नियोक्ता को वैसे कर्मचारी को काम पर रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, जो जानबूझकर गिरफ्तारी के तथ्य को छुपाता है : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

1 May 2022 11:59 AM GMT

  • नियोक्ता को वैसे कर्मचारी को काम पर रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, जो जानबूझकर गिरफ्तारी के तथ्य को छुपाता है : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

    Punjab & Haryana High court

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 25 अप्रैल, 2022 को एक बार फिर कहा है कि नियोक्ता को ऐसे कर्मचारी को नौकरी में रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिसने झूठा बयान दिया हो या जानबूझकर भौतिक तथ्यों का खुलासा नहीं किया है। हाईकोर्ट ने यह निर्णय ट्रायल कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील की सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें गिरफ्तारी के तथ्य को छुपाने के आधार पर प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता को कांस्टेबल के पद पर नियुक्ति से इनकार कर दिया था।

    मुख्य न्यायाधीश रवि शंकर झा और जस्टिस अरुण पल्ली की पीठ ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून को दोहराया और कहा कि ऐसे मामलों में सवाल यह नहीं है कि क्या कोई कर्मचारी तुच्छ प्रकृति के विवाद में शामिल था और क्या उसे बाद में बरी किया गया था या नहीं, बल्कि सवाल विश्वसनीयता और विश्वासपात्रता का है।

    इन परिस्थितियों में हम 'राजस्थान राज्य विद्युत प्रसार निगम लिमिटेड एवं अन्य बनाम अनिल कांवरिया, (2021)10 एससीसी 136' मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर विशेष रूप से विद्वान एकल न्यायाधीश द्वारा पारित उस आदेश में कोई अवैधता या अशक्तता नहीं पाते हैं, जिसमें इस संबंध में कानून पर व्यापक चर्चा हुई है, जिसमें 'देवेंद्र कुमार बनाम उत्तरांचल सरकार (2013) 9 एससीसी 363' मामले का निर्णय भी शामिल है और यह माना गया है कि ऐसे मामलों में सवाल यह नहीं है कि क्या कोई कर्मचारी तुच्छ प्रकृति के विवाद में शामिल था और क्या उसे बाद में बरी कर दिया गया है या नहीं। इसके विपरीत प्रश्न ऐसे कर्मचारी की विश्वसनीयता और विश्वासपात्रता के बारे में है, जिसने रोजगार के प्रारंभिक चरण में एक आपराधिक मामले में शामिल होने या गिरफ्तार किए जाने के भौतिक तथ्य को घोषित नहीं किया है और/या नहीं बताया है, ऐसी ही स्थिति वर्तमान मामले में है।

    अपीलकर्ता की इस दलील को खारिज करते हुए कि वह सीधे तौर पर आपराधिक मामले में शामिल नहीं था और इसमें कोई नैतिक बेईमानी शामिल नहीं थी, कोर्ट ने माना कि वर्तमान मामले में अपीलकर्ता ने न केवल अपनी गिरफ्तारी के संबंध में भौतिक जानकारी को दबाया था बल्कि एक सत्यापन प्रपत्र में इस आशय का झूठा विवरण भी दिया था।

    कोर्ट ने आगे कहा कि यह भरोसे के नुकसान का सवाल है, इसलिए ऐसे कर्मचारी, जिसने अपनी सेवा के प्रारंभिक चरण में गलत बयान दिया है या जानबूझकर महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया है, को नियुक्त नहीं किया जा सकता है या सेवा में जारी नहीं रखा जा सकता है।

    यह भरोसे के नुकसान का सवाल है और इसलिए, ऐसी स्थिति में जहां एक नियोक्ता को लगता है कि एक कर्मचारी, जिसने अपनी सेवा के प्रारंभिक चरण में ही, गलत बयान दिया है या पूछे जाने पर जानबूझ कर महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा नहीं किया है, को सेवा में जारी नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि ऐसे कर्मचारी पर भविष्य में भी भरोसा नहीं किया जा सकता है।

    इस संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णयों की एक श्रृंखला द्वारा निर्धारित कानून पर भरोसा करते हुए, कोर्ट ने माना कि एक व्यक्ति जिसने गलत बयान दिया है या जानबूझकर भौतिक तथ्यों को छुपाया है, जब भी उसे ऐसी जानकारी प्रकट करने के लिए कहा गया है, तो वह अधिकार के रूप में नियुक्ति और/या सेवा जारी रखने का दावा नहीं कर सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह स्पष्ट रूप से माना गया है कि ऐसी स्थिति में और निर्णयों की एक श्रृंखला में निर्धारित कानून के तहत ऐसा व्यक्ति अधिकार के रूप में नियुक्ति और/या सेवा जारी रखने का दावा नहीं कर सकता है। इसके बाद उक्त निर्णय का पालन सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार और अन्य बनाम भीम सिंह मीणा' (सिविल अपील संख्या 2599/2022, दिनांक 31.03.2022) मामले में किया गया है।

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित उपरोक्त कानून के मद्देनजर, हाईकोर्ट ने याचिका को मेरिट के अभाव के आधार पर खारिज कर दिया।

    केस शीर्षक: अभिषेक गोयत बनाम हरियाणा राज्य और एवं अन्य

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