'सामाजिक दृष्टि से माता-पिता नैतिक रूप से बुरे हो सकते हैं, लेकिन बच्चे के लिए अच्छे हो सकते हैं': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कथित नशीली दवाओं के आदी पिता से मिलने के अधिकार बरकरार रखा

Shahadat

16 Dec 2023 2:49 PM GMT

  • सामाजिक दृष्टि से माता-पिता नैतिक रूप से बुरे हो सकते हैं, लेकिन बच्चे के लिए अच्छे हो सकते हैं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कथित नशीली दवाओं के आदी पिता से मिलने के अधिकार बरकरार रखा

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 10 वर्षीय बेटी के पिता को दिए गए मुलाक़ात के अधिकार बरकरार रखा, जो कथित तौर पर मादक द्रव्यों पर निर्भर है। कोर्ट यह देखते उक्त अधिकार बरकरार हुए कि "एक पुरुष या एक महिला प्रासंगिक रिश्ते में किसी के लिए बुरा हो सकते हैं; हालांकि, इसका मतलब यह नहीं कि वह व्यक्ति अपने बच्चे के लिए बुरा है।"

    यह देखते हुए कि ट्रायल कोर्ट ने पाया कि पिता "रसायनों पर निर्भर" हैं और रिकॉर्ड के अनुसार उनका इलाज अभी तक पूरा नहीं हुआ है।

    कोर्ट ने कहा,

    "ये टिप्पणियां वास्तव में सच हैं, इससे पिता को बुरा नहीं माना जा सकता। उसके रसायनों पर निर्भर होने के बारे में कोई निर्णायक राय नहीं बनाई जा सकती। एक पुरुष या महिला किसी प्रासंगिक रिश्ते में किसी के लिए बुरा हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह व्यक्ति अपने बच्चे के लिए बुरा है।"

    जस्टिस अर्चना पुरी ने कहा,

    "सामाजिक दृष्टि से एक माता या पिता नैतिक रूप से बुरा हो सकते हैं, लेकिन वह माता-पिता बच्चे के लिए अच्छे हो सकते हैं। तथाकथित नैतिकता समाज द्वारा बनाई जाती है, अपने लोकाचार और मानदंडों के आधार पर और जरूरी नहीं कि ऐसा होना चाहिए।"

    हालांकि, कोर्ट ने उम्र को ध्यान में रखते हुए बेटी की कस्टडी मां को सौंपने का फैसला करते हुए कहा,

    "इस स्तर पर लड़की को पिता की तुलना में अपनी मां की सहायता की अधिक आवश्यकता होती है।"

    कोर्ट ने स्पष्ट किया,

    "ऐसा नहीं है कि पिता को नाबालिग के प्रति कोई प्यार और स्नेह नहीं है, लेकिन फिर भी बच्चे की उम्र को देखते हुए उसे मां के साथ अधिक लगाव होना तय है। खासकर तब, जब वह पहले से ही मां के साथ रहती है। इसलिए पहले से मौजूद व्यवस्था में कोई और बदलाव बच्चे के लिए फायदेमंद नहीं होगा।"

    अदालत ने पिता द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर गौर किया गया, जो नाबालिग बेटी की कस्टडी की मांग कर रहा था। निचली अदालत ने केवल मुलाक़ात का अधिकार दिया था और नाबालिग बेटी की कस्टडी उसके पिता को सौंपने से इनकार कर दिया था।

    तथ्य संक्षेप में

    याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच विवाह 2008 में हुआ और वर्ष 2012 में उनके विवाह से एक लड़की का जन्म हुआ। हालांकि, दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक विवाद उत्पन्न हो गया, जिसके परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता और प्रतिवादी अलग हो गए और लड़की पैदा हुई। वह मां के संरक्षण में रहने लगी। वैवाहिक कलह के बीच निचली अदालत ने अभिरक्षा का अधिकार मां को सौंप दिया और पिता को मुलाकात का अधिकार दे दिया। हालांकि पिता ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

    प्रस्तुतियां पर विचार करते हुए यह देखा गया,

    "हिरासत के झगड़े में मामले का निर्णय पक्षकारों के कानूनी अधिकारों पर विचार करके नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि एकमात्र और प्रमुख मानदंड पर किया जाना चाहिए कि बच्चे का हित और कल्याण के लिए सबसे अच्छा क्या होगा।"

    कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने अपने आदेश में बच्ची को केवल उसकी मां के साथ रहने का आदेश दिया, जो एक योग्य डॉक्टर है।

    कोर्ट ने कहा,

    "हालांकि, यह आरोप लगाया गया कि पिता रसायनों पर निर्भर हैं और आक्षेपित आदेश में यह देखा गया कि इलाज के लिए रिकॉर्ड पर आने वाले सर्टिफिकेट के अनुसार पुनर्वास अधूरा है और इसलिए नाबालिग बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपने का कोई आधार नहीं बनता है। हालांकि, ये टिप्पणियां पूरी तरह से सच हैं, इससे पिता को बुरा आदमी नहीं माना जा सकता और उसके रसायनों पर निर्भर होने के बारे में कोई निर्णायक राय नहीं बनाई जा सकती है।''

    बेटी की कम उम्र को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि उसे उसकी मां की देखभाल की जरूरत है, जो बेटी की पर्याप्त देखभाल भी कर सकती है।

    उपरोक्त टिप्पणियों के आलोक में बालिका की अभिरक्षा वैसे तो केवल मां के पास ही रहेगी, लेकिन फिर भी, मुलाक़ात के अधिकार पर विचार किया जाना चाहिए।

    पखवाड़े में एक बार दो घंटे के लिए मुलाकात की अनुमति देते हुए अदालत ने निर्देश दिया,

    "हालांकि, इन दो घंटों के लिए बातचीत के दौरान, बच्चे की मां या नाना-नानी उस स्थान पर रहेंगे, जहां बच्चा बातचीत कर रहा है, लेकिन याचिकाकर्ता और नाबालिग बच्चे के बीच बातचीत की श्रव्य सीमा से दूर रहेगा।'

    केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

    याचिकाकर्ता के वकील के.एस.बरार के साथ वरिष्ठ वकील कंवलजीत सिंह। अभिषेक शर्मा, प्रतिवादी के वकील।

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