं। किसान और मजदूर जैसे आम लोग आपके तीन कृषि काले बिलों से ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और सबसे खराब जीवन अक्षम्य है। जनता वोटों के लिए नहीं बल्कि अपने परिवारों और पीढ़ियों की आजीविका के लिए पटरियों और सड़कों पर है, कुछ पूंजीपतियों को खिलाने के लिए आपने आम लोगों और कृषि को नष्ट कर दिया है जो भारत की रीढ़ है। कृपया कुछ पूंजीपतियों के लिए किसानों, मजदूरों और आम लोगों की ब्रेड एंड बटर (रोटी) न छीनें और उन्हें सल्फास खाने के लिए मजबूर न करें। सामाजिक रूप से आपने जनता को धोखा दिया है और राजनीतिक रूप से आपने अपने सहयोगी दलों जैसे एसएडी को धोखा दिया है। सुनो, लोगों की आवाज ईश्वर की आवाज है। यह कहा जाता है कि आप गोधरा जैसी कुर्बानियों की कामना करते हैं,इसलिए आपकी बहरी और गूंगी चेतना को हिला देने के लिए इस विश्व व्यापी आंदोलन के समर्थन में मैं अपना बलिदान भी दे रहा हूं।''

    पत्र में यह भी कहा गया है ''न्यायपालिका ने जनता का विश्वास खो दिया है।''

    पुलिस ने कहा कि वे 18 दिसंबर की तारीख वाले सुसाइड नोट की सत्यता की पुष्टि कर रहे हैं।

    पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार,हरियाणा के झज्जर जिले के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि,''हमने मृतक के परिजनों को सूचित कर दिया है और एक बार जब वे यहां पहुंच जाएंगे तो उनके बयान दर्ज किए जाएंगे और आगे की कार्यवाही की जाएगी।'' उन्होंने यह भी बताया कि अस्पताल प्रशासन ने उनको आत्महत्या के बारे में सूचित किया था।

    इससे पहले, कम से कम दो आत्महत्याओं को किसानों के आंदोलन से जोड़ा गया है,जो एक महीने से अधिक समय से दिल्ली के विभिन्न सीमा पर चल रहा है।

    एक सिख उपदेशक संत राम सिंह ने कथित तौर पर इस महीने की शुरुआत में सिंघू बार्डर विरोध स्थल के पास आत्महत्या कर ली थी और दावा किया था कि वह ''किसानों का दर्द सहन करने में असमर्थ हैं।''

    दिल्ली की सीमा के पास के एक विरोध स्थल से लौटने के बाद एक 22 वर्षीय किसान ने पंजाब के बठिंडा में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी।

    एक हफ्ते पहले, पंजाब के एक 65 वर्षीय किसान ने सिंघू बार्डर के पास कुछ जहरीला पदार्थ खाकर आत्महत्या का प्रयास किया था।

    पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों के हजारों किसान मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020, किसानों के अधिकार व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 और किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।

    सितंबर में लागू, तीन कृषि कानूनों को केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों के रूप में पेश किया गया है जो बिचैलियों को दूर करेगा और किसानों को देश में कहीं भी फसल बेचने की अनुमति देगा।

    हालाँकि, प्रदर्शनकारी किसानों ने यह आशंका व्यक्त की है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुरक्षा गद्दी को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे और मंडी प्रणाली को खत्म करके उन्हें बड़े कॉर्पोरेट की दया पर छोड़ देंगे।

    सुप्रीम कोर्ट कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रहा है और याचिकाकर्ताओं के एक अन्य बैच ने दिल्ली की सीमाओं से प्रदर्शनकारियों को हटाने की मांग की है। 17 दिसंबर को सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि किसानों को यह अधिकार है कि वे तब तक विरोध प्रदर्शन जारी रख सकते हैं जब तक कि यह शांतिपूर्ण रहे और उन्होंने कहा कि पुलिस हिंसा नहीं भड़का सकती।

    पीठ ने मौखिक रूप से यह भी कहा था कि वह किसानों और केंद्र के बीच वार्ता आयोजित करने के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने पर विचार कर रही है और अटॉर्नी जनरल से पूछा था कि क्या सरकार वार्ता को सुगम बनाने के लिए कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के बारे में सोच सकती है।

    (पीटीआई इनपुट्स के साथ)

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