पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने निजी क्षेत्र में स्थानीय निवासियों के ‌लिए 75% आरक्षण देने के हरियाणा सरकार के कानून पर अंतरिम रोक लगाई

LiveLaw News Network

3 Feb 2022 9:03 AM GMT

  • पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने निजी क्षेत्र में स्थानीय निवासियों के ‌लिए 75% आरक्षण देने के हरियाणा सरकार के कानून पर अंतरिम रोक लगाई

    Punjab & Haryana High court

    हरियाणा सरकार की ओर से राज्य के निवासियों को निजी क्षेत्र में 75% आरक्षण प्रदान करने के लिए पारित हरियाणा स्टेट इम्‍प्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट एक्ट, 2020 पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अंतर‌िम रोक लगा दी है। जस्टिस अजय तिवारी और जस्टिस पंकज जैन की खंडपीठ ने कानून की वैधता के खिलाफ दायर रिट याचिका पर यह फैसला दिया है।

    हरियाणा की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की प्रस्तुतियों के बाद हाईकोर्ट ने रिट याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और अधिनियम पर रोक लगा दी। फरीदाबाद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (एफआईए) ने पिछले महीने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी। कोर्ट ने याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया है।

    उल्‍लेखनीय है कि हरियाणा स्टेट इम्‍प्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट एक्ट, 2020, जिसे 6 नवंबर, 2021 को अधिसूचित किया गया था, निजी क्षेत्र की ऐसी नौकरियों में, जिनमें प्रति माह 30,000 रुपये से कम वेतन प्रदान किया जाता है, उनमें स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान करता है। यह अधिनियम 15 जनवरी, 2022 से प्रभावी हो चुका है।

    यह कानून सभी कंपनियों, समितियों, ट्रस्टों, सीमित देयता भागीदारी फर्मों, साझेदारी फर्मों और दस या अधिक व्यक्तियों को रोजगार देने वाले किसी भी व्यक्ति पर लागू होता है, लेकिन इसमें केंद्र सरकार या राज्य सरकार, या उनके स्वामित्व वाले किसी भी संगठन को शामिल नहीं किया गया है।

    याचिका

    कोर्ट के समक्ष एक प्रमुख उद्योग संघ, एफआईए ने याचिका दायर की है, जिसका गठन 1952 में उद्यमी उद्योगपतियों के एक समूह ने किया था। य‌ाचिका में दलील दी गई है कि अधिनियम असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 19 का उल्लंघन करता है। याचिका में अधिनियम के कार्यान्वयन पर तब तक रोक लगाने की भी मांग की गई है, जब तक कि यह अंतिम रूप से तय नहीं हो जाता।

    याचिका में दावा किया गया है कि यह अधिनियम असंवैधानिक है क्योंकि यह अत्यधिक अस्पष्ट, मनमाना है, और अन्य बातों के साथ-साथ उसमें नियुक्त अधिकृत अधिकारियों को अत्यधिक व्यापक विवेक प्रदान करता है, और इस तरह अधिनियम को असंवैधानिक मानने के लिए एक स्वतंत्र आधार प्रदान करता है।

    यह कहते हुए कि अधिनियम रोजगार की सभी विविध प्रकृति पर लागू है, समझदार अंतर और तर्कसंगत वर्गीकरण पर आधारित नहीं है और इसलिए, अल्ट्रा वायर्स है।

    याचिका में दलील दी गई है कि कानून में व्यावहारिक और व्यावसायिक चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया है और इस बात से इनकार किया गया है कि अधिनियम में प्रदान किया गया डोमिसाइल मानदंड संविधान के अनुच्छेद 16 (2) के जनादेश के खिलाफ है, जिसके तहत प्रदान किया गया है कि किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर रोजगार के संबंध में भेदभाव नहीं किया जाएगा।

    याचिका में आगे कहा गया है कि कानून यून‌ियन ऑफ इंडिया के लिए सामान्य नागरिकता के विचार के विपरीत है और यह यूनियन ऑफ इंडिया के संघीय ढांचे को बनाए रखने में विफल रहता है, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।

    एफआईए के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता अक्षय भान अधिवक्ता हिरेश चौधरी, सुरभि शर्मा, इवान सिंह खोसा और शिवम ग्रोवर के साथ पेश हुए।

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